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RPSC ने घोषित की इन परीक्षाओं की तिथियां, अब लग जाएं तैयारी में

अजमेर। राजस्थान लोक सेवा आयोग RPSC ने प्रधानाध्यापक और उप निरीक्षक भर्ती परीक्षा की तिथियां तय कर दी हैं। इनका विस्तृत कार्यक्रम जल्द जारी होगा।

सचिव पीसी बेरवाल ने बताया कि माध्यमिक शिक्षा विभाग के लिए प्रधानाध्यापक प्रतियोगी परीक्षा—2017 का आयोजन 2 सितंबर को होगा। इसी तरह उप निरीक्षक (पुलिस) प्रतियोगी परीक्षा—2016 का आयोजन 7 अक्टूबर को किया जाएगा। आयोग ने फिलहाल परीक्षा तिथियां तय की हैं। इनका विस्तृत कार्यक्रम, प्रवेश पत्र और अन्य सूचनाएं जल्द जारी होंगी।

आरएएस प्री 5 अगस्त को
राजस्थान लोक सेवा आयोग आरएएस एवं अधीनस्थ सेवाएं संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा सीधी भर्ती 2018 की प्रारंभिक परीक्षा 5 अगस्त को कराएगा। परीक्षा एक ही सत्र में सभी जिला मुख्यालयों पर होगी। राज्य सेवा के तहत 75 आरएएस, 34 आरपीएस सहित कुल 405 और अधीनस्थ सेवा के लिए 575 पदों पर भर्ती की जाएगी। टीएसपी क्षेत्र के 37 पदों के लिए भी भर्ती परीक्षा होगी।

एम ए फाइनल सिंधी और संस्कृत के परिणाम जारी
महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय ने एम ए फाइनल सिंधी और एम ए फाइनल संस्कृत परीक्षा 2018 के परिणाम जारी कर दिए गए हैं। एम ए फाइनल सिंधी का परिणाम 90.24 और एम ए फाइनल संसकृत का परिणाम 75.17 प्रतिशत रहा है। दोनों परिणाम विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपलोड कर दिए गए हैं।

टीचर्स नहीं चाहते अपनी कुंडली बनवाना
विद्यार्थियों के हाथों मूल्यांकन से उच्च और तकनीकी शिक्षण संस्थाओं को परहेज है। संस्थान अपनी 'खामियों' को छुपाए रखना चाहते हैं। अव्वल तो कहीं मूल्यांकन की पहल नहीं हुई, तिस पर उच्च और तकनीकी शिक्षा विभाग भी आंखें मूंदे बैठा है।

यूजीसी ने साल 2013-14 में देश के सभी तकनीकी, मेडिकल, उच्च शिक्षा से संबंधित कॉलेज और विश्वविद्यालयों में शैक्षिक गुणवत्ता के लिए विद्यार्थियों से फीडबैक लेने की योजना बनाई। इसमें विभागवार शिक्षकों के अध्यापन, नियमित कक्षाएं, शोध, शैक्षिक और सह शैक्षिक कार्यक्रमों के आयोजन, भ्रमण और अन्य बिन्दु शामिल किए। संस्थाओं में शैक्षिक सुधार ही योजना का मकसद था। दुर्भाग्य से केंद्रीय विश्वविद्यालयों को छोड़कर कहीं यह योजना शुरू नहीं हो पाई है।
इंजीनियरिंग कॉलेज के हाल
बॉयज और महिला इंजीनियरिंग कॉलेज में विद्यार्थियों से शिक्षकों और शैक्षिक कार्यक्रमों का फीडबैक नहीं लिया जा रहा। खासतौर पर शिक्षकों को विद्यार्थियों से अपना मूल्यांकन कराना पसंद नहीं है। अंदरूनी स्तर पर कई बार इसका विरोध भी किया गया। ऐसा तब है जबकि अजमेर सहित प्रदेश के कई इंजीनियरिंग कॉलेज में बिना कॉपी जांचे विद्यार्थियों को नम्बर देने, छात्राओं को कथित अश्लील मैसेज भेजने, मनमानी खरीद-फरोख्त, परीक्षा के गलत अंक भेजने जैसी अनियमितताएं सामने आई हैं।
ना विद्यार्थियों ना शिक्षकों को टाइम
उच्च शिक्षा विभाग के कॉलेज में तो मूल्यांकन की कभी शुरुआत ही नहीं हुई। विद्यार्थी और शिक्षक प्रतिवर्ष दाखिले, छात्रसंघ चुनाव, दिवाली, शीतकालीन अवकाश, परीक्षा फार्म भरने और अन्य में व्यस्त रहते हैं। इसके अलावा शिक्षक संघ भी फीडबैक पर सरकार और यूजीसी को ऐतराज जता चुके हैं। शिक्षकों का मानना है कि कक्षाएं लेने के अलावा अतिरिक्त कामकाज बोझ ज्यादा है। विद्यार्थियों के फीडबैक से उन्हें अधिकारियों और नेताओं की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है।
विश्वविद्यालय में गिनती के शिक्षक
महर्षि दयानंद सरस्वती तो ऐसी नवाचार योजनाओं को लागू करने में सबसे पीछे है। यहां महज 18 शिक्षक कार्यरत हैं। सभी शिक्षकों की राय जुदा है। ज्यादातर शिक्षक विद्यार्थियों के हाथों अपना मूल्यांकन और फीडबैक लेने के खिलाफ हैं। यहां के शिक्षक डीन, बॉम सदस्य के अलावा विभिन्न कमेटियों में सदस्य हैं। विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों की कम संख्या होना भी फीडबैक योजना की नाकामी का मुख्य कारण है।
यहां रोल मॉडल....

शिक्षकों के विद्यार्थियों के मूल्यांकन को लेकर देश के केंद्रीय विश्वविद्यालय, आईआईटी, एनआईटी रोल मॉडल हैं। राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों से शिक्षकों के अध्ययन-अध्यापन, शोध, नवाचार को लेकर फीडबैक लिया जाता है। इन संस्थाओं में कुलपति, निदेशक अथवा डीन इस जिम्मेदारी को संभालते हैं।

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