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वीसी ने हाथ जोड़ कहा था- मुझ पर दबाव है, मुझे नौकरी करनी है इसलिए सिफारिशें माननी होंगी

जोधपुर.जेएनवीयू शिक्षक भर्ती में हुई धांधलियों को एसीबी ने कड़ी-दर-कड़ी पिरोकर न्यायालय के सामने रख दिया। सात हजार दस्तावेज के साथ पेश की गई चार्जशीट में कई खुलासे हैं।

कैसे चहेतों के लिए इंटरव्यू के प्रश्न पहले ही तय किए, ताकि वे बोर्ड के सामने धाराप्रवाह जवाब दे सकें, कैसे समरी शीट्स में कांट-छांट कर योग्य को अयोग्य बनाया गया। राजनीतिक सिफारिश व धन-बल का खुलकर उपयोग होने का भी जिक्र किया गया है। ये सब बातें जेएनवीयू के कई प्रोफेसर्स व भर्ती के दौरान जोधपुर के बाहर से आए विषय विशेषज्ञों ने अपने बयानों में कही हैं।
बयानों में यह भी सामने आया कि कैसे वीसी बीएस राजपुरोहित ने चयनकर्ताओं के सामने अपने ऊपर दबाव होना बताया। जेएनवीयू शिक्षक भर्ती घोटाले के मामले में एसीबी की जांच के दौरान अलीगढ़ मुस्लिम विवि के भूगोल विशेषज्ञ प्रो. मोहम्मद अली ने चौंकाने वाला खुलासा किया। एसीबी को दिए गए बयान में अली ने बताया- अभ्यर्थियों के चयन का साक्षात्कार कर उन्हें ग्रेडिंग व अंक देकर एक सामूहिक सूची तैयार की गई थी। हमने मेरिट के आधार पर चयन किया था, जिसकी सूची हमने कुलपति को उपलब्ध करवा दी थी, लेकिन वह सूची बाहर नहीं आई तो इसके लिए कुलपति स्वयं जिम्मेदार हैं। कुलपति ने हाथ जोड़कर कहा था कि हमारे पास पांच अलग-अलग स्तर की सूचियां आई हुई हैं, हर एक में से से कम से कम एक अभ्यर्थी का चयन करना है। उन्होंने यह भी कहा कि मुझ पर दबाव है, मुझे नौकरी करनी है। इसलिए सिफारिशों काे मानना ही होगा। हमारी सहमति नहीं होने के बावजूद चयन प्रक्रिया में अयोग्य अभ्यर्थियों का चयन किया गया। सुनने में आया कि चयन समिति में शामिल जुगल काबरा के भी दो अभ्यर्थी थे, जिनसे 30 लाख रुपए लिए गए थे।
इकोनॉमिक्स के विषय विशेषज्ञ डॉ. सत्येंद्रनाथ चतुर्वेदी ने एसीबी को बताया...
काबरा ने कहा मेरे आदमियों का चयन करो, वीसी कुछ नहीं बोले
चयन समिति ने हमें नियमों के बारे में नहीं बताया। जब हमने समिति के अध्यक्ष से पूछा तो कहा गया कि नियमानुसार ही लोगों को बुलाया गया है। हमने इस बात का विश्वास किया। साक्षात्कार के दौरान जब अंतिम सूची बनाई जा रही थी तो सिंडीकेट के सदस्य पूर्व विधायक जुगल काबरा ने अपनी लिस्ट के अनुसार नाम पढ़कर बिना किसी विशेषज्ञ की सहमति के कहा कि मेरे इन व्यक्तियों का चयन किया जाए। इस पर वहां मौजूद कुलपति ने भी विरोध नहीं किया, अलबत्ता मौन स्वीकृति दे दी। मेरे विषय में मैं अकेला ही एक्सपर्ट था। हमारे से कुलपति ने दो-तीन चयन सूचियों पर हस्ताक्षर करवाए थे। उनमें से कुलपति ने कौनसी सूची को अप्रूव किया, यह वे ही बता सकते हैं। हमारे सामने सूचियों के लिफाफों को सील नहीं किया गया। कुलपति ने आम सहमति नहीं होने पर बहुमत से निर्णय होना बताया था।
मुझे कहा- यही प्रश्न पूछने हैं
4 जनवरी 2013 को समाजशास्त्र विभाग के साक्षात्कार होने थे। एक दिन पहले तीन जनवरी को सिंडीकेट सदस्य डूंगरसिंह खींची मेरे घर आए। मेरे सामने हस्तलिखित कागज लिखा और कहा कि मेरे भाई राजेंद्र सिंह को इन प्रश्नों की तैयारी करवाई है। यदि अवसर मिले तो आप यही प्रश्न पूछना। मैंने कागज लेने से इनकार किया तो खींची ने कहा कि आप मेरे भाई के नाम का विरोध मत करना। अगले दिन साक्षात्कार में प्रो. पीएस चूंडावत ने राजेंद्र सिंह खींची से कार्ल मार्क्स पर कई सवाल पूछे तो उनका जवाब हिंदी में धारा प्रवाह दिया गया। लेकिन जब दूसरे विशेषज्ञ प्रो. बीएस बिष्ट ने कार्ल मार्क्स के एलिनिएशन पर सवाल किया तो राजेंद्र सिंह परेशान हो गया। इससे स्पष्ट हो गया कि वह केवल उन्हीं सवालों का जवाब दे पा रहा था जो पहले से तैयार थे। प्रो. चूंडावत ने ही चयन समिति के सदस्यों की सलाह से तीन नाम तय कर दिए। मैं इससे सहमत नहीं था। वीसी प्रो. बीएस राजपुरोहित ने मुझे बोलने नहीं दिया। तीन उम्मीदवारों के नाम को अंतिम रूप दिया गया।
इस दौरान जुगल काबरा अपनी सीट से उठे और उन्होंने वीसी के कान में कुछ कहा। इसके बाद वीसी ने पहले से निर्धारित पैनल नष्ट कर नया पैनल बनाया जिसमें उम्मीदवारों के क्रम बदल दिए। कुलपति ने मुझे फोन कर अपने घर बुलाकर कहा कि उनके विभाग के जिन स्क्रूटनिंग फाॅर्म पर कांट-छांट हैं, आप नए फाॅर्म पर हस्ताक्षर कर दें। मैंने मना कर दिया तो मुझे परिणाम भुगतने की बात कही गई। मैं वहां से चला गया। समरी शीट पर पहले जिन अभ्यर्थियों को अयोग्य लिखा गया था, बाद में उन्हें योग्य लिखा गया। मैंने प्रो. एस चूंडावत को विशेषज्ञ सूची में शामिल करने पर भी एेतराज किया था।
काजरी के तत्कालीन निदेशक ने कहा- धोखे में रखकर करवाए हस्ताक्षर
फाइन आर्ट एंड पेंटिंग विभाग के साक्षात्कार में काजरी के तत्कालीन निदेशक डॉ. एमएम राय को राज्यपाल के प्रतिनिधि के रूप में शामिल किया गया। 25 दिसंबर 2012 को इंटरव्यू होने थे। इस दिन डॉ. राय दोपहर 1.15 बजे जयपुर चले गए तो दो बजे इंटरव्यू में कैसे शामिल होते, लेकिन जब चयन सूची बनी तो उनके हस्ताक्षर थे। इस पर प्रो. राय ने अपने बयान में कहा कि कुलपति व चयन समिति के अध्यक्ष प्रो. बीएस राजपुरोहित ने उनसे धोखे में हस्ताक्षर करवाए थे।
इंटरव्यू से पहले वीसी लेते थे बैठक
दरियावसिंह चूंडावत राज्य सरकार के प्रतिनिधि के रूप में शामिल थे। मामले में वे भी आरोपी हैं। उन्होंने एसीबी को बताया कि वीसी राजपुरोहित सभी साक्षात्कार से पहले स्थानीय सदस्यों के साथ मीटिंग करते थे। जब स्थानीय लोगों के हस्ताक्षर हो जाते तो वे मुझे कहते कि विषय विशेषज्ञों के हस्ताक्षर हो गए हैं तो आप क्यों नहीं करते हो? असहमत होने के बावजूद मेरे से साक्षात्कार की रिपोर्ट व लिफाफे पर हस्ताक्षर करवाए। अंग्रेजी विभाग के साक्षात्कार में राखी व्यास, रिचा बोहरा को लेकर आपत्ति जताई गई, लेकिन वीसी के कहने पर नाम जोड़े गए। प्रबंध संकाय में यामिनी शर्मा का चयन वीसी की अनुशंसा पर किया गया। ऐसे ही अर्थशास्त्र में जया भंडारी, रजनीकांत त्रिवेदी व देवकरण जैसे अयोग्य अभ्यर्थियों का चयन भी हुआ।
डॉ. खींची और प्रो. भादू ने लिए 10 से 20 लाख रुपए
कुलपति राजपुरोहित, एसएस शर्मा, डीएस खींची, प्रो. एएल जीनगर, प्रो. एमएल वडेरा, पूर्व कुलपति प्रो. नवीन माथुर, प्रो. पीएस भाटी, प्रो. कामिनी दिनेश, डॉ. एसएस सांखला के रिश्तेदारों का चयन हुआ। कुलपति राजपुरोहित की स्कॉलर यामिनी शर्मा के अलावा कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों के रिश्तेदारों का भी चयन हुआ। डॉ. खींची व प्रो. शिशुपाल भादू ने मिलीभगत से विभा भूत व भरत देवड़ा से दस से बीस लाख रुपए का आर्थिक लेन देन भी किया। - निर्मला मीणा, तत्कालीन रजिस्ट्रार (हालांकि मीणा के आरोपों के साक्ष्य एसीबी को नहीं मिले हैं।)
किसी सवाल का जवाब नहीं, फिर भी लिस्ट में
साक्षात्कार पूरे होने के बाद कुलपति ने बिना विषय विशेषज्ञों की राय लिए क्षितिज महर्षि का चयन कर लिया, जबकि उनकी तुलना में अन्य अभ्यर्थी की परफॉर्मेंस अच्छी थी। हमारे संकाय के तत्कालीन डीन प्रो. रामचंद्र सिंह राजपुरोहित की पुत्री कविता राजपुरोहित का नाम रिजर्व में रखा गया था, जबकि उसने एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया था। - प्रो. सुमनेशनाथ मोदी, बिजनेस, फाइनेंस व इकोनॉमिक्स विभाग
शर्तों के अनुसार अयोग्य, फिर भी चयन हुआ
मैं लोक प्रशासन विभाग के विशेषज्ञ के रूप में शामिल हुआ था। शरद शेखावत के आवेदन पत्र पर मैंने ऐतराज जताते हुए कहा था कि वह जेएनवीयू की ओर से जारी विज्ञप्ति की शर्तों के अनुसार अयोग्य है। इसके बावजूद विभागाध्यक्ष प्रो. भीमसिंह चौहान ने उसके चयन का प्रस्ताव रखा। शरद के अयोग्य होने के बावजूद उसका चयन हो गया। - प्रो. रघुवीरसिंह तोमर, रिटायर्ड प्रोफेसर, वाराणसी

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