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अब प्रोबेशनर ट्रेनी को मिलेंगे नियमित कर्मचारी के समान वेतन-भत्ते : राजस्थान शिक्षकों का ब्लॉग

अब प्रोबेशनर ट्रेनी को मिलेंगे नियमित कर्मचारी के समान वेतन-भत्ते
जयपुर हाईकोर्ट ने सरकारी नौकरी में नियुक्त होने वाले कर्मचारियों को दो साल तक प्रोबेशन अवधि के दौरान स्थाई मानदेय देने के नियम असंवैधानिक मानकर निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने सरकार को नियमित व तदर्थ आधार पर नियुक्त होने वाले सभी कर्मचारियों को दो साल की प्रोबेशन अवधि में नियमित कर्मचारियों के समान वेतन व सभी भत्ते देने के आदेश दिए हैं।
ऐसे सभी कर्मचारियों का जीपीएफ भी काटा जाएगा तथा प्रोबेशन अवधि समाप्त होने पर दो साल की प्रोबेशन अवधि वार्षिक वेतन वृद्वि व आकस्मिक अवकाश के लिए भी मान्य होगी।
मुख्य न्यायाधीश सुनील अंबवानी व न्यायाधीश वी.एस.सिराधना ने यह आदेश प्रार्थी गोपाल कुमावत की याचिका स्वीकार करते हुए दिए।
कोर्ट ने प्रार्थी को प्रथम नियुक्ति तारीख से नियमित होने की अवधि तक की अंतर राशि अदा करने के साथ ही 10 हजार रुपए बतौर खर्चे के देने के आदेश दिए हैं।
कोर्ट ने सेवा नियमों में संशोधन करने वाली 13 मार्च,2006 की अधिसूचना को संविधान के अनुच्देद 14,16,21,23 व 38 के विपरीत व संविधान की आत्मा के विपरीत माना है।
बेगार व जबरन मजदूरी करवा रही है सरकार ही-
जीवित रहने के लिए दिए जाने वाले भत्ते नहीं देना संविधान के अनुच्छेद-14,16,23 व 38 के तहत व नीति निर्देशक तत्वों के ही विपरीत है।
प्रोबेशनर ट्रेनी को न्यूनतम मजदूरी से भी कम स्थाई मानदेय नहीं दिया जा सकता। एेसा करना बेगार है जो कि अनुच्छेद-23 के तहत गैर-संवैधानिक है।
सरकार आदर्श नियोक्ता होने के कारण समान काम के लिए वेतन देने में दबाव नहीं कर सकती।
विशेष पद देते हैं क्या ?
दो साल की प्रोबेशन अवधि के बाद स्थाई होने पर कर्मचारी को कोई विशेष पद नहीं दिया जाता बल्कि वह समान पद पर समान काम ही करता रहता है। एेसे में दो साल की प्रोबेशन अवधि को वार्षिक वेतन वृद्वि के लिए नहीं गिनना अनुचित है।

यह विश्वास करना मुश्किल है कि 2006 में भी कोई व्यक्ति तीन हजार रुपए महीने की आय में जीवित रह सकता होगा और अब तो महंगाई के कारण तो संभव ही नहीं है। इसलिए ही सरकारी कर्मचारियों को महंगाई भत्ता दिया जाता है।
प्रोबेशन ट्रेनी के तौर पर काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों से जीवित रहने को भी या उधार मांगने की आशा नहीं की जा सकती।

स्थाई करने का अधिकार तो सुरक्षित है
राजस्थान में स्वीकृत पद पर नियमित तौर पर चयनित होने वाले स्थाई या तदर्थ कर्मचारी चाहे वह चतुर्थ श्रेणी हो या प्रशासनिक अफसर या प्रोफेसर आदि सभी को दो साल के प्रोबेशन ट्रेनी के तौर पर एक निश्चित स्थाई मानदेय दिया जात रहा है।
प्रोबेशन ट्रेनी होने के आधार पर वेतन- भत्तों में भेद भाव नहीं हो सकता। क्योंकि प्रोबेशन अवधि के बाद स्थाई करने या नहीं करने का सरकार को अधिकार है।

वेतन आयोग की सिफारिश भी नहीं
सरकारी कर्मचारियों को वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुरुप वेतन भत्ते मिलते हैं। एेसा कोई सबूत पेश नहीं है जिससे साबित होता हो कि आयोग ने प्रोबेशन अवधि में स्थाई व निश्चित मानदेय देने की सिफारिश की हो। केंद्र सहित किसी अन्य राज्य में एेसी प्रथा नहीं है।
दुष्ट प्रथा है यह
कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सहित किसी अन्य राज्य में एेसी प्रथा नहीं है। राजस्थान सरकार ने सरकारी नौकरी के आकर्षण के चलते एेसी दुष्ट प्रथा अपनाई है।

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