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Thursday 14 March 2019

राजस्थान का पहला ऐसा सरकारी स्कूल जहां डिजिटल गुल्लक से बचत करते हैं विद्यार्थी...

श्रीगंगानगर। जमाना अब बचपन की मिट्टी की गुल्लक वाला नहीं रहा। अब तो डिजिटल युग है, लिहाजा बचत भी डिजिटल होने लगी है। मतलब मिट्टी के गुल्लक की जगह अब डिजिटल गुल्लक ने ली है। बचत का यह मामला रोचक इसलिए भी है क्यों कि यह एक प्राथमिक स्कूल से जुड़ा है।
वैसे तो सरकारी स्कूल का नाम आते ही जेहन में एक ऐसी तस्वीर उभरती है, जहां शैक्षिक सुविधाओं का अभाव होने के साथ बच्चों के मस्ती करने का मंजर नजर आता है। लेकिन कस्बे के वार्ड 12 (पुराना दस) में स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय इस धारणा को बदलता नजर आ रहा है। ये संभवत: राज्य का पहला ऐसा प्राथमिक सरकारी स्कूल होगा, जिसमें कक्षा एक से पांचवी तक अध्ययनरत सभी बच्चों का बैंक खाता खुला है। और तो और मॉडर्न स्कूलों की तर्ज पर शिक्षण के लिए एक डिजिटल कक्ष भी बना है। और यह सब वहां एक कार्यरत एक प्रतिनियुक्त शिक्षक के प्रयास से ही संभव हो सका है।

हालात देख पिघला मन...
मूल रूप से वार्ड एक के प्राथमिक विद्यालय में पदस्थापित शिक्षक दिनेश डोडा ने बताया कि उन्होंने 17 दिसंबर 2016 को इस स्कूल में ज्वाइन किया। उस समय अध्ययनरत 34 बच्चों वाले इस स्कूल के भवन व अन्य हालात देखकर वे सन्न रह गए। जीर्ण-शीर्ण भवन व चारदीवारी, पेयजल की अनुपलब्धता, बिगड़ी साफ-सफाई और स्कूल की अन्य अव्यवस्थाएं देखकर एकबारगी तो उन्होंने यहां से वापिस जाने की सोची। लेकिन नन्हें बच्चों की हालात देख उनका मन पिघल गया और कुछ अलग करने के विचार से उन्होंने काम करना शुरू किया। पिछले साल (2018-19) की शुरूआत में ही उन्होंने कुछ नवाचार अपनाए। परिणामस्वरूप वहां नामांकन बढक़र 61 हो गया। डोडा ने बताया कि सबसे पहले स्कूल भवन का जीर्णोद्धार करवाया गया। स्कूल की टूटीफूटी चारदीवारी का मरम्मत कार्य पूरा होते ही कक्षाकक्षों में रंग-रोगन करवाया।

बैंकिंग से जोड़ दिए सभी बच्चे...
शिक्षक डोडा ने बताया कि स्कूल में अध्यनरत सभी बच्चे दिहाड़ी मजदूरी कर आजीविका कमाने वाले परिवारों से हैं। बिगड़े आर्थिक हालात के मद्देनजर स्कूल में बच्चों की उपस्थिति कम रहती थी। नामांकित व अनामांकित बच्चों को स्कूल से जोडऩे के लिए उन्होंने सबसे पहले भामाशाह के माध्यम से पूर्ण गणवेश का प्रबंध करवाया। इसके बाद बचत की आदत डालने के लिए बच्चों को उनके नाम का बैंक अकाउंट खुलवाने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद एक दिन केनरा बैंक के कार्मिकों को वहीं बुलाकर सभी 61 बच्चों का शून्य बैलेंस का बैंक खाता खुलवाया गया। इस पर बच्चों के अभिभावकों खासतौर पर उनकी माताओं ने काफी खुशी जताई। डोडा ने बताया कि इससे जहां बच्चों को बचत करने का शौक पैदा हुआ। वहीं उनकी माताएं भी कुछ धन बच्चों के खाते में रखने लगी। कक्षा पांच की आरजू व सलेन्द्र, कक्षा चार की लक्ष्मी व मोहित सहित करीब 15 बच्चों ने बताया कि वे रुपए जमा करवाने बैंक खुद भी चले जाते हैं। इसके अलावा कक्षा तीन के गौतम, कक्षा दो की निशा व कक्षा एक के लखन ने बताया कि वे भी अपने अभिभावकों के साथ बैंक जाते हैं। गौरतलब है स्कूल की कक्षा एक में 18, दो में 12, तीन में 14, चार में 6 व कक्षा पांच में 11 बच्चे अध्ययनरत हैं।

खाने से पहले होती है प्रार्थना...
ऐसा शायद निजी स्कूलों में भी होता होगा कि यहां सभी बच्चों के पहचान-पत्र बने हैं जिन पर उनका नाम, माता-पिता के नाम के साथ उनका आधार नंबर, छात्र प्रवेश संख्या, जन्म दिनांक, ब्लड गु्रप आदि भी अंकित है। हाल ही में भामाशाहों की मदद से स्कूल में स्मार्ट क्लास (डिजिटल) भी शुरू की गई है। इसमें वाइ-फाइ इंटरनेट के माध्यम से एक एलइडी पर अध्ययन सुविधा उपलब्ध है। संगीत व रंगीन तस्वीरों के साथ अध्ययन कर बच्चे खुशी महसूस करते हैं। इसके साथ बच्चों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए हैल्पिंग हैंड वुमन वेलफेयर सोसायटी की ओर से स्कूल में वाटर कूलर मय फिल्टर लगवाया गया है। और भारतीय संस्कृति के अनुरूप मिडे-डे मील के तहत भोजन ग्रहण करने से पूर्व स्कूल के बच्चे भगवान की प्रार्थना और गायत्री मंत्र का जाप भी करते हैं। इसके अलावा बच्चों ने 15 अगस्त व 26 जनवरी पर प्रशासन की ओर से आयोजित सामूहिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर पुरस्कार भी जीते हैं।


एक दिन के बच्चे का भी खुलता है बैंक अकाउंट...
केनरा बैंक के एकल खिडक़ी परिचालक जितेन्द्रसिंह यादव ने बताया कि एक दिन की उम्र के बच्चे का भी बैंक अकाउंट खोला जा सकता है। लेकिन दस साल से छोटे बच्चों को नामित अभिभावक के माध्यम से ही जमा-भुगतान किया जाता है। जबकि दस साल की उम्र होने पर बच्चे के खुद के हस्ताक्षर प्रमाणित कर जमा व भुगतान की सुविधा दी जाती है।

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