जैसलमेर | प्रदेश सरकार के बजट को लेकर सीमावर्ती जिला
जैसलमेर इसबार भी मुख्यमंत्री की ओर नजरें लगाये बैठा है। जिले को
उम्मीदें है कि इस बार सरकार सीमावर्ती जिले के विकास को लेकर कुछ विशेष
घोषणाएं कर सकती है जो जिले के चहुमुखी विकास के लिये मील का पत्थर साबित
हो सकती है।
बात करें अगर जैसलमेर जिले की तो लम्बे चौडे भूभाग में फैला यह जिला पूरे एशिया में सबसे बडे जिले के रूप में अपनी पहचान रखता है। देश की अंतराष्ट्रीय सीमा की निगरानी करने वाले इस जिले की सीमाएं जहां जोधपुर, बाडमेर और बीकानेर जिले को छूती हैं वहीं पश्चिमी दिशा में यह भूभाग पूरी तरह पाकिस्तान से सटा हुआ है। सीमा क्षेत्र होने पर यहां पर सैन्य गतिविधियां भी बडी तादात में होती है। इन सीमाओं की रक्षा के लिये जहां बीएसएफ प्रथम पंक्ति के पहरेदार के रूप मे खडा है वहीं सेना की एक बडी छावनी का निर्माण भी यहां पर किया गया है। इसके अलावा देश की हवाई सेवाओं की पहरेदारी के लिये वायुसेना ने भी यहां पर अपना सुसज्जित हैडक्वाटर बना रखा है।
जैसलमेर के पोकरण इलाके ने जहां देश को परमाणु परीक्षण का गौरव प्रदान किया है वहीं यहां की चांधन व पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज में देश की सेनाओं के लिये बनने वाले अत्याधुनिक हथियारों का भी समय समय पर परीक्षण होता रहता है। पिछले दिनों देश की सीमाओं के प्रहरियों की ताकत का नजारा यहां के फील्ड फायरिंग रेंज से देश के प्रधानमंत्री राष्ट्रपति सहित दुनिया भर ने आयरन फीस्ट आयोजन के माध्यम से देखा था|
जैसलमेर जिले के विकास को यहां के लोगों ने चार ‘‘प’’ के रूप में परिभाषित किया है जिसमें पहला ‘‘प’’ पर्यटन, दूसरा ‘‘प’’ पत्थर उद्योग, तीसरा ‘‘प’’ पशुपालन और चौथा ‘‘प’’ पवन उर्जा है जिस पर जिले की अर्थव्यवस्था और यहां के लोगों का रोजगार जुडा हुआ है। विकास के इन्हीं चारों ‘‘प’’ कर प्रगति के लिये यहां के लोगों को उम्मीदें भी है कि इस बार मुख्यमंत्री के विकास का पिटारा जिले के विकास के लिये जरूर खुलेगा|
बात करें यहां के पर्यटन उद्योग की तो यहां का सोनार किला और रेतीले धोरे प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में देशी व विदेशी सैलानियों को यहां आकर्षित करते हैं और इसी पर्यटन के चलते जिले में होटल, रेस्टोरेंट व गाईड व्यवसाय ने लोगों को रोजगार भी प्रदान किया है। कहा जाता है कि जिले की अर्थव्यवथा की रीढ की हड्डी है यहां का पर्यटन व्यवसाय ऐसे में इस बार पर्यटन को लेकर भी लोगों को उम्मीदें है कि सरकार यहां के पर्यटक स्थलों के संरक्षण और रखरखाव के लिये विशेष बजट का आवंटन करेगी जिससे जर्जर होती ऐतिहासिक इमारतों को मजबूत बनाया जा सके वहीं पर्यटन के क्षेत्र में आ रही छोटी बडी तकलीफों का भी निवारण इस बजट में किया जा सकेगा।
सीमा पर होने के चलते सुरक्षा इस जिले की महत्ती आवश्यकता के रूप में देखी जाती है। सीमावर्ती जिले की सुरक्षा के लिये बीएसएफ और सेनाओं के साथ साथ यहां की पुलिस को भी बेहतर करने की मांग यहां के लोगों द्वारा की जा रही है। लोगों का कहना है कि सीमावर्ती इलाकों में थानों की संख्या बढाने के साथ साथ पुलिस को अत्याधुनिक संसाधनों से लैस किया जाये ताकि सीमावर्ती इलाकों में होने वाली संदिग्ध गतिविधियों और जासूसी की घटनाओं पर पूरी तरह लगाम लगाई जा सके। जिले में पिछले कुछ समय में सरकार द्वारा खुफिया ऐजेन्सियों के कुछ थानों को सरकार द्वारा बंद कर दिया गया था लेकिन बढती जासूसी घटनाओं के बाद अब इन थानों को वापिस खोलने की मांग जोर पकडने लगी है और सरकार द्वारा इन थानों को लेकर स्थानीय स्तर पर प्रस्ताव मंगवा लिये गये हैं और उम्मीद जताई जा रही है कि इस बजट में इन थानों को लेकर सरकार घोषणा कर सकती है। साथ ही पुलिस के पदों में बढोत्त्तरी के साथ साथ पुलिस को सुरक्षा के अत्याधुनिक संसाधन उपलब्ध करवाने की भी आवश्यकता यहां के लोगों द्वारा जताई जा रही है।
अकाल के पर्याय के रूप में जाना जाने वाला यह जिला इंदिरा गांधी नहर के आगमन के बाद किसानों के लिये उन्नती का सूचक बन कर उभरा था। नहर के आगमन के बाद यहां के किसानों ने खेती की तरफ पूरी ताकत के साथ जुटने का मन बनाया और नहर के किनारे बसे गांवों के किसानों को सरकार द्वारा भूमि का आंवंटन किया गया था जिस पर किसान खेती कर अपनी आजीविका पूरी कर रहे हैं लेकिन पिछले लम्बे समय से इन नहरों में पानी की कमी के चलते किसान निराश होते जा रहे हैं। किसानों का कहना है कि निर्माण के बाद से लेकर अब तक सरकार द्वारा इन नहरों के रखरखाव को लेकर ध्यान नहीं दिया गया है जिससे कई जगहों पर नहर क्षतिग्रस्त हो गई है और पानी के लीकेज से अंतिम छोर के किसानों को पूरा पानी नहीं मिल पाता है। किसानों की मांग है कि नहरों के रिपेयर के लिये विशेष बजट का आंवटन किया जाये साथ ही सरकार द्वारा पूर्व में बारानी भूमि के आंवटन के लिये स्थानीय किसानों से वादा किया गया था जो अब तक सरकार ने पूरा नहीं किया है। किसान इस बजट में उम्मीद रखे बैठे हैं कि सरकार बारानी आंवटन को खोलेगी जिससे स्थानीय किसानों के जो आवेदन पूर्व में सरकार ने लिये थे उन पर कार्यवाही कर किसानों को भूमि आवंटित की जा सकेगी।
शिक्षा के क्षेत्र में इस जिले के हालात खास बेहतर नहीं हैं जिला मुख्यालय सहित ग्रामीण इलाकों में शिक्षा को लेकर बुरे हालातों से जूझ रहे इस जिले को उम्मीद है कि सरकार जिला मुख्यालय पर उच्च शिक्षा के केन्द्रों की स्थापना के साथ साथ ग्रामीण इलाकों में बेहतर शिक्षा के लिये कडे निर्णय लेगी। यहां के लोगों का कहना है कि सरकार द्वारा पिछले दिनों ग्रामीण इलाकों में कई छोटे स्कूलों को बडे स्कूलों में मर्ज कर दिया था लेकिल यहां के भौगोलिक परिदृश्य के हिसाब से सरकार का यह निर्णय यहां पर ठीक नहीं बैठ पाया जिससे शिक्षा के हालात बिगडने लगे हैं। लोगों का कहना है कि सरकार को इन बंद किये गये स्कूलों को बापिस खोलने के साथ साथ नये स्कूल खोलने चाहिये और सबसे बडी बात की इन स्कूलों में पर्याप्त मात्रा में वैसे शिक्षकों की नियुक्ती की जाये जो यहां पर टिककर स्थानीय बच्चों को शिक्षा प्रदान कर सके। स्थानान्तरण को लेकर भी सीमावर्ती जिले के शिक्षकों के लिये विशेष नियम बनाये जायें क्योंकि भर्ती के दौरान बाहरी जिले शिक्षक यहां आवेदन करते हैं और नौकरी लगने के बाद कुछ दिन यहां नौकरी कर वापिस अपने गृह जिलों में चले जाते है जो कि यहां के बच्चों के लिये अभिशाप बन रहा है। जिला मुख्या पर डिग्री कॉलेजों की स्थापना के साथ साथ उच्च तकनीकी शिक्षा के केन्द्र भी यहां पर खुलने चाहिये जिनमें अध्ययन कर यहां का युवा रोजगार की ओर बढ सके।
चिकित्सा की बात करें तो यह जिला चिकित्सा के क्षेत्र में एक बीमार जिले के रूप में उभर रहा है जिला मुख्यालय पर स्थित एकमात्र राजकीय चिकित्सालय में सुविधाओं के विस्तार से लेकर चिकित्सकों और नर्सिंग स्टाफ की कमी यहां के लोगों के लिये परेशानी का कारण बन रही है। वहीं ग्रामीण इलाकों में हालात और अधिक बद्तर है जहां प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र उतनी संख्या में नहीं है जितनी यहां की आवश्यकता है और जितने सरकार द्वारा खोले गये हैं उनमें भी सुविधाओं का टोटा ही दिखाई दे रहा है। यहां के लोगों की मांग है कि सरकार द्वारा यहां पर नर्सिंग कॉलेज खोला जाये ताकि उसमें पढ कर स्थानीय लोग भर्ती हो सकंे और जिले के दूसस्थ इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवा सकें। गंभीर बीमारियों के इलाज के लिये आज भी यहां के लोगों को गुजरात व जोधपुर के लिये रूख करना पडता है ऐसे में जिले में ही उच्च तकनीकों से लैस चिकित्सालय और बेहतर चिकित्सकों की नियुक्ति की जाये ताकि यहां के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें।
उर्जा के क्षेत्र में जैसलमेर जिला इन दिनों नये आयाम स्थापित कर रहा है लेकिन उर्जा के क्षेत्र में सरकार की निती स्पस्ट नहीं होने से उर्जा कंपनियों का यहां से मोहभंग होता जा रहा है। जिले में बडी संख्या में पवन और सौर उर्जा संयत्रों की स्थापना हुई थी जिसमें हजारों मेघावाट बिजली का उत्पादन प्रतिदिन होने लगा था लेकिन सरकार द्वारा इस बिजली की खपत और इस बिजली के ट्रांस्मीशन को लेकर सुविधाएं नहीं होने से विद्युत उत्पादन बाधित होने लगा और इनसब के कारण सरकार ने अपनी उर्जा नीति ही रोक ली जिससे यहां आने वाली कंपनियों के पैर अपने आप ही रूक गये हैं। पिछले एक साल की अगर बात करें तो यहां पर नाम मात्र के संयत्रों की ही स्थापना हुई है और जो संयत्र यहां पहले से लगे हुए हैं उनमें भी उनकी उत्पादन क्षमता के अनुरूप बिजली पैदा नहीं की जा रही क्योंकि सरकार के पास इस बिजली को खपाने के लिये उचित लाईनों और जीएसएस की कमी है। स्थानीय लोगों की मांग है कि सरकार अपनी उर्जा निती को स्पष्ट करें ताकि इन कंपनियों के माध्यम से लगने वाले संयत्रों से देश व प्रदेश के लिये विद्युत उत्पादन के साथ साथ यहां के लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलते रहे।
सीमावर्ती जिले में इंदिरा गांधी नहर के आने के बाद यहां की पेयजल की समस्या पर बहुत हद तक लगाम लग गई थी और सरकारों द्वारा समय समय पर जिले के ग्रामीण इलाकों और दूरस्थ बसी ढाणियों तक पानी पहुचंाने के लिये कई योजनाएं बनाई लेकिन कभी बजट के अभाव में तो कभी इच्छाशक्ति के अभाव में ये योजनाएं सिरे नहीं चढ पाई लिहाजा आज भी गर्मीयों के मौसम में जिलेभर में पीने के पानी को लेकर हाहाकर मच जाता है। यहां के लोगों की मांग है कि इस बजट में सरकार भले ही नई पेयजल योजनाएं नहीं बनाये लेकिन जो पूर्व में घोषित योजनाएं हैं उन पर भी इमानदारी से काम करले तो जिले की पीने के पानी की समस्या को दूर किया जा सकता है। प्रतिवर्ष गर्मी के मौसम में जिले के शहरी और ग्रामीण इलाकों में पानी को लेकर हाहाकार मचता है ग्रामीण और शहरी लोग सडकों पर प्रदर्शन करते देखे जाते हैं और सरकार का कहना है कि हम करोडों रूपये की योजनाएं बना चुके हैं ऐसे में अगर योजनाएं बनी है तो क्यों आमजन को सडक पर उतरना पड रहा है यह इस बजट में सरकार को सोचने की जरूरत है।
सीमावर्ती जिले जैसलमेर में नहरी खेती के अलावा नलकूप आधारित खेती भी बढी है पिछले कुछ समय में लोगों द्वारा अलग अलग इलाकों में अपने खेतों में नलकूपों से बडी मात्रा में अन्न उगाया गया लेकिन अब सरकार ने भूजल के घटते स्तर को देखकर जिले के बडे भूभाग को डार्कजोन घोषित कर दिया और उन इलाकों में किसानों को विद्युत कनेक्शन नहीं दिये जा रहे हैं जिससे खेती का काम बाधित हुआ है। किसानों की माग है कि भूजल को रिचार्ज करने के लिये मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना सरीखी योजनओं के साथ अन्य प्रयास किये जाकर भूजल का स्तर बढाया जा रहा है तो फिर सरकार क्योंकि किसानों को डार्कजोन के नाम पर विद्युत कनेक्शनों से महरूम रख रही है। समय समय पर किसानों द्वारा इस संबंध में विरोध प्रदर्शन भी किये गये हैं और अब इन किसानों की मांग है कि बजट में इस संबंध में सरकार द्वारा किसानों के हित में निर्णया लिया जाना चाहिये।
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बात करें अगर जैसलमेर जिले की तो लम्बे चौडे भूभाग में फैला यह जिला पूरे एशिया में सबसे बडे जिले के रूप में अपनी पहचान रखता है। देश की अंतराष्ट्रीय सीमा की निगरानी करने वाले इस जिले की सीमाएं जहां जोधपुर, बाडमेर और बीकानेर जिले को छूती हैं वहीं पश्चिमी दिशा में यह भूभाग पूरी तरह पाकिस्तान से सटा हुआ है। सीमा क्षेत्र होने पर यहां पर सैन्य गतिविधियां भी बडी तादात में होती है। इन सीमाओं की रक्षा के लिये जहां बीएसएफ प्रथम पंक्ति के पहरेदार के रूप मे खडा है वहीं सेना की एक बडी छावनी का निर्माण भी यहां पर किया गया है। इसके अलावा देश की हवाई सेवाओं की पहरेदारी के लिये वायुसेना ने भी यहां पर अपना सुसज्जित हैडक्वाटर बना रखा है।
जैसलमेर के पोकरण इलाके ने जहां देश को परमाणु परीक्षण का गौरव प्रदान किया है वहीं यहां की चांधन व पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज में देश की सेनाओं के लिये बनने वाले अत्याधुनिक हथियारों का भी समय समय पर परीक्षण होता रहता है। पिछले दिनों देश की सीमाओं के प्रहरियों की ताकत का नजारा यहां के फील्ड फायरिंग रेंज से देश के प्रधानमंत्री राष्ट्रपति सहित दुनिया भर ने आयरन फीस्ट आयोजन के माध्यम से देखा था|
जैसलमेर जिले के विकास को यहां के लोगों ने चार ‘‘प’’ के रूप में परिभाषित किया है जिसमें पहला ‘‘प’’ पर्यटन, दूसरा ‘‘प’’ पत्थर उद्योग, तीसरा ‘‘प’’ पशुपालन और चौथा ‘‘प’’ पवन उर्जा है जिस पर जिले की अर्थव्यवस्था और यहां के लोगों का रोजगार जुडा हुआ है। विकास के इन्हीं चारों ‘‘प’’ कर प्रगति के लिये यहां के लोगों को उम्मीदें भी है कि इस बार मुख्यमंत्री के विकास का पिटारा जिले के विकास के लिये जरूर खुलेगा|
बात करें यहां के पर्यटन उद्योग की तो यहां का सोनार किला और रेतीले धोरे प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में देशी व विदेशी सैलानियों को यहां आकर्षित करते हैं और इसी पर्यटन के चलते जिले में होटल, रेस्टोरेंट व गाईड व्यवसाय ने लोगों को रोजगार भी प्रदान किया है। कहा जाता है कि जिले की अर्थव्यवथा की रीढ की हड्डी है यहां का पर्यटन व्यवसाय ऐसे में इस बार पर्यटन को लेकर भी लोगों को उम्मीदें है कि सरकार यहां के पर्यटक स्थलों के संरक्षण और रखरखाव के लिये विशेष बजट का आवंटन करेगी जिससे जर्जर होती ऐतिहासिक इमारतों को मजबूत बनाया जा सके वहीं पर्यटन के क्षेत्र में आ रही छोटी बडी तकलीफों का भी निवारण इस बजट में किया जा सकेगा।
सीमा पर होने के चलते सुरक्षा इस जिले की महत्ती आवश्यकता के रूप में देखी जाती है। सीमावर्ती जिले की सुरक्षा के लिये बीएसएफ और सेनाओं के साथ साथ यहां की पुलिस को भी बेहतर करने की मांग यहां के लोगों द्वारा की जा रही है। लोगों का कहना है कि सीमावर्ती इलाकों में थानों की संख्या बढाने के साथ साथ पुलिस को अत्याधुनिक संसाधनों से लैस किया जाये ताकि सीमावर्ती इलाकों में होने वाली संदिग्ध गतिविधियों और जासूसी की घटनाओं पर पूरी तरह लगाम लगाई जा सके। जिले में पिछले कुछ समय में सरकार द्वारा खुफिया ऐजेन्सियों के कुछ थानों को सरकार द्वारा बंद कर दिया गया था लेकिन बढती जासूसी घटनाओं के बाद अब इन थानों को वापिस खोलने की मांग जोर पकडने लगी है और सरकार द्वारा इन थानों को लेकर स्थानीय स्तर पर प्रस्ताव मंगवा लिये गये हैं और उम्मीद जताई जा रही है कि इस बजट में इन थानों को लेकर सरकार घोषणा कर सकती है। साथ ही पुलिस के पदों में बढोत्त्तरी के साथ साथ पुलिस को सुरक्षा के अत्याधुनिक संसाधन उपलब्ध करवाने की भी आवश्यकता यहां के लोगों द्वारा जताई जा रही है।
अकाल के पर्याय के रूप में जाना जाने वाला यह जिला इंदिरा गांधी नहर के आगमन के बाद किसानों के लिये उन्नती का सूचक बन कर उभरा था। नहर के आगमन के बाद यहां के किसानों ने खेती की तरफ पूरी ताकत के साथ जुटने का मन बनाया और नहर के किनारे बसे गांवों के किसानों को सरकार द्वारा भूमि का आंवंटन किया गया था जिस पर किसान खेती कर अपनी आजीविका पूरी कर रहे हैं लेकिन पिछले लम्बे समय से इन नहरों में पानी की कमी के चलते किसान निराश होते जा रहे हैं। किसानों का कहना है कि निर्माण के बाद से लेकर अब तक सरकार द्वारा इन नहरों के रखरखाव को लेकर ध्यान नहीं दिया गया है जिससे कई जगहों पर नहर क्षतिग्रस्त हो गई है और पानी के लीकेज से अंतिम छोर के किसानों को पूरा पानी नहीं मिल पाता है। किसानों की मांग है कि नहरों के रिपेयर के लिये विशेष बजट का आंवटन किया जाये साथ ही सरकार द्वारा पूर्व में बारानी भूमि के आंवटन के लिये स्थानीय किसानों से वादा किया गया था जो अब तक सरकार ने पूरा नहीं किया है। किसान इस बजट में उम्मीद रखे बैठे हैं कि सरकार बारानी आंवटन को खोलेगी जिससे स्थानीय किसानों के जो आवेदन पूर्व में सरकार ने लिये थे उन पर कार्यवाही कर किसानों को भूमि आवंटित की जा सकेगी।
शिक्षा के क्षेत्र में इस जिले के हालात खास बेहतर नहीं हैं जिला मुख्यालय सहित ग्रामीण इलाकों में शिक्षा को लेकर बुरे हालातों से जूझ रहे इस जिले को उम्मीद है कि सरकार जिला मुख्यालय पर उच्च शिक्षा के केन्द्रों की स्थापना के साथ साथ ग्रामीण इलाकों में बेहतर शिक्षा के लिये कडे निर्णय लेगी। यहां के लोगों का कहना है कि सरकार द्वारा पिछले दिनों ग्रामीण इलाकों में कई छोटे स्कूलों को बडे स्कूलों में मर्ज कर दिया था लेकिल यहां के भौगोलिक परिदृश्य के हिसाब से सरकार का यह निर्णय यहां पर ठीक नहीं बैठ पाया जिससे शिक्षा के हालात बिगडने लगे हैं। लोगों का कहना है कि सरकार को इन बंद किये गये स्कूलों को बापिस खोलने के साथ साथ नये स्कूल खोलने चाहिये और सबसे बडी बात की इन स्कूलों में पर्याप्त मात्रा में वैसे शिक्षकों की नियुक्ती की जाये जो यहां पर टिककर स्थानीय बच्चों को शिक्षा प्रदान कर सके। स्थानान्तरण को लेकर भी सीमावर्ती जिले के शिक्षकों के लिये विशेष नियम बनाये जायें क्योंकि भर्ती के दौरान बाहरी जिले शिक्षक यहां आवेदन करते हैं और नौकरी लगने के बाद कुछ दिन यहां नौकरी कर वापिस अपने गृह जिलों में चले जाते है जो कि यहां के बच्चों के लिये अभिशाप बन रहा है। जिला मुख्या पर डिग्री कॉलेजों की स्थापना के साथ साथ उच्च तकनीकी शिक्षा के केन्द्र भी यहां पर खुलने चाहिये जिनमें अध्ययन कर यहां का युवा रोजगार की ओर बढ सके।
चिकित्सा की बात करें तो यह जिला चिकित्सा के क्षेत्र में एक बीमार जिले के रूप में उभर रहा है जिला मुख्यालय पर स्थित एकमात्र राजकीय चिकित्सालय में सुविधाओं के विस्तार से लेकर चिकित्सकों और नर्सिंग स्टाफ की कमी यहां के लोगों के लिये परेशानी का कारण बन रही है। वहीं ग्रामीण इलाकों में हालात और अधिक बद्तर है जहां प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र उतनी संख्या में नहीं है जितनी यहां की आवश्यकता है और जितने सरकार द्वारा खोले गये हैं उनमें भी सुविधाओं का टोटा ही दिखाई दे रहा है। यहां के लोगों की मांग है कि सरकार द्वारा यहां पर नर्सिंग कॉलेज खोला जाये ताकि उसमें पढ कर स्थानीय लोग भर्ती हो सकंे और जिले के दूसस्थ इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवा सकें। गंभीर बीमारियों के इलाज के लिये आज भी यहां के लोगों को गुजरात व जोधपुर के लिये रूख करना पडता है ऐसे में जिले में ही उच्च तकनीकों से लैस चिकित्सालय और बेहतर चिकित्सकों की नियुक्ति की जाये ताकि यहां के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें।
उर्जा के क्षेत्र में जैसलमेर जिला इन दिनों नये आयाम स्थापित कर रहा है लेकिन उर्जा के क्षेत्र में सरकार की निती स्पस्ट नहीं होने से उर्जा कंपनियों का यहां से मोहभंग होता जा रहा है। जिले में बडी संख्या में पवन और सौर उर्जा संयत्रों की स्थापना हुई थी जिसमें हजारों मेघावाट बिजली का उत्पादन प्रतिदिन होने लगा था लेकिन सरकार द्वारा इस बिजली की खपत और इस बिजली के ट्रांस्मीशन को लेकर सुविधाएं नहीं होने से विद्युत उत्पादन बाधित होने लगा और इनसब के कारण सरकार ने अपनी उर्जा नीति ही रोक ली जिससे यहां आने वाली कंपनियों के पैर अपने आप ही रूक गये हैं। पिछले एक साल की अगर बात करें तो यहां पर नाम मात्र के संयत्रों की ही स्थापना हुई है और जो संयत्र यहां पहले से लगे हुए हैं उनमें भी उनकी उत्पादन क्षमता के अनुरूप बिजली पैदा नहीं की जा रही क्योंकि सरकार के पास इस बिजली को खपाने के लिये उचित लाईनों और जीएसएस की कमी है। स्थानीय लोगों की मांग है कि सरकार अपनी उर्जा निती को स्पष्ट करें ताकि इन कंपनियों के माध्यम से लगने वाले संयत्रों से देश व प्रदेश के लिये विद्युत उत्पादन के साथ साथ यहां के लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलते रहे।
सीमावर्ती जिले में इंदिरा गांधी नहर के आने के बाद यहां की पेयजल की समस्या पर बहुत हद तक लगाम लग गई थी और सरकारों द्वारा समय समय पर जिले के ग्रामीण इलाकों और दूरस्थ बसी ढाणियों तक पानी पहुचंाने के लिये कई योजनाएं बनाई लेकिन कभी बजट के अभाव में तो कभी इच्छाशक्ति के अभाव में ये योजनाएं सिरे नहीं चढ पाई लिहाजा आज भी गर्मीयों के मौसम में जिलेभर में पीने के पानी को लेकर हाहाकर मच जाता है। यहां के लोगों की मांग है कि इस बजट में सरकार भले ही नई पेयजल योजनाएं नहीं बनाये लेकिन जो पूर्व में घोषित योजनाएं हैं उन पर भी इमानदारी से काम करले तो जिले की पीने के पानी की समस्या को दूर किया जा सकता है। प्रतिवर्ष गर्मी के मौसम में जिले के शहरी और ग्रामीण इलाकों में पानी को लेकर हाहाकार मचता है ग्रामीण और शहरी लोग सडकों पर प्रदर्शन करते देखे जाते हैं और सरकार का कहना है कि हम करोडों रूपये की योजनाएं बना चुके हैं ऐसे में अगर योजनाएं बनी है तो क्यों आमजन को सडक पर उतरना पड रहा है यह इस बजट में सरकार को सोचने की जरूरत है।
सीमावर्ती जिले जैसलमेर में नहरी खेती के अलावा नलकूप आधारित खेती भी बढी है पिछले कुछ समय में लोगों द्वारा अलग अलग इलाकों में अपने खेतों में नलकूपों से बडी मात्रा में अन्न उगाया गया लेकिन अब सरकार ने भूजल के घटते स्तर को देखकर जिले के बडे भूभाग को डार्कजोन घोषित कर दिया और उन इलाकों में किसानों को विद्युत कनेक्शन नहीं दिये जा रहे हैं जिससे खेती का काम बाधित हुआ है। किसानों की माग है कि भूजल को रिचार्ज करने के लिये मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना सरीखी योजनओं के साथ अन्य प्रयास किये जाकर भूजल का स्तर बढाया जा रहा है तो फिर सरकार क्योंकि किसानों को डार्कजोन के नाम पर विद्युत कनेक्शनों से महरूम रख रही है। समय समय पर किसानों द्वारा इस संबंध में विरोध प्रदर्शन भी किये गये हैं और अब इन किसानों की मांग है कि बजट में इस संबंध में सरकार द्वारा किसानों के हित में निर्णया लिया जाना चाहिये।
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