जानिए, सामने अाई बड़ी विसंगति संस्कृत शिक्षा विभाग में गत वर्ष लागू किए गए सेवा नियमों में संशोधन के बिना ही राज्य सरकार प्रिंसिपल की डीपीसी करने जा रही है। इस संबंंध में उप सचिव अाभा बेनीवाल ने विभाग के डायरेक्टर मधुसूदन शर्मा से तत्काल प्रस्ताव मांग लिए हैं।
इसमें प्रत्येक लेक्चरर की एसीआर, संतान संबंधी घोषणा पत्र, न्यायालय प्रकरण आदि दस्तावेज मांगे हैं। जबकि 21 जनवरी को प्रदेश के शिक्षक संघ प्रतिनिधियों के साथ मीटिंग में संस्कृत शिक्षा मंत्री कालीचरण सराफ ने सेवा नियमों में सामने आई विसंगतियां दूर करने के बाद ही डीपीसी करने का आश्वासन दिया था। प्रदेश के शिक्षक अब मंत्री के इस निर्णय से खफा हैं। सेवा नियमों में बिना संशोधन के डीपीसी होती है तो 15-20 वर्ष से कार्यरत लेक्चरर भी प्रिंसिपल नहीं बन पाएंगे।
संस्कृत शिक्षा विभाग में करीब 40 साल बाद सरकार ने गत वर्ष सेवा नियम बदले थे। इसमें प्रवेशिका से लेकर शास्त्री आचार्य में संस्कृत की डिग्री वाले को ही प्रमोशन के योग्य माना गया था। तथा सामान्य विषय पढ़ा रहे शिक्षकों के प्रमोशन पर रोक लगा दी थी। जबकि सामान्य शिक्षकों के पास प्रवेशिका से लेकर (परंपरागत संस्कृत शिक्षा) शास्त्री एवं आचार्य डिग्री है और वे संस्कृत स्कूलों में गणित, विज्ञान, भूगोल अंग्रेजी आदि विषय पढ़ा रहे हैं। इन शिक्षकों ने सेवा नियमों के खिलाफ प्रदेशभर में आंदोलन किया था। इसके बाद मंत्री ने शिक्षक संघ प्रतिनिधियों के साथ मीटिंग करके विसंगतियां दूर करने की बात कही थी।
आगे क्या : 286लेक्चरर्स को नहीं मिल पाएगा प्रमोशन
संस्कृतशिक्षा विभाग में 837 में से 426 लेक्चरर कार्यरत हैं। इसमें से 286 सामान्य विषय पढ़ाने वाले और 140 संस्कृत पढ़ाने वाले हैं। डीपीसी होती है तो 286 लेक्चरर प्रमोशन से वंचित रहेंगे। राजस्थान शिक्षक संघ प्रदेश प्रतिनिधि अभयसिंह राठौड़ का कहना है कि सामान्य विषय पढ़ाने वाले शिक्षकों के साथ सरकार भेदभाव कर रही है। जिन्होंने 15-20 साल विभाग में काम किया, उन्हें ही दरकिनार किया जा रहा है। इससे संस्कृत शिक्षा और स्कूलों के बच्चों को भारी नुकसान हो सकता है।
^डीपीसी को लेकर प्रत्येक लेक्चरर की एसीआर संतान संबंधी मांगी गई जानकारी मुख्यालय भेज दी गई है। सेवा नियमों में फिलहाल संशोधन नहीं हो सका है। भगवतीशंकर व्यास, संभागीय संस्कृत शिक्षा अधिकारी
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इसमें प्रत्येक लेक्चरर की एसीआर, संतान संबंधी घोषणा पत्र, न्यायालय प्रकरण आदि दस्तावेज मांगे हैं। जबकि 21 जनवरी को प्रदेश के शिक्षक संघ प्रतिनिधियों के साथ मीटिंग में संस्कृत शिक्षा मंत्री कालीचरण सराफ ने सेवा नियमों में सामने आई विसंगतियां दूर करने के बाद ही डीपीसी करने का आश्वासन दिया था। प्रदेश के शिक्षक अब मंत्री के इस निर्णय से खफा हैं। सेवा नियमों में बिना संशोधन के डीपीसी होती है तो 15-20 वर्ष से कार्यरत लेक्चरर भी प्रिंसिपल नहीं बन पाएंगे।
संस्कृत शिक्षा विभाग में करीब 40 साल बाद सरकार ने गत वर्ष सेवा नियम बदले थे। इसमें प्रवेशिका से लेकर शास्त्री आचार्य में संस्कृत की डिग्री वाले को ही प्रमोशन के योग्य माना गया था। तथा सामान्य विषय पढ़ा रहे शिक्षकों के प्रमोशन पर रोक लगा दी थी। जबकि सामान्य शिक्षकों के पास प्रवेशिका से लेकर (परंपरागत संस्कृत शिक्षा) शास्त्री एवं आचार्य डिग्री है और वे संस्कृत स्कूलों में गणित, विज्ञान, भूगोल अंग्रेजी आदि विषय पढ़ा रहे हैं। इन शिक्षकों ने सेवा नियमों के खिलाफ प्रदेशभर में आंदोलन किया था। इसके बाद मंत्री ने शिक्षक संघ प्रतिनिधियों के साथ मीटिंग करके विसंगतियां दूर करने की बात कही थी।
आगे क्या : 286लेक्चरर्स को नहीं मिल पाएगा प्रमोशन
संस्कृतशिक्षा विभाग में 837 में से 426 लेक्चरर कार्यरत हैं। इसमें से 286 सामान्य विषय पढ़ाने वाले और 140 संस्कृत पढ़ाने वाले हैं। डीपीसी होती है तो 286 लेक्चरर प्रमोशन से वंचित रहेंगे। राजस्थान शिक्षक संघ प्रदेश प्रतिनिधि अभयसिंह राठौड़ का कहना है कि सामान्य विषय पढ़ाने वाले शिक्षकों के साथ सरकार भेदभाव कर रही है। जिन्होंने 15-20 साल विभाग में काम किया, उन्हें ही दरकिनार किया जा रहा है। इससे संस्कृत शिक्षा और स्कूलों के बच्चों को भारी नुकसान हो सकता है।
^डीपीसी को लेकर प्रत्येक लेक्चरर की एसीआर संतान संबंधी मांगी गई जानकारी मुख्यालय भेज दी गई है। सेवा नियमों में फिलहाल संशोधन नहीं हो सका है। भगवतीशंकर व्यास, संभागीय संस्कृत शिक्षा अधिकारी
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