इन दिनों देश में पकौड़ा पॉलिटिक्स को लेकर राजनीति हो रही है। लेकिन,
बेरोजगार युवाओं को रोजगार दिलाने को लेकर कोई बात नहीं कर रहा। जबकि
बेरोजगारी की दर तेजी से बढ़ रही है। दैनिक भास्कर ने पकौड़ा पॉलिटिक्स के
बीच ग्राउंड लेवल पर जाकर और एक्सपर्ट्स-आंकड़ों की मदद से बेरोजगारी का
दर्द और पकौड़ा बेचने वाले लोग क्या सोचते हैं, यह जानने की कोशिश की। सबसे
पहले बात करते हैं-बेरोजगारी की।
सीकर के जिला रोजगार कार्यालय में बीते तीन साल में 50,373 युवाओं ने
पंजीयन कराया है। जबकि बेरोजगारों का गैर सरकारी आंकड़ा दो लाख से ज्यादा
है। जिन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिली। जबकि प्राइवेट नौकरी के आंकड़े विभाग
के पास उपलब्ध नहीं है। राज्य सरकार इन युवाओं को सालाना छह हजार रुपए
बेरोजगारी भत्ता देती है। यानी 500 रुपए महीना। जबकि महंगाई दर तेजी से बढ़
रही है। सवाल यह है क्या कोई भी युवा 500 रुपए महीने में घर चला सकता है।
जबकि प्रदेश के आंकड़े और भी चिंताजनक है। चार साल में 4 लाख बेरोजगार
रोजगार विभाग पहुंचे, लेकिन विभाग 349 करोड़ रुपए खर्च करके सिर्फ 765
लोगों को प्राइवेट नौकरी दिला पाया। वो भी प्राइवेट नौकरी। सीकर जिले में
तीन साल में नौ करोड़ रुपए बेरोजगार भत्ता देने में खर्च किए जा चुके हैं।
रोजगार विभाग कहता है कि 1996 के बाद कोर्ट की रोक के बाद जिले में कोई भी
चपरासी, ड्राइवर गुप्र सी व डी की सरकारी नौकरी नहीं लग पाया है। जिला
रोजगार विभाग का तर्क है कि रोजगार मेलों में युवाओं को प्राइवेट कंपनियों
में जॉब दिलाया है, लेकिन इसमें ज्यादातर को वाटरमैन, फायरमैन, गार्ड जैसे
पदों पर 8 से 10 हजार रुपए महीने की नौकरी ही मिली। जिला रोजगार अधिकारी
चैनसिंह शेखावत ने बताया कि जिले में इंडस्ट्रीयल बेल्ट स्थापित करने पर
जोर दिया जाना चाहिए। अब इंडस्ट्री डिमांड बेस्ट एजुकेशन पर भी फोकस किया
जाना चाहिए। जिस अनुपात में बेरोजगार बढ़ रहे हैं, उतनी नौकरियां नहीं है।
होम सिकनेस, कम वेतन आैर कैंपस होने पर संबंधित जॉब में रुचि नहीं होना भी
बेरोजगारी की बड़ी वजह हैं।
पकौड़ा पॉलिटिक्स पर बहस से पहले इस आंकड़े को देख लें, कोर्ट में अटकी हुई हैं 70 हजार भर्तियां
सरकार के पास नई भर्तियां नहीं हैं। हालात यह है कि आरपीएससी ने
अभी तक परीक्षा का कोई नया कैलेंडर जारी नहीं किया है। सिर्फ सैकंड ग्रेड
शिक्षक भर्ती-विशेष शिक्षक और रीट परीक्षा के बाद सरकार के पास कोई बड़ी
भर्ती नहीं रहेगी। लोग सैकंड ग्रेड, स्कूल लेक्चरर और आरएएस जैसी बड़ी
भर्तियों के विज्ञापनों का इंतजार कर रहे हैं। बेरोजगार युवाओं का कहना है
कि भाजपा सरकार सिर्फ नौकरी की बात कर रही है। रोजगार के अवसर पैदा नहीं
किए जा रहे हैं। हालात यह है कि 70 हजार से ज्यादा नौकरी तो कोर्ट में अटकी
हुई हैं। इसके अलावा कई कई भर्तियों के रिजल्ट समय पर जारी नहीं किए जाते।
इसकी वजह से युवाओं के अवसर हाथ से निकलते रहते हैं। युवा रिजल्ट के
इंतजार में बैठा रहता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार को प्रक्रिया में
बदलाव करना होगा। रिजल्ट समय पर जारी करने होंगे और पारदर्शिता बनानी होगी
ताकि भर्तियां कोर्ट में जाकर नहीं अटके। इसके अलावा रोजगार कार्यालयों को
भी हाईटेक करना होगा। भले ही यहां पर सरकारी नौकरियां उपलब्ध नहीं हो पाए,
लेकिन सरकार को यह भी देखना होगा कि वे युवाओं को सम्मानजनक और उनकी
डिग्री और काबलियत के हिसाब से नौकरी उपलब्ध करा सके।
सुभाष चौक स्थित जवाहरजी पांडया की दुकान पर काम करते कारीगर।
रोजगार विभाग कैसी नौकरी दिलाता है दो कहानियों से समझें, युवाओं का दर्द
नीमकाथाना के पूरणमल ने बताया कि उन्होंने बीए की है। उन्हें
रोजगार मेले में गार्ड की नौकरी के लिए आवेदन किया, लेकिन यहां 12 घंटे की
नौकरी करने पर 8 हजार रुपए महीना मिलता था। इसमें से कमरे का किराया और
पूरे महीने के राशन में ही 5 हजार रुपए खर्च हो जाते थे। इसलिए वहां से
नौकरी छोड़ना पड़ी। दूसरी कंपनियों और फैक्ट्रियों में भी यही स्थिति है।
आईटीआई पास लोसल के सुनील महला ने बताया कि वर्तमान में प्राइवेट कंपनी
में काम कर रहे हैं। यहां वेतन 7690 रुपए हैं। इसमें से पीएफ आदि काटकर
ठेकेदार के द्वारा किसी महीने 5 हजार 900 किसी महीने 6 हजार 200 रुपए वेतन
दिया जाता है। इसमें भी छुट्टियों के पैसे कट जाते हैं। सरकारी नौकरी लग
जाएगी तो भविष्य में पक्की नौकरी के चांस तो रहेंगे।
बेरोजगारी भत्ते का गणित
बेरोजगारी भत्ते को वर्तमान में अक्षत योजना के नाम से जाना जाता
है। इसमें एक अप्रैल 2017 से पुरुष बेरोजगार को 650 रुपए प्रतिमाह और महिला
व विशेष योग्यजन बेरोजगार को 750 रु. प्रतिमाह भत्ता देने का प्रावधान है।
इस तिथि से पहले महिला-पुरुष को 500 रुपए और विशेष योग्यजन को 600 रुपए
बेरोजगारी भत्ता दिया जा रहा था। पिछले 4 सालों में 89,978 बेरोजगारों को
इस योजना का लाभ मिला है। भत्ता स्नातक बेरोजगारों को 2 साल तक दिया जाता
है।
रोजगार कार्यालयों का बजट | राज्य में रोजगार कार्यालयों को चार साल
में 358.41 करोड़ आबंटित किए गए। इनमें से 349.43 करोड़ खर्च किए गए।
अधिकांश राशि बेरोजगारी भत्ते के रूप में खर्च की गई।
रोजगार की परिभाषा
अगर कोई व्यक्ति काम करने की इच्छा रखता है और उसे उसकी काबिलियत के
हिसाब से काम मिले तो उस काम को रोजगार की श्रेणी में रखा जाता है। साथ ही
एक अन्य परिभाषा भी साथ में जुड़ी है कि अगर कोई ऐसा काम जो भले व्यक्ति की
काबिलियत के हिसाब से न हो लेकिन उस काम से उसकी आजीविका चलती हो तो इसे भी
रोजगार की श्रेणी में रखा जाता है।
अब पकौड़ा बेचने वालों से उनकी व्यथा भी जान लीजिए
1. रेलवे स्टेशन पर पकौड़ी बचने वाले शंकर लाल एवं जगन्नाथ का
कहना है कि पकौड़ी हमेशा हर मौैसम में नहीं चलती है। पकौड़ी ज्यादा
ठंड-बारिश के मौसम बिकती है। उसके बाद अौसत धंधा चलता है। घर परिवार की
जिम्मेदारी होती है। खर्चा भी मुश्किल से निकलता है। नेताओं का क्या है कुछ
भी कह देते हैं, वो आकर कारोबार करें तो हमारी परेशानी समझ पाएंगे।
2. पकौड़े बेचना कोई गलत काम नहीं : जवाहर जी पांडया दुकान के मालिक
जानकी प्रसाद इंदौरिया ने कहा कि पकौड़ों पर राजनीति खूब हो सकती है।
लेकिन, सही बात यह है कि पकौड़े बेचना कोई गलत काम नहीं है। इसके जरिए कई
परिवार चलते हैं। वे कहते हैं कि चाय वाला प्रधानमंत्री बने यह इत्तफाक है,
लेकिन सभी पकौड़ी वाले मंत्री-प्रधानमंत्री नहीं बन सकते हैं। हां, पकौड़ी
बेचने वालों का सम्मान होना चाहिए।
पकौड़ा बेचने वाले इनफॉर्मल सेक्टर में आते हैं, 60 फीसदी रोजगार इसी क्षेत्र में
अर्थव्यवस्था को दो बुनियादी सेक्टरों में बांटा गया है। पहला है
फॉर्मल सेक्टर, इसके तहत वे सारे उद्योग-धंधे आते हैं जिनका विधिवत
रजिस्ट्रेशन है। जिनमें 10 से अधिक पंजीकृत कामगार काम करते हैं। सरकारी और
प्राइवेट सेक्टर की कॉरपोरेट नौकरियां इसके दायरे में आती हैं। दूसरा है
इनफॉर्मल सेक्टर। इसके तहत वे काम आते हैं जो फॉर्मल नहीं हैं। देश के 60
फीसदी से अधिक रोजगार इसी क्षेत्र में पैदा होते हैं और सारे विकासशील
देशों की तरह भारत की अर्थव्यवस्था में भी इस क्षेत्र की सबसे बड़ी भूमिका
है। इस लिहाज से भारत के तमाम कानून चाय बेचने, पकौड़ा बेचने और अखबार
बांटने को रोजगार के दायरे में मानते हैं।
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