लीगल रिपोर्टर. जोधपुर| शिक्षाविभाग ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्त हुए एक
बाबू को 35 साल की सेवा पूरी करने के बाद कहा, आपकी डिग्री फर्जी है और
आपका रिकॉर्ड भी विश्वविद्यालय में नहीं मिल रहा है, इसलिए आपको नौकरी से
बर्खास्त किया जा रहा है।
शिक्षा विभाग के इस आदेश के विरुद्ध दायर याचिका को विचारार्थ स्वीकार करते हुए जस्टिस निर्मलजीत कौर ने इस पर अंतरिम रोक लगाते हुए विभाग से चार सप्ताह में जवाब तलब किया है। याचिकाकर्ता कृष्ण कुमार की ओर से अधिवक्ता राजवेंद्र सारस्वत ने रिट याचिका दायर कर कोर्ट को बताया कि वर्ष 1984 में अनुकंपा के आधार पर बीकानेर में नौकरी दी गई। वर्ष 1985 में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक बीकानेर ने विभाग को एक पत्र लिखकर जानकारी दी कि कई व्यक्तियों ने फर्जी डिग्री के आधार पर नियुक्त प्राप्त की है। याचिकाकर्ता की डिग्री भी फर्जी है, इसलिए जांच की जाए। इस पर वर्ष 1986 में याचिकाकर्ता को चार्जशीट देकर उसके खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने के आदेश दिए। वर्ष 1987 में इस मामले में अनुसंधान अधिकारी नियुक्त किया गया, जिसने 22 साल बाद अपनी रिपोर्ट पेश की। उसमें बताया गया कि याचिकाकर्ता का गुजरात की संबंधित विश्वविद्यालय में रिकॉर्ड नहीं मिल रहा है। इसके बाद वर्ष 2016 को एकाएक उन्हें नियुक्ति तिथि से बर्खास्त कर दिया गया। अधिवक्ता सारस्वत ने कहा कि केवल रिकॉर्ड नहीं मिलने के आधार पर कैसे बर्खास्त किया जा सकता है? इसके अलावा 35 साल की सेवा में उन्हें नियमित प्रमोशन, वेतन वृद्धि तथा स्थानांतरण हुए हैं। इसके बाद सुनवाई का बिना कोई अवसर दिए, एकाएक बर्खास्त करना अनुचित है। कोर्ट ने प्रारंभिक सुनवाई में इतनी लंबी अवधि के बाद बर्खास्तगी को अनुचित मानते हुए शिक्षा विभाग को नोटिस जारी कर इस मामले में जवाब तलब किया है।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
शिक्षा विभाग के इस आदेश के विरुद्ध दायर याचिका को विचारार्थ स्वीकार करते हुए जस्टिस निर्मलजीत कौर ने इस पर अंतरिम रोक लगाते हुए विभाग से चार सप्ताह में जवाब तलब किया है। याचिकाकर्ता कृष्ण कुमार की ओर से अधिवक्ता राजवेंद्र सारस्वत ने रिट याचिका दायर कर कोर्ट को बताया कि वर्ष 1984 में अनुकंपा के आधार पर बीकानेर में नौकरी दी गई। वर्ष 1985 में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक बीकानेर ने विभाग को एक पत्र लिखकर जानकारी दी कि कई व्यक्तियों ने फर्जी डिग्री के आधार पर नियुक्त प्राप्त की है। याचिकाकर्ता की डिग्री भी फर्जी है, इसलिए जांच की जाए। इस पर वर्ष 1986 में याचिकाकर्ता को चार्जशीट देकर उसके खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने के आदेश दिए। वर्ष 1987 में इस मामले में अनुसंधान अधिकारी नियुक्त किया गया, जिसने 22 साल बाद अपनी रिपोर्ट पेश की। उसमें बताया गया कि याचिकाकर्ता का गुजरात की संबंधित विश्वविद्यालय में रिकॉर्ड नहीं मिल रहा है। इसके बाद वर्ष 2016 को एकाएक उन्हें नियुक्ति तिथि से बर्खास्त कर दिया गया। अधिवक्ता सारस्वत ने कहा कि केवल रिकॉर्ड नहीं मिलने के आधार पर कैसे बर्खास्त किया जा सकता है? इसके अलावा 35 साल की सेवा में उन्हें नियमित प्रमोशन, वेतन वृद्धि तथा स्थानांतरण हुए हैं। इसके बाद सुनवाई का बिना कोई अवसर दिए, एकाएक बर्खास्त करना अनुचित है। कोर्ट ने प्रारंभिक सुनवाई में इतनी लंबी अवधि के बाद बर्खास्तगी को अनुचित मानते हुए शिक्षा विभाग को नोटिस जारी कर इस मामले में जवाब तलब किया है।
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