उदयवीरसिंह राजपुरोहित | पाली शिक्षकभर्ती - 2012 में जिला परिषद प्रारंभिक शिक्षा विभाग के
अधिकारियों ने 5 साल में तीन बार संशोधित परिणाम जारी होने की आड़ में इतनी
मनमानी कि नित नए किस्से सामने रहे हैं।
अधिकारियों कर्मचारियों की मनमानी की पराकाष्ठा इस हद तक थी कि हाईकोर्ट के आदेश माने और ही सरकार के। अधिकारियों कर्मचारियों को जहां भी कमजोर अभ्यर्थी देखा उसी को मेरिट में आने के बावजूद चक्कर कटवाए और सिर्फ मौखिक आदेशों से ही नौकरी से वंचित कर दिया।
चौंकाने वाली बात यह है कि आंकड़ों से लेकर पदों को भी गलत बता कर मनमाने ढंग से अभ्यर्थियों को नियुक्ति तक दे दी। इसमें बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार का अंदेशा भी अभ्यर्थी जता रहे हैं। आयुक्त विशेष योग्यजन के आदेश क्रमांक 21 जून 2012 के अनुसार निशक्तजन समान अवसर अधिकारों का संरक्षण पूर्ण भागीदारी नियम 2011 के नियम 37, 3 में किए गए रोस्टर नंबर 1.34 67 विशेष योग्यजन के लिए आरक्षित रखने जाने संबंधी प्रावधान का पालन करना होता है। इसी नियम के तहत भर्ती में सैकंड लेवल उर्दू के 18 पदों में से प्रथम पद विशेष योग्यजन के लिए आरक्षित रखना था। दिव्यांग मोहम्मद सेराज परीक्षा में बैठे 30 अभ्यर्थियों में इकलौता इस पद का दावेदार था। न्यूनतम सभी योग्यताएं पूरी करने के बावजूद वह पांच साल से नौकरी के लिए भटक रहा है। विधवा कैटेगरी से मीना सोनी का मामला इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला है। मीना ने वर्ष 2012 13 में लगातार शिक्षक भर्ती परीक्षा उत्तीर्ण की। दोनों बार वह मेरिट में थी। जिला परिषद ने उसके नियुक्ति आदेश जारी कर स्कूल भी आवंटित की। बावजूद इसके उसे सिर्फ मौखिक आदेशों के दम पर ज्वॉइन नहीं करने दिया। जिला परिषद शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मनमर्जी से हार मीना ने हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट ने भी उसकी नियुक्ति के आदेश दिए। इसके बावजूद अधिकारियों ने पालना नहीं की। दूसरी बार 11 सितंबर 2013 को काउंसलिंग में तीन अभ्यर्थियों की सूची जारी की गई थी। इन तीनों में मीना सोनी टॉप पर थी। काउंसलिंग लिस्ट में नाम होने के बाद भी उसे नियुक्ति से वंचित रख दिया। वर्ष 2012 की भर्ती के तीसरे संशोधित परिणाम में भी वह मेरिट में आई। इसके बावजूद उसे नौकरी नहीं मिल रही।
^पूरे मामले को लेकर उच्च स्तरीय अधिकारियों की कमेटी का गठन कर जांच कराएंगे। अभी सीईओ डीईओ छुट्टी पर चल रहे हैं। आते ही पूरे मामले की जांच कराता हूं। -सुधीर कुमार शर्मा, कलेक्टर
खुद सवालों के घेरे में
जबअधिकारियों की नजर में अभ्यर्थी याेग्य नहीं थी तो फिर दो साल कैसे उसका फार्म मंजूर हुआ, क्यों उत्तीर्ण हुई , काउंसलिंग तक कैसे पहुंची और किस आधार पर उसका नाम नियुक्ति सूची में था
केस-1
जिलापरिषद की मनमानी
बीएडकरने के बाद दो बार शिक्षक भर्ती में सैकंड लेवल एसएसटी की मेरिट में आई मीना सोनी, नियुक्ति आदेश भी जारी फिर भी अधिकारी कहते रहे स्नातक में 50 फीसदी अंक नहीं
जबकि.... महिलाविधवा श्रेणी में, सरकार विश्वविद्यालय के अनुसार 41 फीसदी अंक ही चाहिए थे बीएड के लिए
केस-2
दिव्यांगआरक्षण की भी अनदेखी
तृतीयश्रेणी सैकंड लेवल में उर्दू के पद थे 18, परीक्षा दी थी 30 ने, इकलौता दिव्यांग अभ्यर्थी था मोहम्मद सेराज, हर तरह से योग्य भी फिर भी पद नहीं होने का बहाना बना नहीं दी नौकरी
जबकि.... तीनप्रतिशत दिव्यांगों का आरक्षण होना था। एक पद तो हर हाल में था वह भी 18 में से पहला। निशक्तजन आयोग ने भी आदेश दिए। लेकिन नहीं माने जिला परिषद अधिकारी
उदयवीरसिंह राजपुरोहित | पाली
शिक्षकभर्ती - 2012 में जिला परिषद प्रारंभिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने 5 साल में तीन बार संशोधित परिणाम जारी होने की आड़ में इतनी मनमानी कि नित नए किस्से सामने रहे हैं। अधिकारियों कर्मचारियों की मनमानी की पराकाष्ठा इस हद तक थी कि हाईकोर्ट के आदेश माने और ही सरकार के। अधिकारियों कर्मचारियों को जहां भी कमजोर अभ्यर्थी देखा उसी को मेरिट में आने के बावजूद चक्कर कटवाए और सिर्फ मौखिक आदेशों से ही नौकरी से वंचित कर दिया।
चौंकाने वाली बात यह है कि आंकड़ों से लेकर पदों को भी गलत बता कर मनमाने ढंग से अभ्यर्थियों को नियुक्ति तक दे दी। इसमें बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार का अंदेशा भी अभ्यर्थी जता रहे हैं। आयुक्त विशेष योग्यजन के आदेश क्रमांक 21 जून 2012 के अनुसार निशक्तजन समान अवसर अधिकारों का संरक्षण पूर्ण भागीदारी नियम 2011 के नियम 37, 3 में किए गए रोस्टर नंबर 1.34 67 विशेष योग्यजन के लिए आरक्षित रखने जाने संबंधी प्रावधान का पालन करना होता है। इसी नियम के तहत भर्ती में सैकंड लेवल उर्दू के 18 पदों में से प्रथम पद विशेष योग्यजन के लिए आरक्षित रखना था। दिव्यांग मोहम्मद सेराज परीक्षा में बैठे 30 अभ्यर्थियों में इकलौता इस पद का दावेदार था। न्यूनतम सभी योग्यताएं पूरी करने के बावजूद वह पांच साल से नौकरी के लिए भटक रहा है। विधवा कैटेगरी से मीना सोनी का मामला इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला है। मीना ने वर्ष 2012 13 में लगातार शिक्षक भर्ती परीक्षा उत्तीर्ण की। दोनों बार वह मेरिट में थी। जिला परिषद ने उसके नियुक्ति आदेश जारी कर स्कूल भी आवंटित की। बावजूद इसके उसे सिर्फ मौखिक आदेशों के दम पर ज्वॉइन नहीं करने दिया। जिला परिषद शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मनमर्जी से हार मीना ने हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट ने भी उसकी नियुक्ति के आदेश दिए। इसके बावजूद अधिकारियों ने पालना नहीं की। दूसरी बार 11 सितंबर 2013 को काउंसलिंग में तीन अभ्यर्थियों की सूची जारी की गई थी। इन तीनों में मीना सोनी टॉप पर थी। काउंसलिंग लिस्ट में नाम होने के बाद भी उसे नियुक्ति से वंचित रख दिया। वर्ष 2012 की भर्ती के तीसरे संशोधित परिणाम में भी वह मेरिट में आई। इसके बावजूद उसे नौकरी नहीं मिल रही।
^पूरे मामले को लेकर उच्च स्तरीय अधिकारियों की कमेटी का गठन कर जांच कराएंगे। अभी सीईओ डीईओ छुट्टी पर चल रहे हैं। आते ही पूरे मामले की जांच कराता हूं। -सुधीर कुमार शर्मा, कलेक्टर
भास्कर में 26 नवंबर को प्रकाशित समाचार
अधिकारियों कर्मचारियों की मनमानी की पराकाष्ठा इस हद तक थी कि हाईकोर्ट के आदेश माने और ही सरकार के। अधिकारियों कर्मचारियों को जहां भी कमजोर अभ्यर्थी देखा उसी को मेरिट में आने के बावजूद चक्कर कटवाए और सिर्फ मौखिक आदेशों से ही नौकरी से वंचित कर दिया।
चौंकाने वाली बात यह है कि आंकड़ों से लेकर पदों को भी गलत बता कर मनमाने ढंग से अभ्यर्थियों को नियुक्ति तक दे दी। इसमें बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार का अंदेशा भी अभ्यर्थी जता रहे हैं। आयुक्त विशेष योग्यजन के आदेश क्रमांक 21 जून 2012 के अनुसार निशक्तजन समान अवसर अधिकारों का संरक्षण पूर्ण भागीदारी नियम 2011 के नियम 37, 3 में किए गए रोस्टर नंबर 1.34 67 विशेष योग्यजन के लिए आरक्षित रखने जाने संबंधी प्रावधान का पालन करना होता है। इसी नियम के तहत भर्ती में सैकंड लेवल उर्दू के 18 पदों में से प्रथम पद विशेष योग्यजन के लिए आरक्षित रखना था। दिव्यांग मोहम्मद सेराज परीक्षा में बैठे 30 अभ्यर्थियों में इकलौता इस पद का दावेदार था। न्यूनतम सभी योग्यताएं पूरी करने के बावजूद वह पांच साल से नौकरी के लिए भटक रहा है। विधवा कैटेगरी से मीना सोनी का मामला इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला है। मीना ने वर्ष 2012 13 में लगातार शिक्षक भर्ती परीक्षा उत्तीर्ण की। दोनों बार वह मेरिट में थी। जिला परिषद ने उसके नियुक्ति आदेश जारी कर स्कूल भी आवंटित की। बावजूद इसके उसे सिर्फ मौखिक आदेशों के दम पर ज्वॉइन नहीं करने दिया। जिला परिषद शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मनमर्जी से हार मीना ने हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट ने भी उसकी नियुक्ति के आदेश दिए। इसके बावजूद अधिकारियों ने पालना नहीं की। दूसरी बार 11 सितंबर 2013 को काउंसलिंग में तीन अभ्यर्थियों की सूची जारी की गई थी। इन तीनों में मीना सोनी टॉप पर थी। काउंसलिंग लिस्ट में नाम होने के बाद भी उसे नियुक्ति से वंचित रख दिया। वर्ष 2012 की भर्ती के तीसरे संशोधित परिणाम में भी वह मेरिट में आई। इसके बावजूद उसे नौकरी नहीं मिल रही।
^पूरे मामले को लेकर उच्च स्तरीय अधिकारियों की कमेटी का गठन कर जांच कराएंगे। अभी सीईओ डीईओ छुट्टी पर चल रहे हैं। आते ही पूरे मामले की जांच कराता हूं। -सुधीर कुमार शर्मा, कलेक्टर
खुद सवालों के घेरे में
जबअधिकारियों की नजर में अभ्यर्थी याेग्य नहीं थी तो फिर दो साल कैसे उसका फार्म मंजूर हुआ, क्यों उत्तीर्ण हुई , काउंसलिंग तक कैसे पहुंची और किस आधार पर उसका नाम नियुक्ति सूची में था
केस-1
जिलापरिषद की मनमानी
बीएडकरने के बाद दो बार शिक्षक भर्ती में सैकंड लेवल एसएसटी की मेरिट में आई मीना सोनी, नियुक्ति आदेश भी जारी फिर भी अधिकारी कहते रहे स्नातक में 50 फीसदी अंक नहीं
जबकि.... महिलाविधवा श्रेणी में, सरकार विश्वविद्यालय के अनुसार 41 फीसदी अंक ही चाहिए थे बीएड के लिए
केस-2
दिव्यांगआरक्षण की भी अनदेखी
तृतीयश्रेणी सैकंड लेवल में उर्दू के पद थे 18, परीक्षा दी थी 30 ने, इकलौता दिव्यांग अभ्यर्थी था मोहम्मद सेराज, हर तरह से योग्य भी फिर भी पद नहीं होने का बहाना बना नहीं दी नौकरी
जबकि.... तीनप्रतिशत दिव्यांगों का आरक्षण होना था। एक पद तो हर हाल में था वह भी 18 में से पहला। निशक्तजन आयोग ने भी आदेश दिए। लेकिन नहीं माने जिला परिषद अधिकारी
उदयवीरसिंह राजपुरोहित | पाली
शिक्षकभर्ती - 2012 में जिला परिषद प्रारंभिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने 5 साल में तीन बार संशोधित परिणाम जारी होने की आड़ में इतनी मनमानी कि नित नए किस्से सामने रहे हैं। अधिकारियों कर्मचारियों की मनमानी की पराकाष्ठा इस हद तक थी कि हाईकोर्ट के आदेश माने और ही सरकार के। अधिकारियों कर्मचारियों को जहां भी कमजोर अभ्यर्थी देखा उसी को मेरिट में आने के बावजूद चक्कर कटवाए और सिर्फ मौखिक आदेशों से ही नौकरी से वंचित कर दिया।
चौंकाने वाली बात यह है कि आंकड़ों से लेकर पदों को भी गलत बता कर मनमाने ढंग से अभ्यर्थियों को नियुक्ति तक दे दी। इसमें बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार का अंदेशा भी अभ्यर्थी जता रहे हैं। आयुक्त विशेष योग्यजन के आदेश क्रमांक 21 जून 2012 के अनुसार निशक्तजन समान अवसर अधिकारों का संरक्षण पूर्ण भागीदारी नियम 2011 के नियम 37, 3 में किए गए रोस्टर नंबर 1.34 67 विशेष योग्यजन के लिए आरक्षित रखने जाने संबंधी प्रावधान का पालन करना होता है। इसी नियम के तहत भर्ती में सैकंड लेवल उर्दू के 18 पदों में से प्रथम पद विशेष योग्यजन के लिए आरक्षित रखना था। दिव्यांग मोहम्मद सेराज परीक्षा में बैठे 30 अभ्यर्थियों में इकलौता इस पद का दावेदार था। न्यूनतम सभी योग्यताएं पूरी करने के बावजूद वह पांच साल से नौकरी के लिए भटक रहा है। विधवा कैटेगरी से मीना सोनी का मामला इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला है। मीना ने वर्ष 2012 13 में लगातार शिक्षक भर्ती परीक्षा उत्तीर्ण की। दोनों बार वह मेरिट में थी। जिला परिषद ने उसके नियुक्ति आदेश जारी कर स्कूल भी आवंटित की। बावजूद इसके उसे सिर्फ मौखिक आदेशों के दम पर ज्वॉइन नहीं करने दिया। जिला परिषद शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मनमर्जी से हार मीना ने हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट ने भी उसकी नियुक्ति के आदेश दिए। इसके बावजूद अधिकारियों ने पालना नहीं की। दूसरी बार 11 सितंबर 2013 को काउंसलिंग में तीन अभ्यर्थियों की सूची जारी की गई थी। इन तीनों में मीना सोनी टॉप पर थी। काउंसलिंग लिस्ट में नाम होने के बाद भी उसे नियुक्ति से वंचित रख दिया। वर्ष 2012 की भर्ती के तीसरे संशोधित परिणाम में भी वह मेरिट में आई। इसके बावजूद उसे नौकरी नहीं मिल रही।
^पूरे मामले को लेकर उच्च स्तरीय अधिकारियों की कमेटी का गठन कर जांच कराएंगे। अभी सीईओ डीईओ छुट्टी पर चल रहे हैं। आते ही पूरे मामले की जांच कराता हूं। -सुधीर कुमार शर्मा, कलेक्टर
भास्कर में 26 नवंबर को प्रकाशित समाचार
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