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Thursday 22 September 2016

राजनीतिक सिफारिश से तबादला कराने पर सरकारी कर्मचारी पर कार्रवाई का प्रावधान, फिर भी धड़ल्ले से डिजायरों से ही तबादले

जयपुर। प्रदेश में तबादलों पर लगी रोक के हटने से एक बार फिर तबादला सीजन शुरू हो चुका है और नेताओं—मंत्रियों के यहां तबादला चाहने वालों की भीड़ लग रही है। राजस्थान सिविल सेवा आचरण नियमों में साफ प्रावधान के बावजूद राजनीतिक सिफारिश से ही तबादले हो रहे हैं।
सरकारी कर्मचारियों के सेवा नियमों में यह प्रावधान है कि तबादले के लिए राजनीतिक सिफारिश करवाने पर सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी। यह प्रावधान अब भी जस का तस मौजूद है, लेकिन इसके बावजूद बिना नियमों में संशोधन किए धड़ल्ले से नेताओं की डिजायर पर तबादले हो रहे हैं।

केवल शिक्षा विभाग के लिए ही तबादला नीति के लिए कमेटी, कमेटी ने काम पूरा किया लेकिन नई नीति से तबादले होने पर संशय :
हर सरकार सरकारी कर्मचारियों के तबादलों के लिए तबादला नीति बनाने की बात करती आई है, लेकिन इसे लागू कोई सरकार नहीं करती। शिक्षा विभाग में तबादला नीति के लिए दो साल पहले गुलाबचंद कटारिया की अध्यक्षता में कैबिनेट सब कमेटी बनाई गई थी। सब कमेटी ने तबादला नीति को अंतिम रूप दे दिया है, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया। शिक्षा विभाग में अभी तबादलों से पाबंदी नहीं हटी है, लेकिन जब तबादले खुलेंगे, तब नई तबादला नीति से ही तबादले होंगे या पुराने ढर्रे पर ही होंगे। यह अभी साफ नहीं है।

पुलिस में तबादलों के लिए गाइडलाइन, फिर भी चल रही डिजायर :
पुलिस में तबादलों के लिए गाइडलाइन जरूर बनाई गई है, लेकिन डिजायर सिस्टम यहां भी धड़ल्ले से चल रहा है। तबादला नीति के लिए बनी कैबिनेट सब कमेटी के अध्यक्ष गुलाबचंद कटारिया का कहना है कि सब कमेटी ने अपना काम पूरा कर लिया है, उस पर कुछ क्वेरीज थी, जिन्हें जल्द पूरा कर दिया जाएगा। गृह विभाग और पुलिस में तबादलों के लिए गाइडलाइन बनी हुई है, उसी से तबादले हो रहे हैं। हमें केवल शिक्षा के तबादलों के लिए नीति का काम दिया गया था, बाकी विभागों के लिए नहीं। मैं तो जिस विभाग में रहा हूं, वहां गाइडलाइन से ही तबादले किए हैं, लेकिन डिजायर को तो मानना ही पड़ता है।

पुरानी रिपोर्टों को सरकारों ने खोलकर तक नहीं देखा :
तबादला नीति बनाने के लिए भैरोसिंह शेखावत के सीएम रहते हुए भी गुलाबचंद कटारिया कमेटी बनाई गई थी, लेकिन उस कमेटी की सिफारिश न तब लागू हुई न बाद मेें। कांग्रेस राज मेें पूर्व सीएम शिवचरण माथुर की अध्यक्षता वाले प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट को भी किसी सरकार ने खोलकर भी नहीं देखा। तबादला नीति लागू करने के बारे मेें किसी भी सरकार ने राजनीतिक इच्छा शक्ति नहीं दिखाई, जिसके कारण पुरानी कमेटियों की सिफारिशें लागू ही नहीं हो पाईं।


मंत्रियों का तर्क, तबादले के अधिकार छिन गए तो उन्हें कौन पूछेगा :
मतलब साफ है कि कोई भी सत्ताधारी पार्टी का मंत्री और नेता तबादला करने के अधिकार नहीं छोड़ना चाहता। मंत्रियों—नेताओं को लगता है कि अगर उन्होंने तबादलों के अधिकार छोड़ दिए तो उनका महत्व कम हो जाएगा। कई मंत्रियों ने आॅफ द रिकॉर्ड बातचीत में खुलकर स्वीकारा है कि तबादले करने के अधिकार नहीं रहे तो उन्हेें कौन पूछेगा। हालांकि यह भी कड़वा सच है कि तबादलों के कारण मंत्री और सरकारों का बहुत काम प्रभावित होता है। जब तबादलों से पाबंदी हटती है तो भीड़ से बचने के लिए मंत्रियों को अपने घर—दफ्तर तक से गायब होना पड़ता है, तबादले के नाम पर उद्योग चलाने तक के आरोप लगते हैं, लेकिन इन तमाम बाधाओं के बावजूद नेता चपरासी तक का तबादला खुद ही करना चाहते हैं।
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