एक संस्था प्रधान के समक्ष प्रथम
लक्ष्य विद्यालय में " अधिगम " की स्थापना है। विभिन्न कक्षा स्तरों एवम
शिक्षक- शिक्षार्थी क्षमताओ के आधार विद्यालय में अनेक प्रकार की बाधाएं
हमारे समक्ष आती हैं।
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शैक्षिक वातावरण की स्थापना हेतु एक संस्था प्रधान को तीन सूत्रों पर कार्य करना पड़ता है-
1. उपलब्ध संसाधनों का अनुकूल उपयोग करते हुए एक न्यूनतम शिक्षा स्तर की स्थापना प्रत्येक कक्षा में स्थापित करना।
2. विद्यार्थियों एवम अध्यापकों की समस्याओ को समझते हुए उनके निराकरण हेतु संसाधनों की व्यवस्था, नियमों का निर्माण, अनुशासन की स्थापना, पहल को प्रोत्साहन, विभागीय मानदंडों की पूर्ति, स्थानीय समुदाय का सहयोग एवम शैक्षिक वातावरण की स्थापना करना।
3. प्रथम दो कार्यो के पूर्ण होने के पश्चात हम विद्यालय को एक आदर्श विद्यालय के रूप स्थापित करने हेतु विशिष्ट उद्देश्यों का चयन एवं तदनुसार कार्ययोजना का निर्माण व क्रियान्वन कर सकते है।
प्रत्येक संस्था का अपना कलेवर है एवं उसकी विशेषताए, शक्तियाँ , समस्याएँ एवं बाधाएँ दूसरे विद्यालय से निश्चित रूप से अलग है। एक संस्था प्रधान को अपने विकास हेतु स्वयं की विशिष्ट कार्ययोजना बनानी पड़ती है।
कार्ययोजना के प्रभावी निर्माण हेतु आवश्यक है कि संस्था प्रधान विद्यालय की किसी भी समस्या का निवारण मात्र सैद्धांतिक रूप से नहीं तलाश कर स्वयं को संलग्न करे तब ही वास्तविक निराकरण सम्भव हैं।
संलग्नता से ही समस्या की जटिलता, गंभीरता एवं पूर्णता का ज्ञान सम्भव हैं। समस्या की जड़ का ज्ञान होने पर वास्तविक एवं प्राप्ति योग्य लक्ष्य निर्धारण एवम कार्ययोजना निर्माण सम्भव हैं।
1. उपलब्ध संसाधनों का अनुकूल उपयोग करते हुए एक न्यूनतम शिक्षा स्तर की स्थापना प्रत्येक कक्षा में स्थापित करना।
2. विद्यार्थियों एवम अध्यापकों की समस्याओ को समझते हुए उनके निराकरण हेतु संसाधनों की व्यवस्था, नियमों का निर्माण, अनुशासन की स्थापना, पहल को प्रोत्साहन, विभागीय मानदंडों की पूर्ति, स्थानीय समुदाय का सहयोग एवम शैक्षिक वातावरण की स्थापना करना।
3. प्रथम दो कार्यो के पूर्ण होने के पश्चात हम विद्यालय को एक आदर्श विद्यालय के रूप स्थापित करने हेतु विशिष्ट उद्देश्यों का चयन एवं तदनुसार कार्ययोजना का निर्माण व क्रियान्वन कर सकते है।
प्रत्येक संस्था का अपना कलेवर है एवं उसकी विशेषताए, शक्तियाँ , समस्याएँ एवं बाधाएँ दूसरे विद्यालय से निश्चित रूप से अलग है। एक संस्था प्रधान को अपने विकास हेतु स्वयं की विशिष्ट कार्ययोजना बनानी पड़ती है।
कार्ययोजना के प्रभावी निर्माण हेतु आवश्यक है कि संस्था प्रधान विद्यालय की किसी भी समस्या का निवारण मात्र सैद्धांतिक रूप से नहीं तलाश कर स्वयं को संलग्न करे तब ही वास्तविक निराकरण सम्भव हैं।
संलग्नता से ही समस्या की जटिलता, गंभीरता एवं पूर्णता का ज्ञान सम्भव हैं। समस्या की जड़ का ज्ञान होने पर वास्तविक एवं प्राप्ति योग्य लक्ष्य निर्धारण एवम कार्ययोजना निर्माण सम्भव हैं।
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