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निजी शिक्षकों पर कोरोना की मार, छोटे रोजगार से कर रहे गुजारा

 नैनवां. निजी विद्यालय बंद हो जाने से रोजगार लॉक हो गया और घरों पर भी कोचिंग भी डाउन हो गई। आधा जीवन निजी विद्यालय में पढ़ाने में गुजार दिया। अब करें तों क्या करें? यह संकट निजी विद्यालय के शिक्षकों के

सामने फिर से आ गया है। काम की तलाश में हैं, लेकिन काम नहीं मिलता। बच्चों को हाथों में कलम पकड़ाकर अ...आ....इ....ई...लिखना सिखाने वाले निजी विद्यालय के शिक्षक अब नए रोजगार का क...ख...ग सीखने का प्रयास कर रहे हैं। शिक्षकों ने जैसे-तैसे छोटा सा रोजगार भी तलाश लिया, लेकिन शिक्षिकाओं को बेरोजगारी का ही सामना करना पड़ रहा है। कोरोना की सबसे ज्यादा मार निजी विद्यालयों के शिक्षकों को झेलनी पड़ रही है। मार्च 2020 से अब तक सिर्फ दो माह ही निजी विद्यालय खुल पाए। कोरोना संक्रमण से निजी विद्यालय बंद होने व घर-घर पढ़ाने का काम भी बंद हो जाने से रोजगार का संकट पैदा हो गया तो परिवार को पालने की चिंता सता रही है।

केस 1
दिव्यांग राधेश्याम सैनी बीस वर्ष से निजी विद्यालय में पढ़ा कर व विद्यालय से मिलने वाले मानदेय व उसके बाद घर-घर जाकर बच्चों को पढ़ाने से मिलने वाले मेहनताने से उसका व परिवार का पालन पोषण कर रहा था। अब रोजगार चले जाने के बाद अपनी दिव्यंगता को आड़े नहीं आने दी और एक पेट्रोल पम्प पर पेट्रोल व डीजल डालने का काम करने पहुंच गया। राधेश्याम कहता है कि 2001 से निजी विद्यालय में पढ़ाने का काम करता आ रहा है। विद्यालय से 6 हजार रुपए मिलते थे। उसकेे बाद घर-घर जाकर बच्चों को पढ़ाकर आठ से नौ हजार रुपए की अतिरिक्त आय कर लेता था। रोजगार का संकट सताने लगा तो एक पेट्रोल पम्प पर तेल भरने का काम मिल गया। जिससे 6 हजार रुपए प्रति माह मिल जाता है।
केस 2
दस वर्ष से निजी विद्यालय में शिक्षक का काम करने वाले आदित्य शर्मा को भी बेरोजगारी का सामना करना पड़ गया। कहीं काम नहीं मिला तो प्रतिमाह 27 सौ रुपए में भगवान की पूजा करने का काम मिला तो वहीं परिवार का सहारा बना हुआ है। आदित्य बताते है दस वर्ष से निजी विद्यालय में पढ़ाकर अपनी गृहस्थी चल रही थी। कोरोना महामारी आई तब से ही रोजगार का संकट झेलना पड़ रहा है। अभी कस्बे के ही खानपोल दरवाजे के पास स्थित राधे-गोविन्द मन्दिर कर पूजा करते हैं। जिससे प्रतिमाह 27 सौ रुपए मिल जाता है।
केस 3
बामनगांव के बलराम गोस्वामी भी नैनवां में निजी विद्यालय में शिक्षक हैं। एक वर्ष से कोरोना महामारी के चलते बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है। पहले कचौरी-समोसा की दुकान खोली, लेकिन लॉकडाउन में वह भी बंद हो गई। दो बच्चों व पत्नी का परिवार है। गांव में समाचार पत्र वितरण करने के काम को आजीविका सहारा बनाया है। निजी विद्यालय बंद हुए, तब से ही आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
केस 4
12 वर्ष से निजी विद्यालय में शिक्षिका का काम करने वाली शबनम अख्तर भी आर्थिक संकट झेल रही है। विद्यालय बंद हुए तब से ही बेरोजगारी झेलनी पड़ रही है। परिवार की पालनहार होने से दो बच्चों का भार भी है। जिनकी पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है। महिला होने से अन्य कोई काम भी नहीं मिल पाता। सिलाई का काम जानती है, लेकिन लॉक डाउन की वजह से वह काम भी नहीं मिलता। जिससे परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। निजी विद्यालय बंद होने से रोजगार का सहारा छीन गया।
केस 5
15 वर्ष से निजी विद्यालय में शिक्षिका का काम करने वाली चेतना शर्मा भी बेरोजगारी का सामना करते हुए आर्थिक संकट झेल रही है। पति बीमार रहता है, जिससे वह ही परिवार की पालनहार है। निजी विद्यालय से मिलने वाला मानदेय व उसके बाद घर पर बच्चों को पढ़ाने से आय का स्रोत बना हुआ था। निजी विद्यालय बंद होने से आजीविका सहारा छीन गया। अन्य कोई काम भी नहीं मिल पाता।

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