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Monday 23 January 2017

शिक्षक ने 33 साल जहां-जहां पढ़ाया, 2.10 लाख रुपए वहां दिए ताकि किताबें खरीद सकें

जोधपुर.शैक्षिक प्रकोष्ठ अधिकारी माध्यमिक के पद से रिटायर हुए ओमप्रकाश चारण ने 33 साल तक स्कूलों में पढ़ाने के दौरान बच्चों में किताबों और खेलकूद सामग्री का इतनी कमी देखी कि रिटायरमेंट के बाद मिले पैसों से कुछ हिस्सा इन बच्चों के लिए दे दिया। चारण ने अपने कार्यकाल में 8 स्कूलों में पढ़ाया।

सरकारी नौकरी लगने से पहले 10 साल तक मथानिया की आदर्श विद्या मंदिर में निशुल्क सेवाएं दीं थी। उन्होंने 3 जनवरी को वीआरएस लिया था। जो पैसा मिला उसमें से 15 फीसदी यानि 2.10 लाख रुपए इन्हीं नौ स्कूलों के बच्चों के लिए दिया ताकि वहां लाइब्रेरी और खेलकूद के लिए सामग्री खरीदी जा सके। चारण कहते हैं, ‘ये पैसे कुछ भी नहीं है। छोटी सी रकम से कुछ बच्चों को किताबें और खेलने के लिए स्पोटर्स का सामान जरूर मिलेगा। मैंने इन्हीं स्कूलों का नमक खाया था।’ चारण ने बताया कि शिक्षा विभाग बच्चों की स्पोर्ट्स एक्टिविटी के लिए स्कूलों को पैसा नहीं देता है। अगर किसी कॉम्पीटिशन में भी जाना हो तो बच्चे खुद चंदा करके या भामाशाहों की मदद लेते हैं। उपकरणों के अभाव में बच्चे प्रेक्टिस भी नहीं कर पाते हैं।
चारण के माता-पिता 90 साल से अधिक उम्र के हैं और उनकी सेवा के लिए रिटायरमेंट से पांच माह पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली है। 30 साल की उम्र में उनकी नौकरी तृतीय श्रेणी अध्यापक पद लगी और मई 1981 में मिडिल स्कूल कोतवाली में पहली पोस्टिंग मिली। यहां दो महीने पढ़ाया। दो साल मथानिया में पोस्टिंग रही। नवंबर 1983 में नांदिया खुर्द मिडिल स्कूल, फिर जुड़, बाड़मेर से मथानिया फिर बावड़ी स्कूल प्रिंसीपल और डीईओ माध्यमिक प्रथम कार्यालय में शैक्षिक प्रकोष्ठ अधिकारी के पद से वीआरएस ले लिया।
सबसे ज्यादा एक लाख निजी स्कूल को
प्राइमरी मथानिया जो राउमावि मथानिया में मर्ज हो गई दोनों को 25 हजार, चिराई स्कूल को 5 हजार, रामावि नांदिया खुर्द व जुड़, राउमावि बावड़ी और राउप्रावि कोतवाली (वर्तमान सैकंडरी स्कूल), राउमावि बाड़मेर, कूपड़ावास स्कूल, डीईओ माध्यमिक कार्यालय व एक अज्ञात स्कूल को 10-10 हजार रुपए दिए। वहीं सर्वाधिक एक लाख रुपए आदर्श विद्या मंदिर मथानिया को दिए।
जहां से दो माह वेतन बना, वहां भी दिए 5 हजार
चारण ने मथानिया स्कूल में सितंबर माह में ज्वाइन कर लिया, लेकिन पद खाली नहीं होने के कारण वेतन रामावि चिराई से बनाया गया। इसलिए इन्होंने दो माह की तनख्वाह लेने के बदले यहां के बच्चों के लिए पांच हजार रुपए दिए। उदलियावास के कूपड़ावास गांव में जन्मे चारण ने अपनी जन्मभूमि की स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के लिए भी दस हजार रुपए दिए।

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