राजस्थान का युवा अब सरकारी भर्तियों में प्रदेशवासियों को ही आवेदन के हक की मांग उठाने लगा है। हाल ही जयपुर
में बेरोजगार युवाओं ने यह मुद्दा उठाया है। ऐसा पहले नहीं था। इस सहिष्णु
राज्य के युवाओं ने कभी अन्य प्रदेशों के बेरोजगारों के प्रति सरकार की
उदार नीति का विरोध नहीं किया।
अब मांग उठी तो इसकी तह में जाना जरूरी है। दरअसल, वजह यह है कि मध्यप्रदेश में निकली पटवारी भर्ती में अन्य प्रदेशों के युवाओं को रोजगार ? पाने के हक से वंचित कर दिया गया है। वे आवेदन भी नहीं कर सकते। इस पर सवाल उठता है कि क्या राजस्थान सरकार को भी ऐसा करना चाहिए? अगर गौर किया जाए, तो ऐसा करना क्षेत्रीयवाद को बढ़ावा ही होगा, जो देश की एकता और अखंडता के खिलाफ होगा। लेकिन, जब अन्य प्रदेश ऐसे कदम उठाएंगे, तो राजस्थान में भी भर्ती नीति पर तो पुनर्विचार होना ही चाहिए, वर्ना प्रदेश के युवा कहां जाएंगे। अभी तो 'घर का पूत कंवारा डोले...पाड़ौसी का फेरा' वाली स्थिति है।
वर्तमान में राजस्थान में बेरोजगारी की समस्या दिन-ब-दिन विकराल रूप धारण करती जा रही है। इसके बावजूद प्रदेश में जो भी भर्तियां निकलती हैं, उनमें आरक्षण के अतिरिक्त शेष 49 फीसदी पदों को खुली प्रतियोगिता के लिए छोड़ दिया जाता है। जाहिर है, अन्य प्रदेशों के युवा इन पदों के लिए आवेदन कर सकते हैं। और तो और, कई प्रदेशों में स्नातक, स्नातकोत्तर में मार्किंग इत्यादि पर राजस्थान की तरह सख्ती नहीं होने से वहां के युवा मेरिट में राज्य के युवाओं से ऊपर के स्थान हासिल कर लेते हैं। जाहिर है, राज्य के बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिल पाता।
अन्य राज्यों में नियम-
मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों में पहले से ही सभी सरकारी भर्तियों में अन्य राज्यों के महज पांच फीसदी युवा को ही आवेदन का मौका दिया जाता है। अब मध्यप्रदेश तो इस पर भी राजी नहीं। बिहार में तो स्थानीय युवा अन्य प्रदेश के युवाओं को आवेदन करने से येन केन प्रकारेण रोक लेते हैं। इधर, राजस्थान में अन्य राज्यों के अभ्यर्थियों के लिए बस इतना भर बैरियर है कि वे आरक्षण का लाभ नहीं ले सकते, मतलब 49 प्रतिशत आरक्षण के अतिरिक्त अन्य पदों पर उनको आवेदन का हक है।
उदारता से हो रहा नुकसान-
अगर अन्य राज्य अपने प्रदेश के आवेदकों के अलावा अन्य अभ्यर्थियों का हक मारते हैँ, तो राजस्थान सरकार को भी सख्ती करनी चाहिए। जब प्रदेश में युवा अन्य प्रदेश के बेरोजगारों से प्रतिस्पर्धा करेगा और दूसरे प्रदेश में उसे अवसर तक नहीं मिलेगा, तो वह जाएगा कहां। इससे तो प्रदेश की बेरोजगारी की समस्या विकटतम ही होनी है। इसलिए राज्य सरकार को भर्तियों में अपनी उदार नीति बदलने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। इतना तो हो ही सकता है कि अन्य प्रदेशों के पांच फीसदी से ज्यादा आवेदन लिए ही न जाएं।
सिलेबस बदले-
एक तरीका यह भी है कि प्रदेश में किसी भी भर्ती परीक्षा में राजस्थान के सामान्य ज्ञान के प्रश्नों की संख्या अधिकाधिक कर दी जाए। जाहिर है, इससे अन्य प्रदेश के अभ्यर्थियों से ज्यादा लाभ राज्य के आवेदकों को मिलेगा। ऐसा राजस्थान में पहले हो चुका है, तब शिक्षक भर्ती में राजस्थान के अभ्यर्थियों को लाभ मिला था। लेकिन, न जाने क्यों वर्तमान सरकार न तो इस मसले पर गंभीरता दिखा रही है, न ही पूर्व की तरह प्रतियोगी परीक्षा के सिलेबस में ऐसे बदलाव में ही रुचि दिखा रही है।
बहरहाल, प्रदेश की बेरोजगारी की समस्या के समाधान की दिशा में सरकार को पहल कर पॉलिसी पर पुनर्विचार कर आवश्यक बदलाव करने ही चाहिए, ताकि प्रदेश के युवाओं को उनका हक मिल सके।
अब मांग उठी तो इसकी तह में जाना जरूरी है। दरअसल, वजह यह है कि मध्यप्रदेश में निकली पटवारी भर्ती में अन्य प्रदेशों के युवाओं को रोजगार ? पाने के हक से वंचित कर दिया गया है। वे आवेदन भी नहीं कर सकते। इस पर सवाल उठता है कि क्या राजस्थान सरकार को भी ऐसा करना चाहिए? अगर गौर किया जाए, तो ऐसा करना क्षेत्रीयवाद को बढ़ावा ही होगा, जो देश की एकता और अखंडता के खिलाफ होगा। लेकिन, जब अन्य प्रदेश ऐसे कदम उठाएंगे, तो राजस्थान में भी भर्ती नीति पर तो पुनर्विचार होना ही चाहिए, वर्ना प्रदेश के युवा कहां जाएंगे। अभी तो 'घर का पूत कंवारा डोले...पाड़ौसी का फेरा' वाली स्थिति है।
वर्तमान में राजस्थान में बेरोजगारी की समस्या दिन-ब-दिन विकराल रूप धारण करती जा रही है। इसके बावजूद प्रदेश में जो भी भर्तियां निकलती हैं, उनमें आरक्षण के अतिरिक्त शेष 49 फीसदी पदों को खुली प्रतियोगिता के लिए छोड़ दिया जाता है। जाहिर है, अन्य प्रदेशों के युवा इन पदों के लिए आवेदन कर सकते हैं। और तो और, कई प्रदेशों में स्नातक, स्नातकोत्तर में मार्किंग इत्यादि पर राजस्थान की तरह सख्ती नहीं होने से वहां के युवा मेरिट में राज्य के युवाओं से ऊपर के स्थान हासिल कर लेते हैं। जाहिर है, राज्य के बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिल पाता।
अन्य राज्यों में नियम-
मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों में पहले से ही सभी सरकारी भर्तियों में अन्य राज्यों के महज पांच फीसदी युवा को ही आवेदन का मौका दिया जाता है। अब मध्यप्रदेश तो इस पर भी राजी नहीं। बिहार में तो स्थानीय युवा अन्य प्रदेश के युवाओं को आवेदन करने से येन केन प्रकारेण रोक लेते हैं। इधर, राजस्थान में अन्य राज्यों के अभ्यर्थियों के लिए बस इतना भर बैरियर है कि वे आरक्षण का लाभ नहीं ले सकते, मतलब 49 प्रतिशत आरक्षण के अतिरिक्त अन्य पदों पर उनको आवेदन का हक है।
उदारता से हो रहा नुकसान-
अगर अन्य राज्य अपने प्रदेश के आवेदकों के अलावा अन्य अभ्यर्थियों का हक मारते हैँ, तो राजस्थान सरकार को भी सख्ती करनी चाहिए। जब प्रदेश में युवा अन्य प्रदेश के बेरोजगारों से प्रतिस्पर्धा करेगा और दूसरे प्रदेश में उसे अवसर तक नहीं मिलेगा, तो वह जाएगा कहां। इससे तो प्रदेश की बेरोजगारी की समस्या विकटतम ही होनी है। इसलिए राज्य सरकार को भर्तियों में अपनी उदार नीति बदलने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। इतना तो हो ही सकता है कि अन्य प्रदेशों के पांच फीसदी से ज्यादा आवेदन लिए ही न जाएं।
सिलेबस बदले-
एक तरीका यह भी है कि प्रदेश में किसी भी भर्ती परीक्षा में राजस्थान के सामान्य ज्ञान के प्रश्नों की संख्या अधिकाधिक कर दी जाए। जाहिर है, इससे अन्य प्रदेश के अभ्यर्थियों से ज्यादा लाभ राज्य के आवेदकों को मिलेगा। ऐसा राजस्थान में पहले हो चुका है, तब शिक्षक भर्ती में राजस्थान के अभ्यर्थियों को लाभ मिला था। लेकिन, न जाने क्यों वर्तमान सरकार न तो इस मसले पर गंभीरता दिखा रही है, न ही पूर्व की तरह प्रतियोगी परीक्षा के सिलेबस में ऐसे बदलाव में ही रुचि दिखा रही है।
बहरहाल, प्रदेश की बेरोजगारी की समस्या के समाधान की दिशा में सरकार को पहल कर पॉलिसी पर पुनर्विचार कर आवश्यक बदलाव करने ही चाहिए, ताकि प्रदेश के युवाओं को उनका हक मिल सके।
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