पद चिन्हित हो : चार प्रतिशत तक आरक्षण हो
निजीसंस्थाअों के नियोक्ताओं को प्रोत्साहन : कमसे कम पांच प्रतिशत दिव्यांगों को नियुक्ति देने पर सरकार प्रोत्साहित करेगी।
पालनानहीं करने वालों को मिले दंड : दिव्यांगोंके अधिकारों के प्रति लापरवाही बरतने उल्लंघन करने वालों को दंड दिया जाएगा। इसमें व्यक्तिगत स्तर से लेकर कंपनी संस्थाएं शामिल है।
प्रकरणमें सुनवाई नजदीक आते ही इस तरह की सक्रियता :जहांएक ओर दिव्यांगाें के लिए पूर्व में दिए गए फैसलों की पालना संवेदनशीलता जिम्मेदारी से की जानी चाहिए थी वही सरकार के महकमे औपचारिकताएं पूरी कर रहे हैं। इसके दो उदाहरण आपके सामने हैं।
एक- राज्यके नगरीय विकास विभाग ने 14 अगस्त को एक आदेश जारी कर जस्टिस सुनंदा फाउंडेशन के केस का हवाला देते हुए दिव्यांगों विशेष योग्यजन की समस्याओं के निस्तारण के लिए वरिष्ठ उप शासन सचिव बाल मुकुंद शर्मा को नोडल अधिकारी नियुक्त किया है। इसके साथ ही 16 अगस्त को एक आदेश जारी कर कहा गया है कि सार्वजनिक कार्यालयों, जन उपयोग के वाणिज्यिक भवनों, सिनेमा-थियेटर, अस्पताल अन्य जन उपयोगी भवनों में तय मानदंड के अनुरूप व्यवस्थाएं की जाए। इसके लिए पैनल आर्किटेक्ट्स को जिम्मेदारी दी गई है।
दो- जिलाप्रशासन ने केंद्र राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ दिव्यांगों को दिलाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर डाटा बेस बनाने और यूनिक आईडी नंबर देने की सरकारी घोषणा का ढिंढोरा पीटा। जबकि दिव्यांगों विशेष योग्य जन को लेकर सरकार को यह काम बहुत पहले ही कर लेने चाहिए थे जैसा की सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए थे।
नए एक्ट के प्रमुख प्रावधान जिनकी पालना की जानी है
न्याय प्राप्ति के लिए
1.न्यायालय, अधिकरण, न्यायिक-अर्द्ध न्यायिक संस्थाओं में दिव्यांग बिना भेदभाव न्याय दें।
2. जो दिव्यांग अपने परिवारों से दूर रह रहे हैं उनके विधिक अधिकारों के लिए विशेष प्रावधान करें।
3. विधिक सेवा प्राधिकरण को जिम्मेदारी दी गई कि दिव्यागों के लिए विशेष प्रावधान किए जाए, ताकि वे प्राधिकरण की किसी भी योजना, सुविधा सहायता से वंचित नहीं रहें।
4. सरकार यह सुनिश्चित करे कि सभी पब्लिक डॉक्यूमेंट दिव्यांगों को सुलभ प्रपत्र में उपलब्ध हो।
5. न्यायिक प्रक्रिया में दिव्यांगों को साक्ष्य गवाही के लिए उनकी सुविधार्थ जो उचित व्यवस्थाएं की जानी जरूरी है, वे सभी की जाएं।
शिक्षाव्यवस्था: शिक्षाव्यवस्था में दिव्यांगों का उचित प्रतिनिधित्व सहभागिता रहे इसके लिए जरूरी कदम उठाए जाएं।
उच्चशिक्षा संस्थानों में आरक्षण : दिव्यांगोंके लिए उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की व्यवस्था सरकार सुनिश्चित करे। इसमें अायु सीमा संबंधी छूट भी शामिल है।
19 साल पहले दिया था सुप्रीम कोर्ट ने फैसला
पर्सनविद डिसएबलिटीज एक्ट 1995 जारी केंद्र सरकार ने जारी किया था। इसकी पालना नहीं हो रही थी, लिहाजा जस्टिस सुनंदा भंडारे फाउंडेशन ने 1998 में सुप्रीम कोर्ट में एक रिट पेश की। तीन न्यायाधीशों की बैंच ने सुनवाई के बाद केंद्र राज्य सरकारों को पालना के लिए पाबंद किया। बैंच ने आदेश दिया था कि प्रभावी तरीके से लागू किया जाए, कागजाें तक ही सीमित रह जाए। जैसा कि कोर्ट्स के आदेशों को लेकर शासन प्रशासन का रवैया रहता है वैसा ही कुछ इस मामले में भी हुआ। दिव्यांगों के लिए एक्ट के तहत जो कार्य किए जाने थे, उसे लेकर सभी राज्यों ने हलफनामे सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दिए, लेकिन ज्यादातर आधे अधूरे थे। राजस्थान सरकार की ओर से भी हलफनामा दिया गया था, लेकिन यह भी अधूरा ही था।
अर्जीपर वापस हुई रिट में सुनवाई
जस्टिससुनंदा भंडारे फाउंडेशन के प्रकरण में 2015 में एक अर्जी पेश हुई थी। इस अर्जी में दिव्यांगों के कल्याण अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पालना के लिए केंद्र राज्य सरकारों को पाबंद करने की मांग की गई थी। अर्जी पर सुनवाई की दरम्यान ही यूएन कनवेंशन के तहत दिव्यांगों के अधिकारों को लेकर 2006 में जो नाॅर्म्स तय हुए थे, उनको ध्यान में रखते हुए 2016 में राइट ऑफ पर्संस विद डिसएबिलिटी एक्ट 2016 अस्तित्व में अा गया। यह नया एक्ट 19 अप्रेल 2017 को लागू हुआ। इस नए एक्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने नए सिरे से राज्य केंद्र सरकारों को दिव्यांगों के अधिकारों के बारे में त्वरित कार्रवाई के अादेश दिए।
पुरानी आरपीएससी के बाहर रैंप पर जाने वाले चैनल गेट पर ताला लगा रहता है।
निजीसंस्थाअों के नियोक्ताओं को प्रोत्साहन : कमसे कम पांच प्रतिशत दिव्यांगों को नियुक्ति देने पर सरकार प्रोत्साहित करेगी।
पालनानहीं करने वालों को मिले दंड : दिव्यांगोंके अधिकारों के प्रति लापरवाही बरतने उल्लंघन करने वालों को दंड दिया जाएगा। इसमें व्यक्तिगत स्तर से लेकर कंपनी संस्थाएं शामिल है।
प्रकरणमें सुनवाई नजदीक आते ही इस तरह की सक्रियता :जहांएक ओर दिव्यांगाें के लिए पूर्व में दिए गए फैसलों की पालना संवेदनशीलता जिम्मेदारी से की जानी चाहिए थी वही सरकार के महकमे औपचारिकताएं पूरी कर रहे हैं। इसके दो उदाहरण आपके सामने हैं।
एक- राज्यके नगरीय विकास विभाग ने 14 अगस्त को एक आदेश जारी कर जस्टिस सुनंदा फाउंडेशन के केस का हवाला देते हुए दिव्यांगों विशेष योग्यजन की समस्याओं के निस्तारण के लिए वरिष्ठ उप शासन सचिव बाल मुकुंद शर्मा को नोडल अधिकारी नियुक्त किया है। इसके साथ ही 16 अगस्त को एक आदेश जारी कर कहा गया है कि सार्वजनिक कार्यालयों, जन उपयोग के वाणिज्यिक भवनों, सिनेमा-थियेटर, अस्पताल अन्य जन उपयोगी भवनों में तय मानदंड के अनुरूप व्यवस्थाएं की जाए। इसके लिए पैनल आर्किटेक्ट्स को जिम्मेदारी दी गई है।
दो- जिलाप्रशासन ने केंद्र राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ दिव्यांगों को दिलाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर डाटा बेस बनाने और यूनिक आईडी नंबर देने की सरकारी घोषणा का ढिंढोरा पीटा। जबकि दिव्यांगों विशेष योग्य जन को लेकर सरकार को यह काम बहुत पहले ही कर लेने चाहिए थे जैसा की सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए थे।
नए एक्ट के प्रमुख प्रावधान जिनकी पालना की जानी है
न्याय प्राप्ति के लिए
1.न्यायालय, अधिकरण, न्यायिक-अर्द्ध न्यायिक संस्थाओं में दिव्यांग बिना भेदभाव न्याय दें।
2. जो दिव्यांग अपने परिवारों से दूर रह रहे हैं उनके विधिक अधिकारों के लिए विशेष प्रावधान करें।
3. विधिक सेवा प्राधिकरण को जिम्मेदारी दी गई कि दिव्यागों के लिए विशेष प्रावधान किए जाए, ताकि वे प्राधिकरण की किसी भी योजना, सुविधा सहायता से वंचित नहीं रहें।
4. सरकार यह सुनिश्चित करे कि सभी पब्लिक डॉक्यूमेंट दिव्यांगों को सुलभ प्रपत्र में उपलब्ध हो।
5. न्यायिक प्रक्रिया में दिव्यांगों को साक्ष्य गवाही के लिए उनकी सुविधार्थ जो उचित व्यवस्थाएं की जानी जरूरी है, वे सभी की जाएं।
शिक्षाव्यवस्था: शिक्षाव्यवस्था में दिव्यांगों का उचित प्रतिनिधित्व सहभागिता रहे इसके लिए जरूरी कदम उठाए जाएं।
उच्चशिक्षा संस्थानों में आरक्षण : दिव्यांगोंके लिए उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की व्यवस्था सरकार सुनिश्चित करे। इसमें अायु सीमा संबंधी छूट भी शामिल है।
19 साल पहले दिया था सुप्रीम कोर्ट ने फैसला
पर्सनविद डिसएबलिटीज एक्ट 1995 जारी केंद्र सरकार ने जारी किया था। इसकी पालना नहीं हो रही थी, लिहाजा जस्टिस सुनंदा भंडारे फाउंडेशन ने 1998 में सुप्रीम कोर्ट में एक रिट पेश की। तीन न्यायाधीशों की बैंच ने सुनवाई के बाद केंद्र राज्य सरकारों को पालना के लिए पाबंद किया। बैंच ने आदेश दिया था कि प्रभावी तरीके से लागू किया जाए, कागजाें तक ही सीमित रह जाए। जैसा कि कोर्ट्स के आदेशों को लेकर शासन प्रशासन का रवैया रहता है वैसा ही कुछ इस मामले में भी हुआ। दिव्यांगों के लिए एक्ट के तहत जो कार्य किए जाने थे, उसे लेकर सभी राज्यों ने हलफनामे सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दिए, लेकिन ज्यादातर आधे अधूरे थे। राजस्थान सरकार की ओर से भी हलफनामा दिया गया था, लेकिन यह भी अधूरा ही था।
अर्जीपर वापस हुई रिट में सुनवाई
जस्टिससुनंदा भंडारे फाउंडेशन के प्रकरण में 2015 में एक अर्जी पेश हुई थी। इस अर्जी में दिव्यांगों के कल्याण अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पालना के लिए केंद्र राज्य सरकारों को पाबंद करने की मांग की गई थी। अर्जी पर सुनवाई की दरम्यान ही यूएन कनवेंशन के तहत दिव्यांगों के अधिकारों को लेकर 2006 में जो नाॅर्म्स तय हुए थे, उनको ध्यान में रखते हुए 2016 में राइट ऑफ पर्संस विद डिसएबिलिटी एक्ट 2016 अस्तित्व में अा गया। यह नया एक्ट 19 अप्रेल 2017 को लागू हुआ। इस नए एक्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने नए सिरे से राज्य केंद्र सरकारों को दिव्यांगों के अधिकारों के बारे में त्वरित कार्रवाई के अादेश दिए।
पुरानी आरपीएससी के बाहर रैंप पर जाने वाले चैनल गेट पर ताला लगा रहता है।
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