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आखिर किस पर करें भरोसा, यह तो तोड़ रहे युवाओं के सुनहरे सपने

अजमेर. प्रतियोगी परीक्षाएं और सरकारी नौकरियों का लाखों विद्यार्थियों-अभ्यर्थियों को इंतजार रहता है। परीक्षा के नतीजे उनकी मेहनत का आईना होते हैं। संस्थानों के लिए तयशुदा सीमा में परिणाम तैयार करना और समय पर निकलना वास्तव में चुनौतीपूर्ण है। लेकिन भर्ती परीक्षाएं कराने वाले केंद्र ही भरोसा तोडऩे लग जाएं तो अभ्यर्थियों की उम्मीदों पर पानी फिरना तय है।

तोड़ रहे भरोसा
राजस्थान लोक सेवा आयोग की आरएएस 2013 की परीक्षा, कनिष्ठ लिपिक भर्ती से लेकर वरिष्ठ अध्यापक हिंदी के पेपर सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से सुर्खियों में छाए रहे। कहीं केंद्राधीक्षक और स्टाफ की मिलीभगत सामने आई तो कहीं नगर परिषद के जनप्रतिनिधि तक ऐसे कृत्य में शामिल पाए गए। थोड़े से फायदे के लिए ऐसे लोग चाक-चौबंद सुरक्षा, पुलिस, प्रशासन की निगरानी को धत्ता बताने से नहीं चूक रहे।बाडमेर में पिछले दिनों एक निजी कॉलेज से वॉट्सएप पर आया पेपर इसकी मिसाल है। जयपुर में एक केंद्र पर शिक्षक ही अभ्यर्थी को नकल कराने से नहीं चूका। इसी तरह पांच वर्ष पूर्व कनिष्ठ लिपिक भर्ती का पेपर ही आउट हो गया।
बोर्ड भी रहे प्रभावित
राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड भी 2008-09 में ऐसे मामलों में सुर्खियों में आया। दसवीं-बारहवीं के एक-दो पेपर परीक्षा से पहले लीक हो गए। इसी बोर्ड की बारहवीं की मेरिट भी लीक हुई थी।सबसे सुरक्षित और अत्याधुनिक तकनीकी अपनाने वाला सीबीएसई भी अछूता नहीं रहा। इसी साल दसवीं का गणित और बारहवीं का अर्थशास्त्र का पेपर आउट हो गया। जांच हुई तो सिर्फ अर्थशास्त्र का पेपर ही आउट मिला। इससे पहले 2011 में सीबीएसई की एआईआईआई का पेपर उत्तर प्रदेश से आउट हुआ था।
इन परीक्षाओं मे तोड़ा भरोसा
इसके अलावा क्लैट, कैट परीक्षा, कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं में भी ऐसा हुआ। हाल में सरदार पटेल पुलिस विश्वविद्यालय का जेल प्रहरी का पेपर आउट होने की घटना हुई। वास्तव में भर्ती परीक्षाओं का आयोजन विश्वास पर टिका होता है। राजस्थान लोक सेवा आयोग, सीबीएसई, राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, सरकारी-निजी कॉलेज जैसी संस्थाएं केंद्रों और उनके स्टाफ की विश्वसनीयता, ईमानदारी, कत्र्तव्यनिष्ठ आचरण भरोसे ही परीक्षाएं कराती हैं। संस्थान और वहां के कार्मिक-अधिकारी ही भरोसा तोड़ दें कुछ नहीं बचता है।
सिर्फ चंद लोगों का फायदा
चंद लोगों के फायदे के लिए ऐसे गिरोह-गैंग लाखों अभ्यर्थियों की उम्मीदें तोडऩे से नहीं चूकते। सूचना प्रौद्योगिकी वॉट्सएप, फेसबुक, ट्विटर जैसी तकनीक ऐसे लोगों के लिए संजीवनी है। केंद्रों के बाहर मोबाइल रखवाने, जैमर लगवाने, इंटरनेट बंद करने जैसी तकनीक भी गैर जिम्मेदारों को घृणित कृत्य से रोक नहीं पाई हैं। हालांकि संघ लोक सेवा आयोग की आईएएस प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा, बैंक पीओ, रेलवे जैसी बड़ी परीक्षाएं देश की नजीर भी हैं। इन परीक्षाओं में 25 से 50 लाख अभ्यर्थी बैठते हैं। स्कूल, कॉलेज और अन्य संस्थानों में यह परीक्षाएं प्रत्येक रविवार को होती हैं। लेकिन गड़बडिय़ों के इक्का-दुक्का मामले ही सामने आए हैं।

लगातार बढ़ रहे हैं मामले
स्कूल-कॉलेज की सालाना और प्रदेश/राष्ट्रीय स्तर की अन्य भर्ती परीक्षाओं में तो पेपर वायरल/लीक होने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इससे अभ्यर्थियों में संस्थानों के प्रति विश्वसनीयता भी घट रही है।सरकारी अथवा निजी संस्थानों में नौकरियों करने वाले कार्मिकों-अधिकारियों को भरोसा तोडऩे के बजाय उसे बनाए रखना चाहिए। किसी के बहकावे-आर्थिक मदद जैसे प्रलोभन के बजाय भर्ती संस्थाओं के विश्वास को हर हाल में कायम रखना होगा। ऐसा नहीं हुआ तो भविष्य में ना केवल भर्ती परीक्षाएं घटेंगी, बल्कि रोजगार सृजन के नए अवसर भी घट सकते हैं।

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