Advertisement

व्यावहारिकता खो रही है शिक्षा प्रणाली

अजमेर (नेमीचंद तम्बोली) : राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष प्रो. बी.एल. चौधरी ने कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली अपनी व्यवहारिकता खो रही हैं, जिसके कारण समाज में लगातार संकुचित
मानसिकता का विकास हो रहा है। मंगलवार को महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ एवं वाणिज्य संकाय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए चौधरी ने कहा कि शिक्षा के मुख्य सूत्रधार शिक्षक व शिक्षार्थी हंै। वर्तमान में विश्वविद्यालयी परीक्षा के बाद कोई ऐसा निकाय नहीं है जो बिना किसी परीक्षा के नौकरी दे दे। शिक्षा कैसी हो और शिक्षा किसे देनी चाहिए, यह दोनों ही महत्वपूर्ण हंै। उन्होंने कहा कि वर्तमान मूल्यांकन प्रणाली का आलम यह है कि परीक्षक उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में रुचि नहीं ले रहे हैं। इसके पीछे पारिश्रमिक भी एक मुद्दा माना जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह समय की आवश्यकता है कि नई शिक्षा प्रणाली बनाई जाए जो आत्मिक, मानसिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय व्यवहार की पोषक हो। उच्च उपाधि के मूल्यांकन का स्तर भी उस उपाधि के अनुरूप होना चाहिए। समारोह की अध्यक्षता कर रहे महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कैलाश सोडानी ने कहा कि शिक्षा केन्द्रों को स्वायत्ता प्रदान की जानी चाहिए। स्वायत्ता के अभाव में विश्वविद्यालय अपने स्तर पर शिक्षकों की नियुक्ति जैसे निर्णय नहीं ले सकते हैं। ऐसी स्थिति में विश्वविद्यालयों को परमुखापेक्षी होना पड़ता है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय संगठन मंत्री महेन्द्र कपूर ने कहा कि यह शिक्षा व्यवस्था का दुर्भाग्य है कि जो शिक्षा के बारे में नहीं जानते हैं वे पाठ्यक्रम का निर्माण कर रहे हैं। संगोष्ठी के निदेशक प्रो. बी.पी. सारस्वत ने अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।
शिक्षक में निर्माण एवं सृजन की ताकत जरूरी : दशोरा
इससे पूर्व संगोष्ठी के दूसरे दिन तृतीय तकनीकी सत्र का का आयोजन किया गया। सत्र के मुख्य वक्ता कोटा विश्वविद्यालय कोटा के कुलपति प्रो. पी.के. दशोरा ने कहा कि व्यक्ति का जीवन में हर जगह मूल्यांकन होता है, लेकिन इसके लिए शिक्षक के पास निर्माण एवं सृजन की ताकत होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज विश्वविद्यालय केवल परीक्षा समय पर करवा लेना अपनी उपलब्धि मानता है, जो उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि शिक्षक वही बने जो इस क्षेत्र में समर्पित होकर कार्य कर सके। सत्र की अध्यक्षता प्रो. रितु माथुर ने की। इस सत्र में 10 वक्ताओं ने अपने विचार रखें।
संगोष्ठी के आयोजन सचिव डॉ. एस.के. बिस्सु ने बताया कि दो दिवसीय संगोष्ठी में 40 प्रतिभागियों ने पत्र वाचन किया एवं 113 प्रतिभागी ने पंजीयन करवाया। बिस्सु ने कहा कि दो दिवसीय इस संगोष्ठी में हुए मंथन को सार रूप में राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार को भेजा जाएगा।

UPTET news

Recent Posts Widget
'; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();

Photography

Popular Posts