नीमकाथाना/सीकर.राजस्थान में विकास की हकीकत देखनी है तो नीमकाथाना से 16 किमी दूर भीतरो गांव चले जाइए। इस गांव का सच जानकर हैरान रह जाएंगे। क्योंकि आजादी के 68 साल बाद तीन महीने पहले इस गांव को बिजली नसीब हुई है। गांव में 80 घर हैं, लेकिन अब भी बिजली कनेक्शन 28 घरों तक ही पहुंचे हैं।
ये है साइड इफेक्ट
बिजली नहीं होने का साइड इफैक्ट यह है कि 80 घरों में 50 लोग कुंवारे रह गए, जिनकी उम्र 35 से 45 साल है। बिजली की उम्मीद में खरीदे गए पंखे और घरेलू आटा चक्की कार्टन में बंद हैं। एक और सच यह है कि लोग पढ़ लिख नहीं पाए। इसी वजह से अब तक 700 की आबादी वाले गांव से सिर्फ चार लोग सरकारी नौकरी में गए हैं। इसके अलावा सड़क जैसी बुनियादी सुविधा नहीं होने से परिवहन के साधन दूर की बात है। भास्कर के दो रिपोर्टरों ने इस गांव की हकीकत को सामने लाने के लिए मौके से ग्राउंड रिपोर्ट की।
क्यों है हैंडपंप की कमी
भीतरो व उसकी ढाणी पहाड़ों में बसी है। रास्ता पथरीला है। ऐसे में डोकन से गांव तक की तीन किमी दूरी में आधा घंटा लगता है। पेयजल के लिए मात्र 8 हैंडपंप हैं। इनमें आधे सूख गए हैं। ढाई साल पहले लगे सरकारी ट्यूबवैल को चालू तक नहीं किया गया।
ऐसे पिछड़ा गांव
भास्कर को गांव के पूरणमल ने बताया कि बिजली लाने के लिए हमारी पांच पीढ़ियों ने संघर्ष किया है। 1977 में बिजली कनेक्शन के लिए सामान आ गया था, लेकिन एक दिन अचानक बिजली अधिकारी आए और सामान वापस ले गए। उन्होंने कहा कि गांव वालों ने कोई प्रयास किए, इसके बाद कुछ नहीं बताया। हमने दुबारा संघर्ष शुरू किया। 2000 में ग्रामीणों ने सामूहिक प्रयास किया। उस वक्त 37 परिवाराें ने आवेदन किया तो बिजली निगम ने 17 लाख रुपए के डिमांड नोटिस भेजे।
28 घरों तक ही पहुंची बिजली
बड़ी रकम की वजह से एक बार फिर मामला अटक गया। इसके बाद ग्रामीणों ने मिलकर विधायक, सांसद और अधिकारियों को 100 से ज्यादा ज्ञापन लिए। इसी का नतीजा रहा कि अब एक सरकारी योजना में औसत 10-10 हजार रुपए लेकर बिजली कनेक्शन दिए गए हैं। हालांकि अभी भी 28 घरों तक बिजली पहुंच सकी है। अब बचे घरों के लिए दीनदयाल उपाध्याय योजना में बिजली का प्रयास कर रहे हैं।
4 लोगों को मिली सरकारी नौकरी
भीतरों व उसकी ढ़ाणियों में रहने वाले 700 लोगों में सरकारी नौकरी में पांच लोग ही हैं। गांव के रहने वाले शिक्षक जयराम ने बताया कि बिजली-पानी व सड़क के अभाव के कारण शिक्षा में पिछड़ापन रहा। उनके अलावा बिरजू व राजेन्द्र सेना में हैं। हंसराज नवोदय स्कूल में कुक मैन हैं। बिजली लाने के प्रयासों में भी चारों ने मिलकर 30-40 हजार रुपए खर्च किये हैं।
गांव में अपनी बेटी देने से कतराते हैं लोग
अभावों के कारण रिश्तों में दिक्कत आ रही है। भीतरों व उसकी ढाणियों में 50 कुंवारे हैं। इनकी उम्र 35 से 45 साल है। इनके अलावा 55 से 60 साल की उम्र के 20 से ज्यादा कुंवारे हैं। ढाणी खातियाला के साक्षरता प्रेरक मिठूलाल ने बताया कि मूलभूत सुविधाएं नहीं होने से गांव में कोई रिश्ते नहीं करता। वो 6 भाई हैं एक की शादी हुई हैं पांच कुंवारे हैं। ऐसे ही हालात मौल्यावाली व वैरावाली ढाणी के हैं। भीतरों में भी रिश्ते नहीं होने से युवक कुंवारे हैं। बिजली-पानी, स्कूल-चिकित्सा एवं रास्ते की कमी के कारण लोग यहां लड़की का रिश्ते करने से कतराते हैं। अब बिजली कनेक्शन शुरू होने से उम्मीद बढ़ी है।
इन्होंने क्या कहा
डिस्कॉम के एसई ए के गुप्ता ने कहा है कि भीतरो गांव को करीब चार महीने पहले बिजली से जोड़ दिया। दीनदयाल उपाध्याय योजना के तहत गांव में कैंप लगाकर आवेदन लिए गए थे। यहां पर जितने आवेदन आए, उन्हें कनेक्शन दे दिए गए। बाकी परिवार यदि आवेदन करेंगे तो उन्हें भी बिजली कनेक्शन जारी कर दिए जाएंगे।
बन रहा विकास का माहौल
सपरंच अनिता देवी ने कहा है कि सरपंच बनने के बाद रायपुर मोड़ स्थित निजी स्कूल में जाकर 10 वीं पास की। आजादी के बाद पहली बार गांव में बिजली कनेक्शनों की शुरुआत होने से विकास का माहौल बनने की उम्मीद है।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
ये है साइड इफेक्ट
बिजली नहीं होने का साइड इफैक्ट यह है कि 80 घरों में 50 लोग कुंवारे रह गए, जिनकी उम्र 35 से 45 साल है। बिजली की उम्मीद में खरीदे गए पंखे और घरेलू आटा चक्की कार्टन में बंद हैं। एक और सच यह है कि लोग पढ़ लिख नहीं पाए। इसी वजह से अब तक 700 की आबादी वाले गांव से सिर्फ चार लोग सरकारी नौकरी में गए हैं। इसके अलावा सड़क जैसी बुनियादी सुविधा नहीं होने से परिवहन के साधन दूर की बात है। भास्कर के दो रिपोर्टरों ने इस गांव की हकीकत को सामने लाने के लिए मौके से ग्राउंड रिपोर्ट की।
क्यों है हैंडपंप की कमी
भीतरो व उसकी ढाणी पहाड़ों में बसी है। रास्ता पथरीला है। ऐसे में डोकन से गांव तक की तीन किमी दूरी में आधा घंटा लगता है। पेयजल के लिए मात्र 8 हैंडपंप हैं। इनमें आधे सूख गए हैं। ढाई साल पहले लगे सरकारी ट्यूबवैल को चालू तक नहीं किया गया।
ऐसे पिछड़ा गांव
भास्कर को गांव के पूरणमल ने बताया कि बिजली लाने के लिए हमारी पांच पीढ़ियों ने संघर्ष किया है। 1977 में बिजली कनेक्शन के लिए सामान आ गया था, लेकिन एक दिन अचानक बिजली अधिकारी आए और सामान वापस ले गए। उन्होंने कहा कि गांव वालों ने कोई प्रयास किए, इसके बाद कुछ नहीं बताया। हमने दुबारा संघर्ष शुरू किया। 2000 में ग्रामीणों ने सामूहिक प्रयास किया। उस वक्त 37 परिवाराें ने आवेदन किया तो बिजली निगम ने 17 लाख रुपए के डिमांड नोटिस भेजे।
28 घरों तक ही पहुंची बिजली
बड़ी रकम की वजह से एक बार फिर मामला अटक गया। इसके बाद ग्रामीणों ने मिलकर विधायक, सांसद और अधिकारियों को 100 से ज्यादा ज्ञापन लिए। इसी का नतीजा रहा कि अब एक सरकारी योजना में औसत 10-10 हजार रुपए लेकर बिजली कनेक्शन दिए गए हैं। हालांकि अभी भी 28 घरों तक बिजली पहुंच सकी है। अब बचे घरों के लिए दीनदयाल उपाध्याय योजना में बिजली का प्रयास कर रहे हैं।
4 लोगों को मिली सरकारी नौकरी
भीतरों व उसकी ढ़ाणियों में रहने वाले 700 लोगों में सरकारी नौकरी में पांच लोग ही हैं। गांव के रहने वाले शिक्षक जयराम ने बताया कि बिजली-पानी व सड़क के अभाव के कारण शिक्षा में पिछड़ापन रहा। उनके अलावा बिरजू व राजेन्द्र सेना में हैं। हंसराज नवोदय स्कूल में कुक मैन हैं। बिजली लाने के प्रयासों में भी चारों ने मिलकर 30-40 हजार रुपए खर्च किये हैं।
गांव में अपनी बेटी देने से कतराते हैं लोग
अभावों के कारण रिश्तों में दिक्कत आ रही है। भीतरों व उसकी ढाणियों में 50 कुंवारे हैं। इनकी उम्र 35 से 45 साल है। इनके अलावा 55 से 60 साल की उम्र के 20 से ज्यादा कुंवारे हैं। ढाणी खातियाला के साक्षरता प्रेरक मिठूलाल ने बताया कि मूलभूत सुविधाएं नहीं होने से गांव में कोई रिश्ते नहीं करता। वो 6 भाई हैं एक की शादी हुई हैं पांच कुंवारे हैं। ऐसे ही हालात मौल्यावाली व वैरावाली ढाणी के हैं। भीतरों में भी रिश्ते नहीं होने से युवक कुंवारे हैं। बिजली-पानी, स्कूल-चिकित्सा एवं रास्ते की कमी के कारण लोग यहां लड़की का रिश्ते करने से कतराते हैं। अब बिजली कनेक्शन शुरू होने से उम्मीद बढ़ी है।
इन्होंने क्या कहा
डिस्कॉम के एसई ए के गुप्ता ने कहा है कि भीतरो गांव को करीब चार महीने पहले बिजली से जोड़ दिया। दीनदयाल उपाध्याय योजना के तहत गांव में कैंप लगाकर आवेदन लिए गए थे। यहां पर जितने आवेदन आए, उन्हें कनेक्शन दे दिए गए। बाकी परिवार यदि आवेदन करेंगे तो उन्हें भी बिजली कनेक्शन जारी कर दिए जाएंगे।
बन रहा विकास का माहौल
सपरंच अनिता देवी ने कहा है कि सरपंच बनने के बाद रायपुर मोड़ स्थित निजी स्कूल में जाकर 10 वीं पास की। आजादी के बाद पहली बार गांव में बिजली कनेक्शनों की शुरुआत होने से विकास का माहौल बनने की उम्मीद है।
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