उदयपुर। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की
सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष करने का राज्य सरकार को
सुझाव दिया है। सीडब्ल्यूसी सदस्य एवं पूर्व सांसद रघुवीर मीणा ने रविवार
को मुख्यमंत्री के साथ ही उच्च शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर बताया कि
काॅलेजों और विश्वविद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों की
सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष कर 1500 करोड़ का वित्तीय भार कम हो सकता है। डाॅ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए उनकी सिफारिशों के अनुरूप यूजीसी ने देशभर के कॉलेजों व विश्वद्यिालयों में सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 65 वर्ष करने का प्रस्ताव पारित किया था। अभी कोरोना त्रासदी का राज्य की वित्तीय हालत व शिक्षा के क्षेत्र पर असर पड़ा है। जिस तरह से प्रोफेसर रिटायर हो रहे हैं, आने वाले समय में राज्य के विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर की भारी कमी हो जाएगी। गुणवत्ता पूर्ण शोध कार्यों पर भी बूरा प्रभाव पड़ेगा।
पूर्व सांसद मीणा ने पत्र में बताया कि वर्तमान में काॅलेजों में 6500 शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं। नए कॉलेजों व नए खोले गए विषयों के पद अलग हैं और मात्र 3500 शिक्षक हैं । उच्च शिक्षा में 125 से 150 शिक्षक हर साल सेवानिवृत्त हो रहे हैं । अगले पांच सालों में 813 काॅलेज शिक्षक सेवानिवृत्त होंगे। एक काॅलेज के शिक्षक की सेवानिवृत्ति पर राज्य सरकार पर गे्रच्युटी पर 20 लाख, अवकाश नकदीकरण पर 20 लाख, पेंशन के कम्युटेशन पर 30 लाख सहित कुल 70 लाख का भार आता है। इसके अलावा राज्य बीमा व जीपीएफ की राशि को जोड़े तो एक करोड़ की राशि का भार आता है, जो कि पांच सालों में 813 करोड़ रूपए बनते हैं। विश्वविद्यालयों के शिक्षकों की सेवानिवृत्ति पर यह खर्च अतिरिक्त होगा। इसके साथ ही सेवानिवृत्त होने वाले शिक्षकों को लगभग 50 प्रतिशत राशि पेंशन के तौर पर हर माह राज्य सरकार को 60 साल के बाद अलग से अदा करनी पड़ेगी। यह वित्तीय भार राज्य सरकार पर प्रतिवर्ष अलग से उठाना पड़ेगा। ऐसे में पत्र के जरिए सुझाव दिया कि काॅलेज शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 साल करके राज्य सरकार करीब 1500 करोड़ के वित्तीय भार को अगले पांच साल तक टाल सकती है। यूजीसी के सातवें वेतनमान की शर्तों में भी काॅलेज संवर्ग में सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष कराना शामिल किया है। वहीं केंद्र सरकार ने 1 जनवरी से जुलाई 2021 तक कर्मचारियों को दिए जाने वाले मंहगाई भत्तों पर रोक लगा दी है। इसका सबसे ज्यादा असर पेंशनर्स व उनके परिवार जनों को मिल रही पारिवारिक पेंशन पर पडे़गा। कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इसका विरोध किया है। सबसे ज्यादा दुर्गति तो उन कर्मचारियों की होने वाली है जो जनवरी 2020 से लेकर जुलाई 2021 के बीच सेवानिवृत्त होंगे। डीए की रोक से उनको मिलने वाली पेंशन, ग्रेजच्युटी, लीव इनकेशमेंट सहित अन्य सभी सेवानिवृत्ति लाभों पर इसका सीधा असर पडे़गा व एक कर्मचारी को दो लाख से दस लाख रूपए का सीधा आार्थिक नुकसान झेलना पडे़गा।
आज देशभर के केंद्रीय विश्वविद्यालयों, केंद्रीय सरकार से वित्तीय पोषित विश्वविद्यालयों सहित बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मणिपुर, सिक्किम, आसाम, उत्तराखंड एवं झारखंड़ आदि राज्यों में उच्च शिक्षा में शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष कर दी है। जबकि गुजरात, उत्तर प्रदेश, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, हरीयाणा, हिमाचल प्रदेश, गोवा, मिजोरम, पांडुचेरी राज्यों में उच्च शिक्षा में शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी है।
उच्च शिक्षा में शिक्षकों की सेवानिवृत्ति आयु को बढ़ाना जरूरी हो गया है। आज उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक-छात्र अनुपात भी बढ़ चुका है। वर्तमान हालात में जुलाई 2020 के बाद राज्य के 150 से अधिक काॅलेजों में प्रिसिंपल नहीं होंगे। शिक्षकों की कमी वैसे ही इतनी अधिक है कि छात्र को घोर निराशा का सामना करना पड़ सकता है। सरकार ने मेडिकल शिक्षा में सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष कर दी है तो काॅलेज व महाविद्यालयों में इसको लागू करना जनभावना के अनुरूप होगा।
डाॅ. मनमोहन सिंह सरकार के समय की गई सिफारिशों से राज्य सरकार पर पेंशन का भार कम पडे़गा। शिक्षकोें की कमी कुछ हद तक रूकेगी। अनुभवी शिक्षकों के रहने से शिक्षा का क्षेत्र अधिक लाभांवित होगा। राष्ट्रीय स्तर पर राज्य के काॅलेजों व विश्वविद्यालयों की रैंकिग में सुधार होगा। छात्र-शिक्षक अनुपात कम करने में मदद मिलेगी। उच्च गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा व शोध को बल मिलेगा। आर्थिक व वित्तीय भार में कमी आएगी। यूजीसी, सीएसआईआर, डीएसटी, डीबीटी से वित्तीय साधनों को लाने में अनुभवी शिक्षक रिसर्च व शैक्षणिक गतिविधियों को लाने में सक्षम होंगे।
सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष कर 1500 करोड़ का वित्तीय भार कम हो सकता है। डाॅ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए उनकी सिफारिशों के अनुरूप यूजीसी ने देशभर के कॉलेजों व विश्वद्यिालयों में सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 65 वर्ष करने का प्रस्ताव पारित किया था। अभी कोरोना त्रासदी का राज्य की वित्तीय हालत व शिक्षा के क्षेत्र पर असर पड़ा है। जिस तरह से प्रोफेसर रिटायर हो रहे हैं, आने वाले समय में राज्य के विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर की भारी कमी हो जाएगी। गुणवत्ता पूर्ण शोध कार्यों पर भी बूरा प्रभाव पड़ेगा।
पूर्व सांसद मीणा ने पत्र में बताया कि वर्तमान में काॅलेजों में 6500 शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं। नए कॉलेजों व नए खोले गए विषयों के पद अलग हैं और मात्र 3500 शिक्षक हैं । उच्च शिक्षा में 125 से 150 शिक्षक हर साल सेवानिवृत्त हो रहे हैं । अगले पांच सालों में 813 काॅलेज शिक्षक सेवानिवृत्त होंगे। एक काॅलेज के शिक्षक की सेवानिवृत्ति पर राज्य सरकार पर गे्रच्युटी पर 20 लाख, अवकाश नकदीकरण पर 20 लाख, पेंशन के कम्युटेशन पर 30 लाख सहित कुल 70 लाख का भार आता है। इसके अलावा राज्य बीमा व जीपीएफ की राशि को जोड़े तो एक करोड़ की राशि का भार आता है, जो कि पांच सालों में 813 करोड़ रूपए बनते हैं। विश्वविद्यालयों के शिक्षकों की सेवानिवृत्ति पर यह खर्च अतिरिक्त होगा। इसके साथ ही सेवानिवृत्त होने वाले शिक्षकों को लगभग 50 प्रतिशत राशि पेंशन के तौर पर हर माह राज्य सरकार को 60 साल के बाद अलग से अदा करनी पड़ेगी। यह वित्तीय भार राज्य सरकार पर प्रतिवर्ष अलग से उठाना पड़ेगा। ऐसे में पत्र के जरिए सुझाव दिया कि काॅलेज शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 साल करके राज्य सरकार करीब 1500 करोड़ के वित्तीय भार को अगले पांच साल तक टाल सकती है। यूजीसी के सातवें वेतनमान की शर्तों में भी काॅलेज संवर्ग में सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष कराना शामिल किया है। वहीं केंद्र सरकार ने 1 जनवरी से जुलाई 2021 तक कर्मचारियों को दिए जाने वाले मंहगाई भत्तों पर रोक लगा दी है। इसका सबसे ज्यादा असर पेंशनर्स व उनके परिवार जनों को मिल रही पारिवारिक पेंशन पर पडे़गा। कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इसका विरोध किया है। सबसे ज्यादा दुर्गति तो उन कर्मचारियों की होने वाली है जो जनवरी 2020 से लेकर जुलाई 2021 के बीच सेवानिवृत्त होंगे। डीए की रोक से उनको मिलने वाली पेंशन, ग्रेजच्युटी, लीव इनकेशमेंट सहित अन्य सभी सेवानिवृत्ति लाभों पर इसका सीधा असर पडे़गा व एक कर्मचारी को दो लाख से दस लाख रूपए का सीधा आार्थिक नुकसान झेलना पडे़गा।
आज देशभर के केंद्रीय विश्वविद्यालयों, केंद्रीय सरकार से वित्तीय पोषित विश्वविद्यालयों सहित बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मणिपुर, सिक्किम, आसाम, उत्तराखंड एवं झारखंड़ आदि राज्यों में उच्च शिक्षा में शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष कर दी है। जबकि गुजरात, उत्तर प्रदेश, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, हरीयाणा, हिमाचल प्रदेश, गोवा, मिजोरम, पांडुचेरी राज्यों में उच्च शिक्षा में शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी है।
उच्च शिक्षा में शिक्षकों की सेवानिवृत्ति आयु को बढ़ाना जरूरी हो गया है। आज उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक-छात्र अनुपात भी बढ़ चुका है। वर्तमान हालात में जुलाई 2020 के बाद राज्य के 150 से अधिक काॅलेजों में प्रिसिंपल नहीं होंगे। शिक्षकों की कमी वैसे ही इतनी अधिक है कि छात्र को घोर निराशा का सामना करना पड़ सकता है। सरकार ने मेडिकल शिक्षा में सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष कर दी है तो काॅलेज व महाविद्यालयों में इसको लागू करना जनभावना के अनुरूप होगा।
डाॅ. मनमोहन सिंह सरकार के समय की गई सिफारिशों से राज्य सरकार पर पेंशन का भार कम पडे़गा। शिक्षकोें की कमी कुछ हद तक रूकेगी। अनुभवी शिक्षकों के रहने से शिक्षा का क्षेत्र अधिक लाभांवित होगा। राष्ट्रीय स्तर पर राज्य के काॅलेजों व विश्वविद्यालयों की रैंकिग में सुधार होगा। छात्र-शिक्षक अनुपात कम करने में मदद मिलेगी। उच्च गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा व शोध को बल मिलेगा। आर्थिक व वित्तीय भार में कमी आएगी। यूजीसी, सीएसआईआर, डीएसटी, डीबीटी से वित्तीय साधनों को लाने में अनुभवी शिक्षक रिसर्च व शैक्षणिक गतिविधियों को लाने में सक्षम होंगे।
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