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सुप्रीम कोर्ट ने दी राजस्‍थान स्‍कूल्‍स रेगुलेशन ऑफ फी एक्‍ट 2016 को मान्यता, कहा- SLFC से चर्चा के बाद ही तय हो फीस

 सुप्रीम कोर्ट ने राजस्‍थान के निजी स्‍कूलों को आदेश दिया है कि वो छात्र-छात्राओं से सालाना स्‍कूल फीस राजस्‍थान स्‍कूल्‍स (रेगुलेशन ऑफ फी) एक्‍ट 2016 के तहत ही वसूल सकते हैं। कोर्ट ने कहा है निजी स्कूल अपने फी स्ट्रक्चर को तय कर सकते हैं, लेकिन वो इसे लागू तभी करें जब SLFC स्कूल लेवल फी कमेटी से चर्चा हो जाए।

livelaw की रिपोर्ट मुताबिक फैसला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर और दिनेश महेश्‍वरी की बेंच ने दिया है। हालांकि, सुनवाई के दौरान बेंच ने एक्ट के सेक्शन 4,7, 10 का भी जिक्र किया। कोर्ट ने कहा- एक्ट के सेक्शन 6 के तहत फीस निर्धरित करने के मामले में स्कूलों की स्वायत्ता पर कोई सवालिया निशान नहीं लगाया गया। इसका उद्देश्य केवल इतना है कि स्कूल अपनी फीस को तय कर सकते हैं, लेकिन उसे लागू तभी करें जब SLFC से चर्चा हो जाए। स्कूल प्रबंधन तभी इसे अंतिम रूप प्रदान करे।

कोर्ट ने इस मामले में संवैधानिक बेंच के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार को यह अधिकार हासिल है कि वो फीस के मामले में स्कूलों को रेगुलेट कर सके। बेंच ने टीएमए पाई फाउंडेशन केस के साथ पीए इनामदार मामले की भी चर्चा कर कहा कि शुरुआत में सरकार जायज फीस लेने के लिए स्कूल को बाध्य कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह मामला राजस्थान के अन एडिड स्कूलों की तरफ से लाया गया था। स्कूलों ने राजस्थान स्कूल एक्ट, 2016 की वैधता पर सवाल उठाए थे। उनकी आपत्ति एक्ट के सेक्शन 3, 4, 6 के साथ 11, 15 और 16 को लेकर थी। राजस्थान हाईकोर्ट ने इससे पहले एक्ट के प्रावधानों की वैधता को अपनी मान्यता दी थी। निजी स्‍कूल राज्‍य सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए थे। इसमें कहा गया था कि राज्‍य के सीबीएसई से संबद्ध स्‍कूल 70 फीसदी तक स्‍कूल फीस वसूल सकते हैं। वहीं जो स्‍कूल राजस्‍थान बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन से संबद्ध हैं, वो 60 फीसदी फीस वसूल सकते हैं।

निजी स्कूलों का कहना है कि एक्ट के प्रावधानों से फीस निर्धारण के मामले में अन एडिड स्कूलों की स्वायत्ता खत्म हो रही है। उन्हें फीस निर्धारण के लिए स्कूल लेवल फीस कमेटी के मंजूरी लेनी होगी। कमेटी 8 सदस्यों में स्कूल प्रबंधन का केवल एक ही सदस्य रखा गया है। इसमें पांच अभिभावक, तीन शिक्षक और प्रिंसिपल को शामिल किया गया है। उनका कहना है कि कानून के हिसाब से राज्य सरकार फीस निर्धारण के मामले में तभी दखल दे सकती हैं, जब उन्हें लगे कि कुछ गलत किया जा रहा है। स्कूल इससे मुनाफा कमा रहा है।

भाजपा सरकार 2016 में महाराष्ट्र पैटर्न पर फीस कानून राजस्थान फीस का विनियमन एक्ट 2016 लाई। स्कूल स्तर पर फीस निर्धारण कमेटियों के गठन किया। कमेटियों को फीस तय करने का अधिकार दिया गया। कमेटी की तरफ से तय फीस 3 साल तक लागू रखने का प्रावधान था। स्कूल संचालकों ने फीस कमेटियां भी बना ली। कमेटी ने फीस बढ़ोतरी को मंजूरी भी दे दी। लेकिन जिस फीस को मंजूरी दी गई वह तीन साल में होने वाली बढ़ोतरी को ध्यान में रखकर दी गई।

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