पढ़ने और पढ़ाने का जुनून देखना है तो शहर के 81 साल के बुजुर्ग टीकमचंद
असावरा को देखिए। घर की दयनीय स्थिति के चलते कभी जूते पॉलिश किए तो कभी
होटल में चपरासी का काम किया। वो बताते हैं कि इससे गुजारा नहीं हुआ तो फिर
दिहाड़ी मजदूरी का काम भी करना पड़ा।
जीवन में संघर्ष और कई उठा-पटक के दिन देखे लेकिन उनकी जिद थी पढ़ने और पढ़ाने की। उन्होंने अपने सपनों को मरने नहीं दिया और काम के साथ पढ़ाई भी जारी रखी। पढ़ने का ही जुनून था कि काम के साथ एमए और एलएलबी तक की पढ़ाई कर पाए। फिर पढ़ाने का ही जुनून था कि एक निजी स्कूल खोल आज तक 17 हजार से ज्यादा बच्चों को प्राथमिक शिक्षा का ज्ञान दे चुके हैं। टीकमचंद के बच्चों को समझाने पढ़ाने का तरीका जितना अच्छा है उतना ही सादा उनका रहन-सहन भी है। आज भी स्कूल और बाजार में वे अक्सर धोती-कुरता में नजर जाएंगे। इसके साथ क्षेत्र में इनकी पहचान साइकिल वाले गुरुजी से भी है क्योंकि साइकिल ही उनके यातायात का साधन है। पिछले साल से टीकमचंद शहर से करीब 12 किमी. दूर धोल की पाटी गांव स्थित वृद्धाश्रम में रह रहे हैं।
जरूरतमंद बच्चों और बेटियों को देते हैं दाखिले में प्राथमिकता
टीकमचंदबताते हैं कि जो गरीब परिवार के बच्चे हैं, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर प्रवेश दिया जाता है। भले ही किसी बच्चे के ज्यादा अंक हो। टीकमचंद और उनके शिक्षक बेटियों को पढ़ाने के लिए अभिभावकों को जागरूक करने का काम भी करते हैं। जो अभिभावक बेटियों को नहीं पढ़ाते या आर्थिक तंगी से परेशान हैं उनकी मदद भी करते हैं।
परिवार के ही 5 बच्चों से शुरू किया कारवां, आज कई शाखाएं हैं
13जून वर्ष 1967 को इन्होंने अपने निवास स्थान भोईवाड़ा में अपने परिवार के 5 बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। पड़ोसियों को पता चला तो वे भी अपने बच्चों को उनके पास पढ़ाई के लिए भेजने लगे। धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ी और टीकमचंद के सपनों को पंख मिलता चला गया। दो माह में ही उनके पास 50 से ज्यादा बच्चे पढ़ने आने लगे। फिर उन्होंने एक स्कूल खोलने को सोचा।
स्कूल के लिए जगह नहीं मिली तो उन्होंने खुले में छपरा डालकर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। 6 माह बाद ही बच्चों की संख्या 275 हो गई। फिर समाज ने स्कूल खोले में मदद की और खाली जमीन पर 12 फरवरी 1972 को प्राथमिक स्कूल की स्थापना की। जिसका शिलान्यास पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की प|ी ललिता शास्त्री ने किया। धीरे-धीरे उनका कारवां बढ़ता गया और आज हिरण मगरी, धोल की पाटी भोईवाड़ा क्षेत्र में स्कूल की अलग-अलग शाखाएं चल रही हैं। जहां वर्तमान में 1700 बच्चे अध्ययनरत हैं।
जीवन में संघर्ष और कई उठा-पटक के दिन देखे लेकिन उनकी जिद थी पढ़ने और पढ़ाने की। उन्होंने अपने सपनों को मरने नहीं दिया और काम के साथ पढ़ाई भी जारी रखी। पढ़ने का ही जुनून था कि काम के साथ एमए और एलएलबी तक की पढ़ाई कर पाए। फिर पढ़ाने का ही जुनून था कि एक निजी स्कूल खोल आज तक 17 हजार से ज्यादा बच्चों को प्राथमिक शिक्षा का ज्ञान दे चुके हैं। टीकमचंद के बच्चों को समझाने पढ़ाने का तरीका जितना अच्छा है उतना ही सादा उनका रहन-सहन भी है। आज भी स्कूल और बाजार में वे अक्सर धोती-कुरता में नजर जाएंगे। इसके साथ क्षेत्र में इनकी पहचान साइकिल वाले गुरुजी से भी है क्योंकि साइकिल ही उनके यातायात का साधन है। पिछले साल से टीकमचंद शहर से करीब 12 किमी. दूर धोल की पाटी गांव स्थित वृद्धाश्रम में रह रहे हैं।
जरूरतमंद बच्चों और बेटियों को देते हैं दाखिले में प्राथमिकता
टीकमचंदबताते हैं कि जो गरीब परिवार के बच्चे हैं, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर प्रवेश दिया जाता है। भले ही किसी बच्चे के ज्यादा अंक हो। टीकमचंद और उनके शिक्षक बेटियों को पढ़ाने के लिए अभिभावकों को जागरूक करने का काम भी करते हैं। जो अभिभावक बेटियों को नहीं पढ़ाते या आर्थिक तंगी से परेशान हैं उनकी मदद भी करते हैं।
परिवार के ही 5 बच्चों से शुरू किया कारवां, आज कई शाखाएं हैं
13जून वर्ष 1967 को इन्होंने अपने निवास स्थान भोईवाड़ा में अपने परिवार के 5 बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। पड़ोसियों को पता चला तो वे भी अपने बच्चों को उनके पास पढ़ाई के लिए भेजने लगे। धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ी और टीकमचंद के सपनों को पंख मिलता चला गया। दो माह में ही उनके पास 50 से ज्यादा बच्चे पढ़ने आने लगे। फिर उन्होंने एक स्कूल खोलने को सोचा।
स्कूल के लिए जगह नहीं मिली तो उन्होंने खुले में छपरा डालकर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। 6 माह बाद ही बच्चों की संख्या 275 हो गई। फिर समाज ने स्कूल खोले में मदद की और खाली जमीन पर 12 फरवरी 1972 को प्राथमिक स्कूल की स्थापना की। जिसका शिलान्यास पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की प|ी ललिता शास्त्री ने किया। धीरे-धीरे उनका कारवां बढ़ता गया और आज हिरण मगरी, धोल की पाटी भोईवाड़ा क्षेत्र में स्कूल की अलग-अलग शाखाएं चल रही हैं। जहां वर्तमान में 1700 बच्चे अध्ययनरत हैं।
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