इंग्लैंड से यहां आकर पं. रविशंकर शुक्ल विवि के रिसर्च आधारित कार्यक्रम
में हिस्सा लेने वाले शिक्षाविदों ने तीन दिन तक जानकारियां इकट्ठा करने के
बाद पढ़ाई के सिस्टम को सिलेबस खत्म करने पर फोकस्ड बताया है।
भास्कर से खास बाचती में इन विशेषज्ञों का कहना है कि छत्तीसगढ़ ही नहीं, देश में कई जगह शिक्षा का पैटर्न ऐसा है कि बच्चों के साथ क्या और क्यों पर डिस्कशन करने के बाद पूरे सिस्टम का फोकस इसी बात पर नजर आता है कि कोर्स किस तरह खत्म किया जाए। पढ़ाई पूरी तरह सिलेबस देखने, जरूरी सवालों को रटने, परीक्षा देकर पास होने और डिग्री लेने पर ही सीमित होती नजर आ रही है। जबकि इंग्लैंड समेत यूरोपीय देशों के शिक्षण संस्थानों में रटने की बजाए ग्रुप डिस्कशन पर जोर दिया जाने लगा है। वहां शिक्षक किसी भी सवाल को छात्रों को सामने रखते हैं, ग्रुप डिस्कशन करते हैं और उसका हल निकालते हैं। यूरोप समेत दुनिया के विकसित देशों के बड़े शिक्षा संस्थानों में इसी फार्मूले से पढ़ाई हो रही है। यहां भी क्वालिटी के लिए शिक्षा का सिस्टम बदलना जरूरी है।
रविवि में इंग्लैंड से आए शेफील्ड हलाम यूनिवर्सिटी और किंग्स कॉलेज के विशेषज्ञों से दैनिक भास्कर ने विशेष बातचीत की। उन्होंने राज्य समेत देश की शिक्षा को लेकर कुछ बिंदुओं पर अपनी बात रखी। शेफिल्ड हलाम यूनिवर्सिटी के गेरेथ प्राइस बताया कि छत्तीसगढ़ समेत देशभर के अलग-अलग शिक्षण संस्थाओं से कार्यक्रम में शामिल होने आए शिक्षकों से बातचीत में यह पता चलता है कि यहां के सिलेबस बड़ा है, जबकि उसके लिए शिक्षकों के पास समय कम। इसलिए पढ़ाई एक पैटर्न पर चल रही है। शिक्षक एक टॉपिक या प्रॉब्लम को सामने लाता है और फिर उसका समाधान बताकर चला जाता है। शिक्षक यहां ट्रांसमीटर की तरह काम कर रहा है, जबकि स्टूडेंट उसका रिसीवर है। यानी जो उसने पढ़ाया वह छात्र समझा या नहीं, कितने छात्रों को उनकी बात पसंद आई। इस बारे में कोई चर्चा नहीं होगी। ग्रुप बनाकर किसी मामले में डिस्कशन नहीं होता। इसे समस्या ज्यादा है। पढ़ाई के पैटर्न में बदलाव लाना होगा।
शिक्षकों में इच्छाशक्ति की कमी
प्रदेश के स्कूल अफसरों का दावा घटाई जा रही है रटने की प्रवृति
पढ़ो, रटो और परीक्षा देकर पास हो ... इस सिस्टम में बदलाव को लेकर स्कूली शिक्षा विभाग का दावा है कि वह कोशिश में लगा है। जिला शिक्षा अधिकारी एएन बंजारा ने बताया कि रटने की प्रवृत्ति कम हो, बच्चे सोच-समझकर सवालों के जवाब दें, शिक्षकों से प्रश्न भी पूछें, इस पर काम कर रहे हैं। प्रैक्टिकल व अन्य तरीकों से बच्चों को समझाने का प्रयास किया जा रहा है। शिक्षक भी अलग-अलग तरह के नवाचार बच्चों के बीच ला रहे हैं। यह उन्हें पसंद भी आ रहा है। बच्चों में समझकर जवाब देने की प्रवृत्ति बढ़ाने की इस कोशिश को आगे ले जाएंगे।
किंग्स कॉलेज के क्रिस्टोफर एली, रविवि के डॉ. संजय तिवारी और शेफील्ड हलाम यूनिवर्सिटी की डायना ब्रेसवेल।
रिसर्च पर प्रदेश में पहला कार्यक्रम
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च, पुणे की ओर से रविवि में अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला मे इंग्लैंड के सात विषय विशेषज्ञ शामिल हुए। विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. संजय तिवारी व डॉ. कल्लोल घोष ने बताया कि छत्तीसगढ़ अंचल में पहली बार शोध आधारित शिक्षण विषय पर यह कार्यशाला आयोजित की गई थी। इसमें छत्तीसगढ़ के अलावा, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, झारखंड, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र समेत अन्य जगहों से भी विशेषज्ञ आए।
किंग्स कॉलेज, इंग्लैंड के लेक्चरर क्रिस्टोफर एली ने बताया कि पढ़ाई में डिस्कशन नहीं होने से परेशानी है। इसके अलावा शिक्षकों में इच्छा शक्ति का होना भी महत्वपूर्ण है। यहां हो रहे कार्यशाला में शुरुआत में शिक्षकों ने काफी उत्साह दिखाया लेकिन आखिरी दिन में यह ठंडा पड़ गया। शिक्षकों का ध्यान कार्यक्रम से हट गया। जबकि इंग्लैंड या अन्य देशों में ऐसा नहीं है। वहां कार्यक्रम के आखिरी दिन भी ज्यादा से ज्यादा ज्ञान पाने के लिए शिक्षक या अन्य जोर लगाते हैं। इसमें बदलाव लाना होगा।
भास्कर से खास बाचती में इन विशेषज्ञों का कहना है कि छत्तीसगढ़ ही नहीं, देश में कई जगह शिक्षा का पैटर्न ऐसा है कि बच्चों के साथ क्या और क्यों पर डिस्कशन करने के बाद पूरे सिस्टम का फोकस इसी बात पर नजर आता है कि कोर्स किस तरह खत्म किया जाए। पढ़ाई पूरी तरह सिलेबस देखने, जरूरी सवालों को रटने, परीक्षा देकर पास होने और डिग्री लेने पर ही सीमित होती नजर आ रही है। जबकि इंग्लैंड समेत यूरोपीय देशों के शिक्षण संस्थानों में रटने की बजाए ग्रुप डिस्कशन पर जोर दिया जाने लगा है। वहां शिक्षक किसी भी सवाल को छात्रों को सामने रखते हैं, ग्रुप डिस्कशन करते हैं और उसका हल निकालते हैं। यूरोप समेत दुनिया के विकसित देशों के बड़े शिक्षा संस्थानों में इसी फार्मूले से पढ़ाई हो रही है। यहां भी क्वालिटी के लिए शिक्षा का सिस्टम बदलना जरूरी है।
रविवि में इंग्लैंड से आए शेफील्ड हलाम यूनिवर्सिटी और किंग्स कॉलेज के विशेषज्ञों से दैनिक भास्कर ने विशेष बातचीत की। उन्होंने राज्य समेत देश की शिक्षा को लेकर कुछ बिंदुओं पर अपनी बात रखी। शेफिल्ड हलाम यूनिवर्सिटी के गेरेथ प्राइस बताया कि छत्तीसगढ़ समेत देशभर के अलग-अलग शिक्षण संस्थाओं से कार्यक्रम में शामिल होने आए शिक्षकों से बातचीत में यह पता चलता है कि यहां के सिलेबस बड़ा है, जबकि उसके लिए शिक्षकों के पास समय कम। इसलिए पढ़ाई एक पैटर्न पर चल रही है। शिक्षक एक टॉपिक या प्रॉब्लम को सामने लाता है और फिर उसका समाधान बताकर चला जाता है। शिक्षक यहां ट्रांसमीटर की तरह काम कर रहा है, जबकि स्टूडेंट उसका रिसीवर है। यानी जो उसने पढ़ाया वह छात्र समझा या नहीं, कितने छात्रों को उनकी बात पसंद आई। इस बारे में कोई चर्चा नहीं होगी। ग्रुप बनाकर किसी मामले में डिस्कशन नहीं होता। इसे समस्या ज्यादा है। पढ़ाई के पैटर्न में बदलाव लाना होगा।
शिक्षकों में इच्छाशक्ति की कमी
प्रदेश के स्कूल अफसरों का दावा घटाई जा रही है रटने की प्रवृति
पढ़ो, रटो और परीक्षा देकर पास हो ... इस सिस्टम में बदलाव को लेकर स्कूली शिक्षा विभाग का दावा है कि वह कोशिश में लगा है। जिला शिक्षा अधिकारी एएन बंजारा ने बताया कि रटने की प्रवृत्ति कम हो, बच्चे सोच-समझकर सवालों के जवाब दें, शिक्षकों से प्रश्न भी पूछें, इस पर काम कर रहे हैं। प्रैक्टिकल व अन्य तरीकों से बच्चों को समझाने का प्रयास किया जा रहा है। शिक्षक भी अलग-अलग तरह के नवाचार बच्चों के बीच ला रहे हैं। यह उन्हें पसंद भी आ रहा है। बच्चों में समझकर जवाब देने की प्रवृत्ति बढ़ाने की इस कोशिश को आगे ले जाएंगे।
किंग्स कॉलेज के क्रिस्टोफर एली, रविवि के डॉ. संजय तिवारी और शेफील्ड हलाम यूनिवर्सिटी की डायना ब्रेसवेल।
रिसर्च पर प्रदेश में पहला कार्यक्रम
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च, पुणे की ओर से रविवि में अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला मे इंग्लैंड के सात विषय विशेषज्ञ शामिल हुए। विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. संजय तिवारी व डॉ. कल्लोल घोष ने बताया कि छत्तीसगढ़ अंचल में पहली बार शोध आधारित शिक्षण विषय पर यह कार्यशाला आयोजित की गई थी। इसमें छत्तीसगढ़ के अलावा, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, झारखंड, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र समेत अन्य जगहों से भी विशेषज्ञ आए।
किंग्स कॉलेज, इंग्लैंड के लेक्चरर क्रिस्टोफर एली ने बताया कि पढ़ाई में डिस्कशन नहीं होने से परेशानी है। इसके अलावा शिक्षकों में इच्छा शक्ति का होना भी महत्वपूर्ण है। यहां हो रहे कार्यशाला में शुरुआत में शिक्षकों ने काफी उत्साह दिखाया लेकिन आखिरी दिन में यह ठंडा पड़ गया। शिक्षकों का ध्यान कार्यक्रम से हट गया। जबकि इंग्लैंड या अन्य देशों में ऐसा नहीं है। वहां कार्यक्रम के आखिरी दिन भी ज्यादा से ज्यादा ज्ञान पाने के लिए शिक्षक या अन्य जोर लगाते हैं। इसमें बदलाव लाना होगा।
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