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राजस्थान के बेरोज़गारों के संघर्ष की दास्तां पहली बार दिखेगी रुपहले परदे पर, CM-शिक्षा मंत्री के होंगे किरदार

जयपुर। राजस्थान सरकार के 15 लाख युवाओं के रोज़गार देने के वादे और उसकी वास्तविक हकीकत जल्द ही रुपहले परदे पर दिखाई देगी। प्रदेश के बेरोज़गारों के संगठन बेरोज़गार एकीकृत महासंघ के बैनर तले बनाई जा रही इस फिल्म में वो तमाम तरह की चुनौतियां और संघर्ष दर्शाने की कोशिश की जा रही है जिसका सामना करने को आज का युवा मजबूर हो रहा है।

फिल्म की सबसे ख़ास बात ये है कि इसमें मुख्यमंत्री से लेकर शिक्षा मंत्री सहित कई तरह के किरदार रखे गए हैं। वहीं फिल्म में इन किरदारों को निभाने वाले ज़्यादातर कलाकार वो हैं जो बेरोज़गारी का दंश झेल रहे हैं।
बेरोज़गार एकीकृत महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष उपेन यादव खुद इस फिल्म में बतौर निर्देशक, लेखक और लीड रोल की भूमिका में नज़र आएंगे। फिल्म की शूटिंग इन दिनों जयपुर और डूंगरपुर के विभिन्न लोकेशन्स पर की जा रही है। शूटिंग अंतिम चरण में है और इसके जल्द भव्य तरीके से लांच किये जाने की कवायद भी की जा रही है।
फिल्म का निर्देशन कर रहे उपेन यादव ने राजस्थान पत्रिका डॉट कॉम को बताया कि यह फिल्म मौजूदा सरकार के युवाओं से 15 लाख नौकरियों के वादे की ज़मीनी हकीकत को आमजन तक पहुंचाने की कोशिशों से बनाई जा रही है। हालांकि इसकी मंशा इस सरकार विशेष से नहीं होकर उन विभिन्न सियासी दलों की सरकारों से है जो सत्ता में आने के लिए युवाओं के साथ ही आमजन से वादे तो कर बैठते हैं लेकिन उन्हें पूरा नहीं करते।
भावनाओं को छुएगी फिल्म
फिल्म निर्देशक उपेन यादव का कहना है कि फिल्म की अवधि भले ही महज़ 20 से 25 मिनिट की रखी जा रही है, लेकिन इसमें मौजूदा सरकार के वादों, निकाली गई भर्तियों, उनके कोर्ट में अटकने, बेरोज़गारों पर लाठीचार्ज, बेरोज़गारों और उनके परिजनों की आत्महत्याओं की घटनाओं सहित तमाम तरह घटनाक्रमों को दिखाया जा रहा है। यादव ने उम्मीद जताई कि बेरोज़गारों के नौकरियों के संघर्ष के बीच हो रही सियासत को जिस मकसद के साथ दिखाए जाने की कोशिश की जा रही है वो पूरी होगी।
ये दिखाया जाएगा फिल्म में
फिल्म में दिखाया जाएगा कि सरकार के वादे के बाद कैसे बेरोज़गारों को नौकरियों की आस जगती है। सरकार की ओर से भर्तियां निकाली जाती हैं जिसके बाद बेरोज़गारों में खुशियों की लहर दौड़ जाती है। आर्थिक रूप से कमज़ोर और ग्रामीण क्षेत्र के अभ्यर्थी अपने परिजनों को जैसे-तैसे मनाकर परीक्षा देने की तैयारी शुरू करते हैं। परीक्षा में सफल होने की मंशा से उनके परिजन महंगे ब्याज पर उधारी लेते हैं। यहां तक कि कुछ परिवार तो पढ़ाई के लिए अपने मकान, जेवरात और ज़मीन तक सूदखोरों के पास गिरवी रख देते हैं।
सरकार कुछ भर्ती परीक्षाएं कराती भी है और उसमे अभ्यर्थियों का चयन भी होता है। लेकिन इस बीच कोर्ट में एक याचिका लगती है और सारे किये कराये पर पानी फिर जाता है। भर्तियां कोर्ट में अटकने से चयनित हुए सभी अभ्यर्थी नौकरियों से वंचित हो जाते हैं। उनकी परेशानी यहीं ख़त्म नहीं होती। जिन परिवारों ने ब्याज पर मोटी रकम उठाई होती है उसे लेने सूदखोरों का जुल्म होता है। इस खींचतान और संघर्ष के बीच कुछ अभ्यर्थी और उनके परिजन आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला ख़त्म कर लेते हैं।
फिल्म में वास्तविक शॉट्स भी किये जा रहे शामिल
इस फिल्म में बेरोज़गारों पर सरकार के कहर को वास्तविक शॉट्स के ज़रिये दिखाने की कोशिश की जा रही है। फिल्म में जगह-जगह बेरोज़गारों के धरने-प्रदर्शन और उनपर पुलिस लाठीचार्ज के कुछ वास्तविक शॉट्स भी दिखाए जाएंगे।
इस तरह होगी रिलीज़ और प्रमोशन
फिल्म को रिलीज़ और प्रमोशन को लेकर फिलहाल प्लानिंग की जा रही है। ये फिल्म लगभग बनकर तैयार हो चुकी है जिसे जल्द रिलीज़ कर दिया जाएगा। इसके बाद बेरोज़गार एकीकृत महासंघ एक रथ यात्रा निकालेगा जिसमे इस फिल्म को आमजन तक पहुंचाया जाएगा। यहीं नहीं इस शार्ट फिल्म को सोशल मीडिया के माध्यम से भी ज़बरदस्त तरीके से प्रमोट करने की योजना बनाई जा रही है।

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