जालोर की गायत्री देवी ने जिस स्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में नौकरी की शुरुआत की आज वे उसी स्कूली में प्रिंसिपल के पद पर कार्यरत है। 700 रुपए के वेतन से शुरू हुआ सफर आज शिखर तक पहुंच गया है।
आर्थिक तंगी के दौर से गुजरते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और खुद के साथ बच्चों को भी सक्षम बनाया। अभावों के बावजूद उन्होंने कभी बच्चों की पढ़ाई प्रभावित नहीं होने दी और बेटी को थर्ड ग्रेड टीचर, तो बेटे को इंजीनियर बनाया। करीब 28 साल पहले मात्र सातवीं कक्षा उत्तीर्ण होने के कारण गायत्री देवी ने शहर में स्थित आदर्श विद्या मंदिर में बतौर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी काम शुरू किया। साथ ही उन्होंने शिक्षा के इसी मंदिर में उन्होंने एक नई शुरुआत की तथा पढ़ाई को ही अपना लक्ष्य बना लिया। आज वे ग्रेजुएट है और बच्चों में शिक्षा की जोत जला रही है। बतौर गायत्री देवी इन 28 सालों में सब कुछ बदल गया। शिक्षा का ज्ञान उनके जीवन में नई पहचान लेकर आया है और अब वो बखूबी शिक्षिका की भूमिका निभा रही है। वे कहती हैं इतने सालों में अगर कुछ नहीं बदला है तो वह है उनका संबोधन। बच्चे पहले भी उन्हें दीदी कहते थे और आज भी दीदी ही कहते हैं। उनका कहना है कि शिक्षक को भी हमेशा सीखते रहना चाहिए, तभी वह दूसरों में ज्ञान बांट सकेगा।
ऐसेहुई शुरुआत
आदर्शविद्या मंदिर जालोर में गायत्री देवी ने 27 जून 1988 से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में काम शुरु किया। उस समय गायत्री देवी सातवीं उत्तीर्ण थी, लेकिन मन में आगे पढ़ाई करने का भी संकल्प था। इसी संकल्प ने उनसे नई शुरुआत करवाई। गायत्री देवी ने जिस समय अध्ययन का मानस बनाया, उस समय उनकी पारिवारिक स्थितियां भी अनुकूल नहीं थीं, लेकिन विकट परिस्थितियों में भी उन्होंने हार नहीं मानी और उनका डटकर मुकाबला किया। उनका कहना है कि उनके परिवार में कई लोग उच्चाधिकारी हैं, ऐसे में उन्हें छोटे पद पर काम करने का दुख होता था। आखिरकार, उन्होंने अध्ययन कर आगे बढ़ने का मानस बनाया। स्कूल में काम के साथ ही पढ़ाई भी शुरू की। सातवीं के बाद आठवीं उत्तीर्ण की। बाद में स्वयंपाठी के रूप में उन्होंने दसवीं बारहवीं कक्षा भी पास कर ली। वर्ष 2004 में ग्रेजुएशन किया और इसी वर्ष उन्होंने आदर्श विद्या मंदिर प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापिका के रूप में पदभार संभाला। अब वह बखूबी इस पद की जिम्मेदारी भी संभाल रही है। यही नहीं, आज वे पोस्ट ग्रेजुएट एसटीसी होल्डर है। उनकी इसी सफलता के चलते आज भी कई पुराने विद्यार्थी उन्हें सम्मान देने के साथ उनके साहस को प्रेरणा मानते हैं।
संघर्ष के बाद मिला संबल
अपनेसंघर्ष के साथ ही गायत्री देवी ने अपने बच्चों का अध्ययन भी जारी रखा। उनका मानना है कि वर्तमान समय में शिक्षा की महत्ती आवश्यकता है। साथ ही वर्तमान समय में बालिका शिक्षा को बढ़ावा देना भी जरूरी है, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सके। इसी बात को ध्यान में रखकर वो अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति भी हमेशा सजग रही। उन्होंने अपनी बेटी को पहले ग्रेजुएशन और बाद में एसटीसी तथा बीएड भी करवाई। आज वह भी सरकारी स्कूल में शिक्षिका है। उनका पुत्र भी बीटेक द्वितीय वर्ष में अध्ययन कर रहा है, जबकि पति अहमदाबाद में काम करते हैं।
जालोर. कार्यालय में काम करती गायत्री देवी।
आर्थिक तंगी के दौर से गुजरते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और खुद के साथ बच्चों को भी सक्षम बनाया। अभावों के बावजूद उन्होंने कभी बच्चों की पढ़ाई प्रभावित नहीं होने दी और बेटी को थर्ड ग्रेड टीचर, तो बेटे को इंजीनियर बनाया। करीब 28 साल पहले मात्र सातवीं कक्षा उत्तीर्ण होने के कारण गायत्री देवी ने शहर में स्थित आदर्श विद्या मंदिर में बतौर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी काम शुरू किया। साथ ही उन्होंने शिक्षा के इसी मंदिर में उन्होंने एक नई शुरुआत की तथा पढ़ाई को ही अपना लक्ष्य बना लिया। आज वे ग्रेजुएट है और बच्चों में शिक्षा की जोत जला रही है। बतौर गायत्री देवी इन 28 सालों में सब कुछ बदल गया। शिक्षा का ज्ञान उनके जीवन में नई पहचान लेकर आया है और अब वो बखूबी शिक्षिका की भूमिका निभा रही है। वे कहती हैं इतने सालों में अगर कुछ नहीं बदला है तो वह है उनका संबोधन। बच्चे पहले भी उन्हें दीदी कहते थे और आज भी दीदी ही कहते हैं। उनका कहना है कि शिक्षक को भी हमेशा सीखते रहना चाहिए, तभी वह दूसरों में ज्ञान बांट सकेगा।
ऐसेहुई शुरुआत
आदर्शविद्या मंदिर जालोर में गायत्री देवी ने 27 जून 1988 से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में काम शुरु किया। उस समय गायत्री देवी सातवीं उत्तीर्ण थी, लेकिन मन में आगे पढ़ाई करने का भी संकल्प था। इसी संकल्प ने उनसे नई शुरुआत करवाई। गायत्री देवी ने जिस समय अध्ययन का मानस बनाया, उस समय उनकी पारिवारिक स्थितियां भी अनुकूल नहीं थीं, लेकिन विकट परिस्थितियों में भी उन्होंने हार नहीं मानी और उनका डटकर मुकाबला किया। उनका कहना है कि उनके परिवार में कई लोग उच्चाधिकारी हैं, ऐसे में उन्हें छोटे पद पर काम करने का दुख होता था। आखिरकार, उन्होंने अध्ययन कर आगे बढ़ने का मानस बनाया। स्कूल में काम के साथ ही पढ़ाई भी शुरू की। सातवीं के बाद आठवीं उत्तीर्ण की। बाद में स्वयंपाठी के रूप में उन्होंने दसवीं बारहवीं कक्षा भी पास कर ली। वर्ष 2004 में ग्रेजुएशन किया और इसी वर्ष उन्होंने आदर्श विद्या मंदिर प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापिका के रूप में पदभार संभाला। अब वह बखूबी इस पद की जिम्मेदारी भी संभाल रही है। यही नहीं, आज वे पोस्ट ग्रेजुएट एसटीसी होल्डर है। उनकी इसी सफलता के चलते आज भी कई पुराने विद्यार्थी उन्हें सम्मान देने के साथ उनके साहस को प्रेरणा मानते हैं।
संघर्ष के बाद मिला संबल
अपनेसंघर्ष के साथ ही गायत्री देवी ने अपने बच्चों का अध्ययन भी जारी रखा। उनका मानना है कि वर्तमान समय में शिक्षा की महत्ती आवश्यकता है। साथ ही वर्तमान समय में बालिका शिक्षा को बढ़ावा देना भी जरूरी है, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सके। इसी बात को ध्यान में रखकर वो अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति भी हमेशा सजग रही। उन्होंने अपनी बेटी को पहले ग्रेजुएशन और बाद में एसटीसी तथा बीएड भी करवाई। आज वह भी सरकारी स्कूल में शिक्षिका है। उनका पुत्र भी बीटेक द्वितीय वर्ष में अध्ययन कर रहा है, जबकि पति अहमदाबाद में काम करते हैं।
जालोर. कार्यालय में काम करती गायत्री देवी।
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