केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री रामशंकर कठेरिया ने हालांकि अब अपना
बयान बदल लिया है, लेकिन लखनऊ विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में दिए गए बयान
में उन्होंने शिक्षा के भगवाकरण की सरकारी योजना का संकेत देकर पूरे देश को
चौंका दिया है। उनका यह बयान सरकार की नीयत के प्रति समाज के विभिन्न
तबकों के भीतर एक प्रकार का अविश्वास भरेगा और उन्हें अलग-थलग करेगा। इसमें
कोई दो राय नहीं कि भारतीय जनता पार्टी का पितृ
संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपनी विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से
बुनियादी शिक्षा का भगवाकरण लंबे समय से कर रहा है और जब से केंद्र में
भाजपा को बहुमत की सरकार मिली है तब से उच्च शिक्षा में भी इस एजेंडे को
लागू किया जा रहा है। इतिहास, कला, संस्कृति, समाज शास्त्र और विज्ञान समेत
सभी मोर्चों पर ऐसे व्यक्ति सक्रिय हैं, जो शिक्षा के पाठ्यक्रम को बदल
रहे हैं। किंतु वे उसे भारतीयता और राष्ट्रवाद से जोड़कर थोड़ा ढंककर
प्रस्तुत करते हैं और कहते हैं कि वे पक्षपातपूर्ण व्याख्याओं को ठीक कर
रहे हैं। लेकिन, जब सरकार का एक मंत्री खुलेआम भगवाकरण का इरादा जताता है
तो उससे विपक्षियों का आरोप पुष्ट हो जाता है। वास्तव में शिक्षा का
उद्देश्य मनुष्य का संपूर्ण विकास होता है और वैश्वीकरण के इस युग में अगर
शिक्षा व्यक्ति को अंधविश्वासी और संकीर्ण बनाती है तो वह एकांगी और
अपूर्ण है चाहे वह भगवाकरण हो या हरा व लाल रंग चढ़ाने का प्रयास हो। अगर
भारत को सही मायने में एक लोकतांत्रिक और समृद्ध समाज बनाना है तो शिक्षा
ऐसी होनी चाहिए जो सामाजिक भेदभाव कम करे, व्यक्ति को संकीर्णता से मुक्त
करे और समता के साथ भाईचारे का विकास करे। वह दलित, स्त्री और आदिवासी जैसे
समाज के वंचित और उपेक्षित तबकों को समर्थ बनाए और उनके प्रति समाज में
स्वीकार्यता पैदा करे। लेकिन, अगर वह सामाजिक मेलजोल बढ़ाने की बजाय
अस्मितामूलक और अलगाववादी सोच पैदा करती है तो शिक्षा का स्वरूप और
उद्देश्य संदिग्ध है। अगर हम शिक्षा के माध्यम से समाज के बड़े तबके को
मजदूर और क्लर्क व छोटे से हिस्से को अधिकारी और विज्ञानी बनाना चाहते हैं
तो ऐसा उद्देश्य एक वर्चस्ववादी व्यवस्था का हित भले साधे, लेकिन एक
लोकतांत्रिक समाज का निर्माण नहीं कर पाएगा। अगर शिक्षा का उद्देश्य समाज
के किसी तबके के प्रति नफरत पैदा करते रहना और कुछ धर्मग्रंथों को श्रेष्ठ
बताकर बाकी को हेय बताना है तो इससे न तो बेहतर मनुष्य बनेगा और न ही अच्छा
समाज, इसलिए कठेरिया के पलटने के बावजूद उनके बयान पर बहस होनी चाहिए।
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