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Tuesday 27 December 2016

नयी शिक्षा नीति,ये रही 2016 में शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी महत्वपूर्ण खबरें

नई दिल्ली:  शिक्षा के क्षेत्र में भारत प्रागति की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है ,लेकिन फिर भी जिस तरह से दुनिया के विकासशील देशों की तुलना मे भारत की जिस रफ्तार से आर्थिक तरक्की  हो रही है, उस लिहाज में  शिक्षा के मामले में देश  अभी भी पीछे है ।
देश की आजादी के 70 वर्ष बाद भी शिक्षा का स्तर इतना नहीं उठ पाया है जितना किसी विकासशील देश का होना चाहिए। इस साल शिक्षा के स्तर को उंचा उठाने के लिए काफई महत्वपूर्ण और अप्रत्याक्षित कदम उठाए गए। चाहे वह मानव संसाधन विकास मंत्रालय से स्मृति ईरानी को हटाया जाना हो या फिर  करीब 30 वर्ष बाद नयी शिक्षा नीति की दिशा में पहल,10वीं बोर्ड परीक्षा को 2017-18 सत्र से अनिवार्य बनाने दिशा में कदम। हम इस खबर के जरिए आपको  बता रहे हैं 2016 में शिक्षा के क्षेत्र में हुए नए बदलावों के बारे में

रोहित वेमुला, कन्हैया और स्मृति ईरानी का मंत्रालय बदला जाना
हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या से जुड़े घटनाक्रम, जेएनयू छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष कन्हैया कुमार से जुड़े घटनाक्रम एवं कुछ संस्थाओं से जुड़े मामले में विवादों में रही स्मृति ईरानी का मंत्रालय मंत्रिमंडल फेरबदल में बदल दिया गया और उन्हें कपड़ा मंत्रालय का दायित्व सौंपा गया।

नयी शिक्षा नीति की पहल आगे बढ़ी
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के कार्यकाल में ही 30 वर्ष बाद नयी शिक्षा नीति तैयार करने की पहल को आगे बढ़ाया गया था। इस संबंध में सुब्रमण्यम समिति ने मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के बारे में विवाद उत्पन्न हुआ। सरकार ने एक प्रबुद्ध शिक्षाविद के नेतृत्व में एक समिति गठित करने की बात कही है और इस बारे में कुछ नामों पर चर्चा कर रही है। समिति में अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञ भी लिये जा सकते हैं।
नयी शिक्षा नीति को लेकर सभी पक्षों और अंशधारकों से सुझाव प्राप्त हुए हैं और इनका मूल्यांकन किया जा रहा है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय शिक्षा का अधिकार अधिनियम में संशोधन पर काम कर रहा है और इस बारे में एक प्रस्ताव को विधि मंत्रालय ने मंजूरी प्रदान कर दी है और अब इसे कैबिनेट के समक्ष रखा जायेगा।
 
अब सीबीएसई 10वीं बोर्ड परीक्षा अनिवार्य
सीबीएसई बोर्ड की बैठक में दसवीं बोर्ड परीक्षा को अनिवार्य बनाने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी गई. मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा, ‘‘ 2017- 18 शैक्षणिक सत्र से सभी छात्रों के लिए बोर्ड परीक्षा अनिवार्य बनाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है।

10वीं तक तीन भाषाओं की पढ़ाई जरूरी किए जाने का प्रस्ताव
सीबीएसई ने छात्रों का बोझ बढ़ाने वाला एक नया प्रस्ताव दिया। सीबीएसई का नया फैसला अगर लागू हो गया तो 10वीं कक्षा तक के छात्र-छात्राओं के लिए तीन भाषाओं का अध्ययन करना अनिवार्य हो जायेगा।  अभी तक ये नियम आठवीं तक ही लागू है। छात्रों को हिंदी, अंग्रेजी के साथ अपनी क्षेत्रीय भाषा या विदेशी भाषा को चुनना होगा। सीबीएसई ने ये सिफारिश मानव संसाधन विकास मंत्रालय को भेजी है।
सरकार ने सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए एकल राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा ('नीट' नैशनल एलिजिबिलिटी एंट्रेस एग्जाम - एनईईटी) लागू की।

बिहार टॉपर घोटाला
हर साल मई महीने के आसपास जारी होने वाले, सीबीएसई की 10वीं और 12वीं की बोर्ड की परीक्षाओं के नतीजों में एक बार फिर लड़कियों ने बाजी मारी। 10वीं की परीक्षा में लड़कियों के पास होने का प्रतिशत लड़कों से अधिक रहा तो वहीं 12वीं की परीक्षा में भी टॉप तीन में लड़कियों ने ही जगह बनाई। लेकिन, अक्टूबर के महीने में बिहार में 12वीं की बोर्ड परीक्षा में टॉपर घोटाला इस साल सुखिर्यों में रहा जिसमें इस साल घोषित इंटर परीक्षा में कला और विज्ञान संकाय में टॉपर रहे रूबी राय और सौरभ कुमार को एक टीवी साक्षात्कार के दौरान विषय वस्तु की जानकारी नहीं होने का खुलासा होने पर बिहार को परीक्षा में नकल को लेकर राष्ट्रव्यापी फजीहत झेलनी पड़ी।
 
रैंकिंग 
सरकार ने नेशनल इंस्टीट्यूट रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) कार्यक्रम 'इंडिया रैंकिंग के टॉप संस्थानों की रैंकिंग की घोषणा की। सरकार ने यूनिवर्सिटीज, मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट्स, इंजीनियरिंग कॉलेज, फॉर्मेसी इंस्टीट्यूट्स की रैंकिंग की घोषणा की।

नो डिटेंशन पॉलिसी में बदलाव
कानून मंत्रालय ने 8वीं तक छात्रों को फेल नहीं करने की पॉलिसी को खत्म करने के एचआरडी मिनिस्ट्री के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। अब फेल नहीं करने की पॉलिसी सिर्फ पांचवीं कक्षा तक लागू होगी। इसके पीछे वजह बताई गई है कि बच्चे 'फेल नहीं होने का डर नहीं होने के कारण' अनुशासनहीन हो रहे हैं।

शिक्षकों की कमी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का सवाल
स्कूलों में शिक्षकों की कमी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा इस साल भी बड़ी चुनौती बनी रही। शिक्षकों की प्राथमिक जिम्मेवारी है बच्चों को पढ़ाना। लेकिन, स्कूलों के प्रबंधन और कई तरह के गैर-शैक्षणिक कार्यो में भी शिक्षकों को लगाना एक परिपाटी बन गयी है। यह समस्या सरकारी स्कूलों में सरकारी कामकाज तक सीमित है बल्कि निजी और अर्द्ध-सरकारी विद्यालयों में बड़े पैमाने पर दूसरे रूपों में भी विद्यमान हैं। निजी स्कूलों शिक्षकों को पढ़ाने के अलावा बच्चों को घर तक छोड़ने जाना, नामांकन के लिए अभिभावकों से मिलना और उनके सवालों के उत्तर देने के कार्य करने होते हैं जबकि सरकारी स्कूलों में आज भी जनगणना, चुनाव, पोलियो ड्राप पिलाने, पोशाक एवं छात्रवृति वितरण जैसे कार्यो में लगाना जा रहा है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने इस साल भी निर्देश जारी कर संबद्ध विद्यालयों को कहा है कि वे शिक्षकों पर ऐसे कार्यों का बोझ नहीं डालें, जो शिक्षा से जुड़े हुए नहीं हैं।

इस वर्ष के शिक्षा बजट को जिन दो शब्दों ने परिभाषित किया, वे शब्द हैं - ‘स्किल और रिसर्च’। चालू वर्ष के बजट में दस सरकारी और दस निजी शिक्षण संस्थानों को विश्व स्तरीय बनाये जाने, हायर एजुकेशन फाइनेंसिंग एजेंसी गठित करने और नये नवोदय विद्यालय स्थापित करने का प्रस्ताव भी किया गया है।

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