सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री कर्नल राज्यवर्धन राठौर ने संसद में बयान दिया कि केंद्र सरकार भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा प्रदान करने के बारे में गंभीरता से विचार कर रही है.
आईआईएमसी के फिलहाल भारत में नई दिल्ली, ढेंकनाल (ओडिशा), आईजोल (मिजोरम), अमरावती (महाराष्ट्र)जम्मू (जम्मू-कश्मीर) और कोट्टायम (केरल) छह सेंटर है. पिछले महीने खबर आई थी कि एनडीए सरकार राजस्थान की राजधानी जयपुर में आईआईएमसी का सातवां सेंटर खोलने जा रही है. मौजूदा संस्थानों में दिल्ली सबसे पुराना है इसके बाद उड़ीसा स्थित ढेंकनाल की बारी आती है जिसे 1993 में स्थापित किया गया था.
अब "राष्ट्रीय महत्व" के इस मीडिया संस्थान की कुछ और खासियतें जानिए. इन छह सेंटरों को सिर्फ 12 स्थायी फैकल्टी मिलकर चला रहे हैं. आईआईएमसी की वेबसाइट के अनुसार कुल 12 स्थायी टीचिंग फैकल्टी आईआईएमसी में हैं. इनमें से 11 फैकल्टी दिल्ली में हैं जबकि ढेंकनाल में सिर्फ एक स्थायी फैकल्टी है.
आईआईएमसी के फिलहाल भारत में नई दिल्ली, ढेंकनाल, आईजोल, अमरावती, जम्मू, और कोट्टायम छह सेंटर है
देश का सबसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान (आईआईएमसी) और उसके सेंटर गेस्ट फैकल्टी के सहारे चल रहे हैं. वो भी दो-ढाई दशकों से.
गेस्ट फैकल्टी की भी दो श्रेणियां हैं. एक वे शिक्षक है जिन्हें प्रति क्लास के हिसाब से भुगतान किया जाता है. दूसरे वे शिक्षक हैं जिन्हें संस्थान कुछ तय समय के लिए अनुबंधित करते हैं.
आईआईएमसी में पिछले कई वर्षों से पढ़ा रहे एक शिक्षक नाम नहीं उजागर करने की शर्त पर बताते हैं कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अनुसार पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सों में प्रति दस छात्रों पर एक स्थायी शिक्षक की नियुक्ति जरूरी है. वर्तमान में आईआईएमसी में जितने छात्र पढ़ते हैं उस हिसाब से 35 से 40 के करीब स्थायी शिक्षक होने चाहिए. ढेंकनाल सेंटर में 85 छात्रों का कोटा है. यूजीसी की गाइडलाइंस के मुताबिक यहां कम से कम वहां नौ स्थायी शिक्षक होने चाहिए.
स्थायी शिक्षकों की कमी के सवाल पर आईआईएमसी के महानिदेशक केजी सुरेश कहते हैं, 'मुझे तो आए हुए सिर्फ एक महीने हुए हैं. जल्द ही बहाली की प्रक्रिया शुरू होगी. कई चीजें पिछले कई सालों से अटकी हुई हैं, उन्हें पूरा करना अभी बाकी है. आने वाले समय में सभी सेंटरों में परिवर्तन होगा.'
आईआईएमसी की स्थापना 50 साल पहले 1965 में तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी के रहते हुई थी. चार साल बाद यहां अंग्रेजी पत्रकारिता की पढ़ाई शुरू हुई थी.
पिछले कई दशकों से आईआईएमसी को सूचना केंद्र के रूप में स्थापित करने की बात चल रही है. फिलहाल यहां सिर्फ डिप्लोमा की डिग्री दी जाती है. 2013 में तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण सचिव ने दावा किया था कि आईआईएमसी को 'राष्ट्रीय महत्व के संस्थान' का दर्जा मिलने के बाद यहां डिप्लोमा के अलावा एमए, एमफिल, पीचएडी की भी पढ़ाई होगी.
केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षक संकाय की कुल मंजूर संख्या 16600 हैं जिसमें करीब 36 फीसदी पद खाली है
नाम ना छापने के शर्त पर आईआईएमसी दिल्ली में काम कर रहे एक अधिकारी ने बताया कि सूचना प्रसारण मंत्री और सूचना सचिव के बयानों के बाद ऐसा नहीं लग रहा है कि सरकार आईआईएमसी को लेकर कोई गंभीर प्रयास कर रही है.
अधिकारी ने बताया कि दिल्ली में ही प्रोफेसर के तीन-चार, एसोसिएट प्रोफेसर के तीन-चार और असिस्टेंट प्रोफेसर प्रोफेसर के दो-तीन पोस्ट लंबे समय से खाली है.
आईआईएमसी का पहला सेंटर ओडिशा के ढेंकनाल में 1993 में खोला गया था. ढेंकनाल में पढ़ा रहे एक शिक्षक ने बताया कि जब यह सेंटर खुला था तब यहां प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर को मिलाकर तीन स्थायी नियुक्तियों की बात कही गई थी, लेकिन आज तक यहां सिर्फ एक ही स्थायी प्रोफेसर है.
शुरुआत में यहां सिर्फ अंग्रेजी पत्रकारिता की पढ़ाई होती थी. कुछ साल बाद यहां उड़िया पत्रकारिता की भी पढ़ाई होने लगी. और दोनों कोर्सों में छात्रों की संख्या भी बढ़ी है. बावजूद इसके यहां उड़िया पत्रकारिता की कोई स्थायी फैकल्टी नहीं है. यह सेंटर सिर्फ एक स्थायी फैकल्टी के सहारे चल रहा है.
एक तरफ सरकार आईआईएमसी को नेशनल इनफॉर्मेशन हब बनाने की चर्चा कर रही है वहीं दूसरी ओर दिल्ली के बाहर आईआईएमसी के सेंटरों में कभी-कभी स्काइप और विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दिल्ली से ही क्लास करा दी जाती है.
पिछले कई दशकों से आईआईएमसी को सूचना केंद्र के रूप में स्थापित करने की बात चल रही है
ऐसा नहीं है कि सिर्फ आईआईएमसी में ही स्थायी शिक्षकों की कमी है. हाल में ही एचआरडी पर संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष बीजेपी सांसद सत्यनारायण जटिया ने पूरे देश में उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की 'अत्यंत' कमी पर चिंता जताई है. समिति के अनुसार केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षक संकाय की कुल मंजूर संख्या 16600 हैं जिसमें करीब 36 फीसदी पद खाली है.
आईआईएमसी की वेबसाइट के अनुसार यहां इस साल 385 सीटों के लिए आवेदन मंगाए गए हैं. इसमें अंग्रेजी पत्रकारिता के लिए 184 सीटें, हिंदी पत्रकारिता के लिए 62 सीटें, उड़िया पत्रकारिता के लिए 23 सीटें, रेडियो-टीवी पत्रकारिता के लिए 46 और विज्ञापन व जनसंपर्क विभाग में 70 सीटें हैं.
फिलहाल अमरावती, आईजॉल, जम्मू और कोट्टायम में सिर्फ अंग्रेजी पत्रकारिता की पढ़ाई हो रही जबकि ढेंकनाल में अंग्रेजी के अलावा उड़िया पत्रकारिता की भी पढ़ाई होती है.
नाम ना छापने के शर्त ढेंकनाल में पढ़ा रहे एक शिक्षक ने कहा कि स्थायी फैकल्टी, कोर्स और छात्रों के लिए एंकर की भूमिका में होते हैं. अस्थायी शिक्षकों से छात्र जुड़ाव महसूस नहीं कर पाते हैं. वर्तमान में मीडिया का दायरा बढ़ता जा रहा है और अब सोशल मीडिया भी संचार का एक प्रमुख साधन बन गया है. इन सब को देखते हुए हर कोर्स में स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति जरूरी है.
आईआईएमसी में पिछले सालों में सभी कोर्सों में छात्रों की संख्या बढ़ी है. लेकिन स्थायी शिक्षकों के लिए प्रस्तावित पद खाली हैं. आईआईएमसी से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि जल्द ही पुराने पदों को भरने के लिए आवेदन मंगाए जाएंगे.
अगर आईआईएमसी को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान बनाया गया तो यहां छात्रों की संख्या और बढ़ेगी. इसके बाद यहां स्थायी शिक्षकों की मांग और बढ़ेगी. सरकार को सबसे पहले आईआईएमसी में स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति की दिशा में ध्यान देना चाहिए.
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आईआईएमसी के फिलहाल भारत में नई दिल्ली, ढेंकनाल (ओडिशा), आईजोल (मिजोरम), अमरावती (महाराष्ट्र)जम्मू (जम्मू-कश्मीर) और कोट्टायम (केरल) छह सेंटर है. पिछले महीने खबर आई थी कि एनडीए सरकार राजस्थान की राजधानी जयपुर में आईआईएमसी का सातवां सेंटर खोलने जा रही है. मौजूदा संस्थानों में दिल्ली सबसे पुराना है इसके बाद उड़ीसा स्थित ढेंकनाल की बारी आती है जिसे 1993 में स्थापित किया गया था.
अब "राष्ट्रीय महत्व" के इस मीडिया संस्थान की कुछ और खासियतें जानिए. इन छह सेंटरों को सिर्फ 12 स्थायी फैकल्टी मिलकर चला रहे हैं. आईआईएमसी की वेबसाइट के अनुसार कुल 12 स्थायी टीचिंग फैकल्टी आईआईएमसी में हैं. इनमें से 11 फैकल्टी दिल्ली में हैं जबकि ढेंकनाल में सिर्फ एक स्थायी फैकल्टी है.
आईआईएमसी के फिलहाल भारत में नई दिल्ली, ढेंकनाल, आईजोल, अमरावती, जम्मू, और कोट्टायम छह सेंटर है
देश का सबसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान (आईआईएमसी) और उसके सेंटर गेस्ट फैकल्टी के सहारे चल रहे हैं. वो भी दो-ढाई दशकों से.
गेस्ट फैकल्टी की भी दो श्रेणियां हैं. एक वे शिक्षक है जिन्हें प्रति क्लास के हिसाब से भुगतान किया जाता है. दूसरे वे शिक्षक हैं जिन्हें संस्थान कुछ तय समय के लिए अनुबंधित करते हैं.
आईआईएमसी में पिछले कई वर्षों से पढ़ा रहे एक शिक्षक नाम नहीं उजागर करने की शर्त पर बताते हैं कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अनुसार पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सों में प्रति दस छात्रों पर एक स्थायी शिक्षक की नियुक्ति जरूरी है. वर्तमान में आईआईएमसी में जितने छात्र पढ़ते हैं उस हिसाब से 35 से 40 के करीब स्थायी शिक्षक होने चाहिए. ढेंकनाल सेंटर में 85 छात्रों का कोटा है. यूजीसी की गाइडलाइंस के मुताबिक यहां कम से कम वहां नौ स्थायी शिक्षक होने चाहिए.
स्थायी शिक्षकों की कमी के सवाल पर आईआईएमसी के महानिदेशक केजी सुरेश कहते हैं, 'मुझे तो आए हुए सिर्फ एक महीने हुए हैं. जल्द ही बहाली की प्रक्रिया शुरू होगी. कई चीजें पिछले कई सालों से अटकी हुई हैं, उन्हें पूरा करना अभी बाकी है. आने वाले समय में सभी सेंटरों में परिवर्तन होगा.'
आईआईएमसी की स्थापना 50 साल पहले 1965 में तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी के रहते हुई थी. चार साल बाद यहां अंग्रेजी पत्रकारिता की पढ़ाई शुरू हुई थी.
पिछले कई दशकों से आईआईएमसी को सूचना केंद्र के रूप में स्थापित करने की बात चल रही है. फिलहाल यहां सिर्फ डिप्लोमा की डिग्री दी जाती है. 2013 में तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण सचिव ने दावा किया था कि आईआईएमसी को 'राष्ट्रीय महत्व के संस्थान' का दर्जा मिलने के बाद यहां डिप्लोमा के अलावा एमए, एमफिल, पीचएडी की भी पढ़ाई होगी.
केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षक संकाय की कुल मंजूर संख्या 16600 हैं जिसमें करीब 36 फीसदी पद खाली है
नाम ना छापने के शर्त पर आईआईएमसी दिल्ली में काम कर रहे एक अधिकारी ने बताया कि सूचना प्रसारण मंत्री और सूचना सचिव के बयानों के बाद ऐसा नहीं लग रहा है कि सरकार आईआईएमसी को लेकर कोई गंभीर प्रयास कर रही है.
अधिकारी ने बताया कि दिल्ली में ही प्रोफेसर के तीन-चार, एसोसिएट प्रोफेसर के तीन-चार और असिस्टेंट प्रोफेसर प्रोफेसर के दो-तीन पोस्ट लंबे समय से खाली है.
आईआईएमसी का पहला सेंटर ओडिशा के ढेंकनाल में 1993 में खोला गया था. ढेंकनाल में पढ़ा रहे एक शिक्षक ने बताया कि जब यह सेंटर खुला था तब यहां प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर को मिलाकर तीन स्थायी नियुक्तियों की बात कही गई थी, लेकिन आज तक यहां सिर्फ एक ही स्थायी प्रोफेसर है.
शुरुआत में यहां सिर्फ अंग्रेजी पत्रकारिता की पढ़ाई होती थी. कुछ साल बाद यहां उड़िया पत्रकारिता की भी पढ़ाई होने लगी. और दोनों कोर्सों में छात्रों की संख्या भी बढ़ी है. बावजूद इसके यहां उड़िया पत्रकारिता की कोई स्थायी फैकल्टी नहीं है. यह सेंटर सिर्फ एक स्थायी फैकल्टी के सहारे चल रहा है.
एक तरफ सरकार आईआईएमसी को नेशनल इनफॉर्मेशन हब बनाने की चर्चा कर रही है वहीं दूसरी ओर दिल्ली के बाहर आईआईएमसी के सेंटरों में कभी-कभी स्काइप और विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दिल्ली से ही क्लास करा दी जाती है.
पिछले कई दशकों से आईआईएमसी को सूचना केंद्र के रूप में स्थापित करने की बात चल रही है
ऐसा नहीं है कि सिर्फ आईआईएमसी में ही स्थायी शिक्षकों की कमी है. हाल में ही एचआरडी पर संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष बीजेपी सांसद सत्यनारायण जटिया ने पूरे देश में उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की 'अत्यंत' कमी पर चिंता जताई है. समिति के अनुसार केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षक संकाय की कुल मंजूर संख्या 16600 हैं जिसमें करीब 36 फीसदी पद खाली है.
आईआईएमसी की वेबसाइट के अनुसार यहां इस साल 385 सीटों के लिए आवेदन मंगाए गए हैं. इसमें अंग्रेजी पत्रकारिता के लिए 184 सीटें, हिंदी पत्रकारिता के लिए 62 सीटें, उड़िया पत्रकारिता के लिए 23 सीटें, रेडियो-टीवी पत्रकारिता के लिए 46 और विज्ञापन व जनसंपर्क विभाग में 70 सीटें हैं.
फिलहाल अमरावती, आईजॉल, जम्मू और कोट्टायम में सिर्फ अंग्रेजी पत्रकारिता की पढ़ाई हो रही जबकि ढेंकनाल में अंग्रेजी के अलावा उड़िया पत्रकारिता की भी पढ़ाई होती है.
नाम ना छापने के शर्त ढेंकनाल में पढ़ा रहे एक शिक्षक ने कहा कि स्थायी फैकल्टी, कोर्स और छात्रों के लिए एंकर की भूमिका में होते हैं. अस्थायी शिक्षकों से छात्र जुड़ाव महसूस नहीं कर पाते हैं. वर्तमान में मीडिया का दायरा बढ़ता जा रहा है और अब सोशल मीडिया भी संचार का एक प्रमुख साधन बन गया है. इन सब को देखते हुए हर कोर्स में स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति जरूरी है.
आईआईएमसी में पिछले सालों में सभी कोर्सों में छात्रों की संख्या बढ़ी है. लेकिन स्थायी शिक्षकों के लिए प्रस्तावित पद खाली हैं. आईआईएमसी से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि जल्द ही पुराने पदों को भरने के लिए आवेदन मंगाए जाएंगे.
अगर आईआईएमसी को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान बनाया गया तो यहां छात्रों की संख्या और बढ़ेगी. इसके बाद यहां स्थायी शिक्षकों की मांग और बढ़ेगी. सरकार को सबसे पहले आईआईएमसी में स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति की दिशा में ध्यान देना चाहिए.
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