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तो ऐसे हो रही शिक्षकों की मौज

सीकर प्रदेश एवं जिला स्तरीय शैक्षिक सम्मेलनों के नाम पर शिक्षक अवकाश मना रहे है। इन सम्मेलनों का मकसद शिक्षा में नवाचार एवं शैक्षिक स्तर में सुधार करना है। इन सम्मेलनों के नाम पर चार दिन का अवकाश तय है। लेकिन इन सम्मेलनों में शिक्षकों की उपस्थिति 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होती है।
शिक्षकों की मनमर्जी के चलते ना तो सम्मेलनों का उद्ेश्य पूरा हो रहा है, और ना ही शिक्षक बच्चों को शिक्षा देने का काम कर रहे है।


शिक्षकों के 35 संगठन संचालित
प्रदेशभर में शिक्षकों के करीबन 35 संगठन संचालित है। इनमें केवल 10 या 12 संगठन ही शिविरा कलैण्डर के अनुसार विधिवत रूप से सम्मेलन आयोजित करते हैं। प्रदेश के अन्य शिक्षक संगठन अपने लेटर हेड पर सम्मेलन मना रहे है। सम्मेलन के नाम पर हर साल इसी प्रकार प्रदेश में शिक्षकों की मनमर्जी का खेल चल रहा है। सरकार के हर साल इन सम्मेलनों में लाखों रुपए खर्च होते है। लेकिन इन शिक्षकों को सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए पाबंद नहीं किया जाता है।शैक्षिक सम्मेलन में शिक्षा के मुद्दों पर चर्चा होती है। सम्मेलन के नाम पर अवकाश का उपभोग नहीं, जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए। सम्मेलन शिक्षकों के लिए होता है, उपस्थित नहीं होने पर सरकार व समाज के सामने कमजोरी प्रदर्शित होती है।
उपेंद्र शर्मा, प्रदेश महामंत्री राजस्थान शिक्षक संघ शेखावत
शैक्षिक सम्मेलनों में शिक्षकों की समस्याओं पर चर्चा कर इन सुझावों को सरकार तक पहुंचाने का काम किया जाता है। लेकिन जब शिक्षक ही इन सम्मेलनों में भाग नहीं लेंगे, तो उनकी समस्याओं का निदान कैसे होगा। इसलिए हर शिक्षक को इन सम्मेलनों हिस्सा लेना चाहिए।
जगदीश दानोदिया, शिक्षक नेता

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