राजस्थान लोक सेवा आयोग की ओर से आयोजित की जाने वाले प्रधानाध्यापक भर्ती
के लिए राजकीय सेवा में अध्ययनरत शिक्षकों को जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक
से अनुभव प्रमाण पत्र नहीं मिल रहे हैं।
अनुभव प्रमाण पत्र को प्रमाणित
करवाने के लिए 150 से ज्यादा शिक्षकों ने जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में
आवेदन किया हुआ है। वहीं जिला शिक्षा अधिकारी जयपुर में प्रशिक्षण के लिए
गए हुए हैं, इस कारण उन्हें अनुभव प्रमाण पत्र नहीं मिल रहे। अतिरिक्त जिला
शिक्षा अधिकारी प्रशासन ओमसिंह राजपुरोहित के पास डीईओ का चार्ज है। लेकिन
उनके पास सामान्य व्यवस्था से संबंधित कार्य करने का ही अधिकार है।
सेवारत शिक्षक गजेंद्रसिंह, अमराराम, चांदकंवर,नवनीत और विजय धोलिया ने
बताया, कि राजकीय सेवा में जो शिक्षक कार्य कर रहे हैं उनका रिकार्ड शाला
दर्पण पर उपलब्ध है। वहीं पीईईओ व प्रधानाचार्य उनको वेरिफाई करके दे रहे
हैं। डीईओ को तो सिर्फ काउंटर साइन करने है और उसी आधार पर अनुभव प्रमाण
पत्र जारी करना है। इधर राजस्थान शिक्षक संघ प्रगतिशील के जयकिशन पंचारिया,
राजस्थान शिक्षक पंचायतीराज कर्मचारी संघ के प्रदेश संयुक्त महामंत्री
भंवराराम जाखड़, शारीरिक शिक्षक संघ के हापूराम चौधरी, मंत्रालयिक कर्मचारी
नेता भागीरथ मेघवाल ने कहा, कि राजकीय सेवा में कार्यरत शिक्षकों को अनुभव
प्रमाण पत्र में छूट देनी चाहिए। उप निदेशक माध्यमिक बंशीधर गुर्जर ने
बताया, कि अनुभव प्रमाण पत्र जारी नहीं हो रहे है तो एडीईओ से नोट शीट
तैयार करवा डीईओ माध्यमिक द्वितीय से अनुभव प्रमाण पत्र जारी करवाए जाएंगे।
डीईओ के लौटने तक करना होगा इंतजार
नियमों के अनुसार जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक प्रथम अवकाश पर
जाते हैं या प्रशिक्षण में इसका चार्ज डीईओ द्वितीय माध्यमिक को दिया जाता
है। लेकिन एक सप्ताह के लिए ट्रेंनिग में गए डीईओ प्रथम ने चार्ज अतिरिक्त
जिला शिक्षा अधिकारी प्रशासन ओमसिंह राजपुरोहित को दे दिया। इसके चलते
सामान्य कार्य तो हो रहा है लेकिन अनुभव प्रमाण पत्र के साथ ही दूसरे
प्रशासनिक कार्य नहीं हो पा रहे है। डीईओ सोमवार को डयूटी ज्वाइन करेंगे
ऐसे में अनुभव प्रमाण पत्र के लिए शिक्षकों को और इंतजार करना होगा।
व्याख्याता से स्कूल प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति को चुनौती अंतिम सूची पर कोर्ट की रोक
लीगल रिपोर्टर. जोधपुर | स्कूल व्याख्याता पद से प्रधानाचार्य पद
पर पदोन्नति के लिए शुरू की गई प्रक्रिया को राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती
दी है। कोर्ट ने याचिका को विचारार्थ स्वीकार करते हुए प्रक्रिया को जारी
रखने के लिए कहा है, लेकिन अंतिम सूची बिना उसकी अनुमति के फाइनल नहीं करने
के आदेश दिए हैं। याचिकाकर्ता सुभाष व अन्य की ओर से अधिवक्ता कुलदीप
माथुर व अंकुर माथुर ने याचिका दायर कर कोर्ट को बताया कि व्याख्याता पद से
प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति के लिए वरीयता सूची जारी की गई थी। यह वरीयता
सूची बनाते समय विभाग द्वारा व्याख्याता पद पर चयनित सभी विषयों को समान
मान लिया और उनके चयन के समय के प्राप्तांकों के आधार पर वरीयता देते हुए
अंतरिम वरीयता सूची 26 मार्च 2018 को जारी कर दी। याचिकाकर्ता की ओर से
पैरवी करते हुए अधिवक्ता माथुर ने कोर्ट को बताया कि वरीयता सूची में शामिल
व्याख्याता अलग-अलग विषय से हैं। वे सभी अलग-अलग प्रश्न पत्र के आधार पर
अलग-अलग मेरिट से चयनित हुए हैं और उनका परिणाम भी अलग-अलग तिथि को जारी
किया गया था। ऐसे में सभी अभ्यर्थियों को उनके द्वारा प्राप्तांकों के आधार
पर वरीयता प्रदान करना गलत है। इस पर जस्टिस अरुण भंसाली ने प्रारंभिक
सुनवाई के बाद विभाग को पदोन्नति प्रक्रिया तो पूर्ण करने की छूट दी है,
लेकिन पदोन्नति आदेश जारी करने पर अंतरिम रोक लगा दी, यानी फाइनल आदेश बिना
कोर्ट की अनुमति के जारी नहीं होंगे।
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