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दबाव की नीति चलेगी या नीति के दबाव से होंगे तबादले

शिक्षा विभाग में तबादलों के लिए बनाई गई नीति कितनी असरदार साबित होगी यह तो फिलहाल नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह माना जा रहा है कि सालों से दबाव की नीति से होने वाले शिक्षकों के तबादले इस मर्तबा भी नीति को ही दबाव में रखेंगे।
राज्य सरकार द्वारा शिक्षक तबादलों के लिए बनाई गई ट्रांसफर पॉलिसी न तो उसके किसी सकारात्मक नजरिए से उपजी है और न ही यह शिक्षकों के हित में पारदर्शिता के लिए ईमानदारी और संजीदगी से उठाया गया कोई कदम है।

हाईकोर्ट की खिंचाई के बाद बनी प्रस्तावित नीति : करीब तीन साल पहले हाईकोर्ट तक पहुंचे तबादले से जुड़े एक मामले में सरकार की जबर्दस्त लानत-मलामत होने व खुद के बचाव में सरकार की सारी दलीलें खारिज होने तथा मामले की हर सुनवाई पर प्रमुख शिक्षा सचिव सहित राज्य सरकार के आला अफसरान के खिलाफ हाईकोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई थी, जिस पर यह नीति बनाई गई। मामला सीकर जिले की एक शिक्षिका से जुड़ा है, जिसके विवादित तबादले के बाद हाईकोर्ट जयपुर में दायर हुई याचिका में कोर्ट को कई अंतरिम आदेश पारित कर सरकार को लताड़ लगानी पड़ी थी। इस मामले में एक वक्त ऐसा आया था जब मुख्य सचिव तक को तलब करने और सरकार पर भारी-भरकम कॉस्ट लगाने की चेतावनी तक कोर्ट को देनी पड़ी थी। इस मामले में ही कोर्ट ने सरकार को तबादला नीति बना कर पेश करने के निर्देश दिए थे, जिसकी कवायद में प्रस्तावित नीति का प्रारूप पाइप से निकला है। लेकिन इसके बावजूद प्रस्तावित तबादला नीति को महज कोर्ट की अवमानना से बचने के लिए की जा रही कवायद से ज्यादा कुछ नहीं माना जा रहा। इसका जीवंत उदाहरण खुद शिक्षा राज्यमंत्री के कार्यालय से कुछ माह पहले जारी हुआ अधिकृत सरकारी पत्र है, जिसमें पार्टी व संगठन के पदाधिकारियों से उनके पारिवारिक सदस्यों व निकटतम संबंधियों के तबादलों की सूचियां व नाम मांगे गए थे। ऐसे में प्रस्तावित तबादला नीति कितनी कारगर होगी और विभाग के मंत्री और अफसरान कितने ईमानदार रहेंगे यह समझा जा सकता है।

समिति का क्या काम...

प्रस्तावित नीति में सरकार द्वारा अंतः जिला व अंतरजिला स्थानांतरण के लिए समितियों का जिस तरह गठन कर उनके जरिए ही तबादला किए जाने के प्रावधान लागू किए गए हैं, उन्हें लेकर शिक्षक संघों के राज्य स्तरीय पदाधिकारी खासे नाराज हैं। नीति के इस प्रावधान को वे जहां सत्ताधारी दल द्वारा अपनी पार्टी के लोगों को ही राहत पहुंचाने की सोची-समझी कोशिश बता रहे हैं। आरोप लगाते हैं कि तबादलों का राजनीतिकरण किया जा रहा है। उनका तर्क है कि यदि समिति के मार्फत ही तबादले किए जाने हों तो निष्पक्ष रूप से शिक्षक संघों के प्रतिनिधियों को भी समिति में प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। इसके लिए वे माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का उदाहरण भी देते हैं, जिसके गठन में शिक्षक नेताओं की भागीदारी है।

सौ फीसदी नहीं हटेंगे शिक्षक : नीति के तहत अनिवार्य स्थानातंरण की श्रेणी में कवर होने वाले शिक्षकों के मामलों में सौ फीसदी क्रियान्विति किसी सूरत में नहीं हो सकेगी। नीति में तो राज्य सरकार ने संबंधित कैटेगरी के सभी शिक्षकों के अनिवार्य स्थानांतरण का प्रावधान किया है, लेकिन इसी के साथ जिन जगहों पर ऐसे शिक्षकों को भेजना है, वहां से हटने वाले शिक्षकों का पदस्थापन, उनके परीक्षा परिणाम, उनका गत स्थानांतरण या भौतिक स्थिति भी देखनी होगी। जो कि जाहिर है कि हर मामले में माकूल नहीं मिलेगी।

माध्यमिक के लिए तो नीति, प्रारंभिक के लिए क्या : राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित स्थानांतरण नीति की प्रभावशीलता को लेकर भी खासा संशय है। नीति विधिक रूप से वजूद में नहीं आई है, लेकिन इस मर्तबा किए जाने वाले तबादलों के लिए विभाग ने जो नियम बनाए हैं, वे सभी प्रस्तावित स्थानांतरण नीति के हूबहू प्रावधान ही हैं, जिन्हें नियमों की शक्ल दे दी गई है। जाहिरा तौर पर तबादला नीति माध्यमिक शिक्षा विभाग के अध्यापकों के लिए ही खुद का वजूद लिए हैं, जबकि तृतीय श्रेणी के अध्यापकों की सर्वाधिक संख्या प्रारंभिक शिक्षा विभाग में है। उधर, शिक्षा विभाग में भी फिलहाल तृतीय श्रेणी अध्यापकों के स्थानातंरण आवेदन-पत्र ही लिए जा रहे हैं, लेकिन नीति में प्रारंभिक शिक्षा का हवाला नहीं होने से असमंजस के हालात हैं। विभाग ने भी अभी तक इस बाबत किसी तरह का कोई स्पष्टीकरण किसी भी स्तर से जारी नहीं किया है।

शाला-दर्पण फिर ठीक, शाला-दर्शन अपडेट नहीं : हालांकि, माध्यमिक शिक्षा विभाग का ऑनलाइन पोर्टल शाला-दर्पण संतोषजनक स्थिति में बताया जा रहा है, अधिक संख्या में तृतीय श्रेणी अध्यापकों वाले प्रारंभिक शिक्षा विभाग का शाला-दर्शन पोर्टल भरोसे लायक ही नहीं है। माध्यमिक शिक्षा विभाग के स्कूलों का तो अधिकतम कामकाज शाला-दर्पण पोर्टल से कंट्रोल हो रहा है, जबकि प्रारंभिक शिक्षा विभाग का शाला-दर्शन पोर्टल आधी-अधूरी सूचनाओं के साथ विश्वसनीय नहीं है। विभाग के भीतर ही इस तह के हालात नीति के मुताबिक तबादले किए जाने में गतिरोध ला सकते हैं।

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