बीए तक मुझे यह भी नहीं पता था कि आरएएस क्या होता है? किसे कहते हैं
आरएएस? एक शिक्षक से पूछा तो उन्होंने कहा, क्या करेगा जानकर? आरएएस बनना
तेरे बस की बात नहीं, बहुत मेहनत लगती है। फिर भी मैंने उनसे विनती कर जाना
कि आरएएस कौन होता है, और किस तरह इसकी पढ़ाई की जाती है।
वर्ष 2013 में
परीक्षा दी, लेकिन असफल रहा, तो दोस्तों ने भी यही बात कही कि छोड़ दे,
तेरे बस की बात नहीं है, तू कोई और कंपीटिशन एग्जाम की तैयारी क्यों नहीं
करता। मैंने हिम्मत नहीं हारी और तैयारी करता रहा। वर्ष 2013 की आरएएस
परीक्षा रद्द हो गई और दूसरी बार फिर हुई और उसमें मैं सफल रहा। मैंने अपनी
जिद और मेहनत से यह मुकाम हासिल कर लिया। यह कहानी है शहर के युवा आरएएस
योगेश खत्री की। महज 11 साल की उम्र में एक रोड एक्सीडेंट में इन्होंने
अपनी दोनों आंखों की रोशनी खो दी थी, इसके बाद शुरू हुआ एक ऐसा संघर्ष, जो
आरएएस बनने तक जारी रहा। योगेश बताते हैं कि मई 1992 में जन्म के बाद से सब
कुछ सही चल रहा था। कड़क्का चौक में एक स्कूल में उन्होंने पढ़ाई शुरू की।
कुछ समय बाद परिवार फॉयसागर रोड गोटा कॉलोनी में शिफ्ट हो गया तो उन्हें
भी दूसरी के बाद यहां आना पड़ा। घर के पास ही एक स्कूल में उन्होंने एडमिशन
ले लिया। जीवन में नया मोड़ वर्ष 2003 में हुए एक्सीडेंट के बाद आया।
इस हादसे में दोनों आंखों की रोशनी चली गई और छठी कक्षा के बाद उन्हें
स्कूल को अलविदा कहना पड़ा। पिता सुरेश कुमार खत्री की उम्मीद भी खत्म हो
गई और वे सोचने लगे कि अब बेटे का भविष्य भी अंधकारमय हो गया है। मां लीला
देवी भी पूरे दिन सिर्फ रोती रहती थीं। इस हादसे के बाद योगेश की शिक्षा को
लेकर प्रगति ठप ही हो गई थी।
जयपुर पर्यटन विभाग के दफ्तर में कार्यरत योगेश।
ओपन बोर्ड से 10वीं की और फिर आगे चलते ही गए
योगेश के अनुसार उनके एक शिक्षक जो खुद नेत्रहीन थे हाथीभाटा
निवासी रामदास सोनी ने उन्हें राजस्थान ओपन बोर्ड से दसवीं की परीक्षा देने
के लिए प्रेरित किया। यही प्रेरणा एक और शिक्षा किशनचंद बागवानी ने भी दी,
वे भी नेत्रहीन ही थे। दो वर्षों में उन्होंने दसवीं की परीक्षा पास की और
12वीं भी ओपन बोर्ड से पास की। इसके बाद जीसीए में फर्स्ट ईयर में नियमित
छात्र के रूप में पढ़ाई करने लगा। साथ ही माखूपुरा बाइपास पर आरएससीआईटी
में कंप्यूटर कोर्स करने लगा। यहां दो युवकों की बात सुनी, वे आरएएस के
बारे में चर्चा कर रहे थे। मैंने उनसे पूछा, इसके बाद एक शिक्षक से आरएएस
के बारे में जानकारी ली तो उन्होंने कहा तुम्हारे बस की बात नहीं। विनती की
तो उन्होंने आरएएस के बारे में बताया। फार्म भरने के अंतिम दिन आवेदन किया
और तैयारी में जुट गया। इस दौरान प्राइवेट एमए भी किया।
उद्योग मंत्री राजपाल सिंह शेखावत से सम्मान लेते योगेश खत्री।
स्टडी मेटेरियल में दिक्कत, नहीं मिलते थे स्क्राइब
पढ़ाई के दौरान सबसे बड़ी दिक्कत स्टडी मेटेरियल को लेकर थी। कोई पढ़कर
सुनाने वाला नहीं था। दोस्तों से आग्रह करता और उनसे पढ़कर सुनाने कहता।
सूचना केंद्र और गांधी भवन लाइब्रेरी में भी लोगों से विनती कर उन्हें
पढ़ने के लिए कहता और मैं सुनकर तैयारी करता। कॉलेज आने-जाने में दिक्कत
होती थी। सिटी बस से जाता था। कई बार आधी तो कई बार पूरी क्लास छूट जाती
थी। कई बार स्कूल के बाहर खड़ा रहता कि कोई कक्षा तक छोड़ दे। काफी संघर्ष
करना पड़ा इन दिनों। पेपर देते समय स्क्राइब (लेखक) नहीं मिल पाता था। पेपर
छूटने का डर बना रहता है, ऐसे में दोस्तों को तैयार करता था। देहरादून
एनआईवीएच राष्ट्रीय बोलता पुस्तकालय से स्टडी मेटेरियल भी मिलने लगा।
सफलता मिली तो खुशी का ठिकाना न रहा
आरएएस -2013 में असफल रहा लेकिन यह परीक्षा रद्द हुई। फिर से हुई
तो वे प्री में पास हो गए। इसके बाद कुछ उम्मीद बनी, पिता भी सहयोग करने
लगे। दोस्तों ने भी सहयोग किया। आरएएस मेन्स की तैयारी करने लगा। आरपीएससी
में इंटरव्यू भी ठीक रहा। जिस दिन रिजल्ट आया तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
दृष्टिबाधित श्रेणी में सातवां स्थान प्राप्त किया था। हरीशचंद्र माथुर
राजस्थान लोक प्रशासन प्रशिक्षण केंद्र में वर्ष 2013 के बैच में 285
प्रशिक्षु में सबसे कम उम्र का प्रशिक्षु रहा। योगेश ने बताया कि वर्तमान
में वे जयपुर में पर्यटन विभाग में सहायक निदेशक के पद पर पदस्थ हैं। उनके
समाज सहस्त्र अर्जुन समाज में राजस्थान में 250 से 500 परिवार हैं, उनमें
से वे एकमात्र आरएएस हैं। उद्योग मंत्री राजपाल सिंह शेखावत ने वर्ष 2017
में सम्मान समारोह में उन्हें सम्मानित भी किया। योगेश बताते हैं कि वे अब
जहां भी जाते हैं, ब्लाइंड स्कूल जरूर जाते हैं और उन बच्चों की समस्याओं
का समाधान करते हैं।
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