नई दिल्ली [अरुण श्रीवास्तव]। इन दिनों देश में अजीब अनिश्चितता, संदेह और आशंका का माहौल बनाने-दिखाने की कोशिश हो रही है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित स्टूडेंट/युवा होते दिखाई दे रहे हैं।
शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात कहना तो ठीक है, पर किसी के उकसावे में आकर बिना सोचे-समझे भीड़ का हिस्सा बनने से अंतत: नुकसान उनका खुद का ही होता है, जो उनके करियर को काफी आगे तक प्रभावित कर सकता है। युवाओं के साथ-साथ इस बात को परिजनों को भी समझना होगा, ताकि उनके होनहार के करियर की राह में कभी कोई बाधा न आए। क्यों जरूरी है ऐसा करना,
यहां जानें....
नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित एनआरसी के विरोध में पिछले कुछ दिनों में देश के कई शहरों में कथित रूप से होने वाले प्रदर्शन जिस तरह से अराजक स्थिति तक पहुंचे, उससे जाने-अनजाने इनमें शामिल होने वाले स्टूडेंट्स-युवाओं का भविष्य किसी न किसी रूप में प्रभावित होने की आशंका भी जताई जा रही है। इन प्रदर्शनों में सरकारीनिजी संपत्ति को तो काफी नुकसान हुआ ही, इसकी चपेट में आकर तमाम लोग हताहत भी हुए। सबसे बड़ी बात इससे आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया।
संबंधित कानून की असलियत समझे बिना जिस तरह से स्टूडेंट्स और युवाओं को इसके बारे में बरगलाया गया, वह निश्चित रूप से निंदनीय है। बेशक इस तरह के हिंसक प्रदर्शनों पर अब काबू पा लिया गया है, लेकिन जाने-अनजाने इनमें शामिल होने वाले युवाओं और उनके परिजनों के लिए आगे के दिन आसान नहीं रहने वाले हैं। बेशक उनके द्वारा इनमें शामिल न होने का दावा किया जा रहा हो, लेकिन दिल्ली सहित देश के विभिन्न शहरों में पुलिस द्वारा जिस तरह से सीसीटीवी कैमरों की फुटेज, न्यूज चैनल्स की क्लिपिंग्स व वीडियो फुटेज खंगाले जा रहे हैं और साक्ष्य जुटाकर उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है, वह निश्चित रूप से संबंधित युवाओं और उनके परिवारों के लिए बड़ी चिंता का कारण है।टीवी चैनलों और अखबारों में छपी तस्वीरों व खबरों में दिल्ली सहित देश के अन्य शहरों के पुलिस थानों के बाहर गिरफ्तार युवाओं के चिंतित परिजनों को हर कोई देख रहा होगा। बेशक परिवार के लोग उन युवाओं को निर्दोष बता रहे हों, लेकिन सब जानते हैं कि अगर उनके खिलाफ तोड़फोड़ या अन्य अराजक गतिविधियों में शामिल होने के ठोस साक्ष्य मिल जाते हैं, तो उन्हें आगे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
अतीत से सीखें
देश के विभिन्न हिस्सों में पहले भी हिंसक प्रदर्शनों में शामिल होने वाले स्टूडेंट्स/युवाओं के खिलाफ पुलिस द्वारा कार्रवाई होती रही है। इसके बाद उन्हें अपनी निर्दोषता साबित करने के लिए वर्षों तक अदालती कार्रवाई के चक्कर काटने पड़ते रहे हैं। इससे वे हैरान-परेशान तो होते ही हैं, उनका करियर भी संकट में पड़ जाता है। इतना ही नहीं, उनके परिवार के लोग भी बुरी तरह परेशान हो जाते हैं। परिवार आर्थिक रूप से टूटने भी लगता है। बेशक अपने जायज अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन करना हमारा संवैधानिक अधिकार है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इसका दुरुपयोग किया जाए और राजनीति व धर्म के नाम पर रोटियां सेंकने वालों की कठपुतली बन जाया जाए।ताजा प्रदर्शनों के हिंसक होने का कारण इनमें अराजक तत्वों के शामिल होने की बातें कही जा रही हैं, लेकिन आखिर यह किसकी चूक रही? ताजा प्रदर्शनों में पढ़े-लिखे युवाओं, कतिपय सेलिब्रिटीज और बुद्धिजीवियों का शामिल होना भी अचरज पैदा करता है। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सहित तमाम बुद्धिजीवियों और धार्मिक नेताओं द्वारा नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित एनआरसी के बारे में आश्वस्त किए जाने के बावजूद प्रदर्शनों में शामिल होना यही साबित करता है कि उच्च शिक्षा प्राप्त होने के बावजूद उन्होंने इस कानून के बारे में असलियत जानने की कोशिश नहीं की।
करियर से न करें खिलवाड़
बेशक कुछ राजनीतिक दलों व संगठनों से जुड़े लोग अपने को चर्चा में लाने, सुर्खियां बटौरने और अपने को कथित नेता के रूप में स्थापित करने के लिए ऐसे मुद्दों की तलाश में रहते हैं, जिसके जरिए युवाओं को बरगलाया-भड़काया जा सके। इससे उन लोगों के मंसूबे तो सफल हो जाते हैं, लेकिन इसका खामियाजा आखिरकार बेकसूर युवाओं को सिर्फ इसलिए भुगतना पड़ता है, क्योंकि वे बिना सोचे-समझे भीड़ का हिस्सा बन गए। लेकिन जरा सोचें, अगर एक बार आपका नाम सरकारी संपत्ति और सरकारी कर्मचारियों को नुकसान पहुंचाने वालों की सूची में शामिल हो गया और साक्ष्यों से यह प्रमाणित भी हो गया, तो इससे आपको और आपके परिवार को कितनी तकलीफ होगी। इसलिए आपको तात्कालिक भावावेश और अति उत्साह में आकर भीड़ का हिस्सा बनने से हरसंभव परहेज करना चाहिए, ताकि दूसरे लोगों की गलतियों का खामियाजा आपको न भुगतना पड़ जाए।
परिजन भी बरतें सावधानी
स्टूडेट्स और युवाओं के परिजन अगर इस तरह की किसी मुसीबत से दूर रहना चाहते हैं, तो उन्हें चाहिए कि वे उन्हें इस तरह से अनुशासित-संस्कारित करें, जिससे कि वे किसी भी अराजक गतिविधि से दूर रहते हुए अपना पूरा ध्यान अपने करियर को संवारने और उसे आकार देने में लगाएं।
इसके लिए अभिभावकों को उनकी गतिविधियों को जाननेसमझने पर भी ध्यान देना चाहिए। वह कहां जा रहा है, किससे मिल रहा है, उसके दोस्तों में किस तरह के लोग शामिल हैं, इस बारे में आपको जानकारी होनी चाहिए। हो सकता है कि आप अपनी संतान को बहुत सीधा और अनुशासित मानते हों, पर बाहर वह अपने किसी दोस्त या दोस्तों के बहकावे में आकर उत्साहित होकर किसी ऐसे कृत्य में शामिल हो गया हो, जिसके परिणाम की उसने कल्पना भी न की हो। लेकिन इस घटना का खुलासा होने और उसकी पहचान होने के बाद जब उसके खिलाफ कोई कार्रवाई होती है, तब आप सहसा इस पर विश्वास नहीं कर पाते। ऐसे में आप भले ही उसके निर्दोष होने का दावा करते फिरें, लेकिन अगर साक्ष्य उसके खिलाफ जाते हैं, तो उसके साथ-साथ इसकी पीड़ा को पूरे परिवार को भुगतना पड़ जाता है। आखिर ऐसी नौबत आए ही क्यों?
शिक्षण संस्थानों की जिम्मेदारी
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर गुमराह होने वाले विद्यार्थियों, युवाओं को समझाने के लिए बड़ी संख्या में शिक्षाविद भी सामने आए हैं, जिन्होंने अपने बयानों और वाट्सएप संदेशों के जरिए युवाओं को शांत करने और अमन-चैन का माहौल बनाने की भरपूर कोशिश की है।
ऐसे में छात्रों के परिवारों के अलावा शिक्षण संस्थानों की भी यह जिम्मेदारी है कि वे अपने स्टूडेंट्स को अनुशासित रखें , उन्हें अनुशासित रहने का महत्व समझाएं तथा ये शिक्षण संस्थान उन्हें किसी राजनीतिक संगठन या पार्टी द्वारा इस्तेमाल न होने दें। इसके लिए उन्हें अपने परिसरों में समय-समय पर विभिन्न मुद्दों पर जागरूकता अभियान भी चलाते रहना चाहिए।
शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात कहना तो ठीक है, पर किसी के उकसावे में आकर बिना सोचे-समझे भीड़ का हिस्सा बनने से अंतत: नुकसान उनका खुद का ही होता है, जो उनके करियर को काफी आगे तक प्रभावित कर सकता है। युवाओं के साथ-साथ इस बात को परिजनों को भी समझना होगा, ताकि उनके होनहार के करियर की राह में कभी कोई बाधा न आए। क्यों जरूरी है ऐसा करना,
यहां जानें....
नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित एनआरसी के विरोध में पिछले कुछ दिनों में देश के कई शहरों में कथित रूप से होने वाले प्रदर्शन जिस तरह से अराजक स्थिति तक पहुंचे, उससे जाने-अनजाने इनमें शामिल होने वाले स्टूडेंट्स-युवाओं का भविष्य किसी न किसी रूप में प्रभावित होने की आशंका भी जताई जा रही है। इन प्रदर्शनों में सरकारीनिजी संपत्ति को तो काफी नुकसान हुआ ही, इसकी चपेट में आकर तमाम लोग हताहत भी हुए। सबसे बड़ी बात इससे आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया।
संबंधित कानून की असलियत समझे बिना जिस तरह से स्टूडेंट्स और युवाओं को इसके बारे में बरगलाया गया, वह निश्चित रूप से निंदनीय है। बेशक इस तरह के हिंसक प्रदर्शनों पर अब काबू पा लिया गया है, लेकिन जाने-अनजाने इनमें शामिल होने वाले युवाओं और उनके परिजनों के लिए आगे के दिन आसान नहीं रहने वाले हैं। बेशक उनके द्वारा इनमें शामिल न होने का दावा किया जा रहा हो, लेकिन दिल्ली सहित देश के विभिन्न शहरों में पुलिस द्वारा जिस तरह से सीसीटीवी कैमरों की फुटेज, न्यूज चैनल्स की क्लिपिंग्स व वीडियो फुटेज खंगाले जा रहे हैं और साक्ष्य जुटाकर उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है, वह निश्चित रूप से संबंधित युवाओं और उनके परिवारों के लिए बड़ी चिंता का कारण है।टीवी चैनलों और अखबारों में छपी तस्वीरों व खबरों में दिल्ली सहित देश के अन्य शहरों के पुलिस थानों के बाहर गिरफ्तार युवाओं के चिंतित परिजनों को हर कोई देख रहा होगा। बेशक परिवार के लोग उन युवाओं को निर्दोष बता रहे हों, लेकिन सब जानते हैं कि अगर उनके खिलाफ तोड़फोड़ या अन्य अराजक गतिविधियों में शामिल होने के ठोस साक्ष्य मिल जाते हैं, तो उन्हें आगे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
अतीत से सीखें
देश के विभिन्न हिस्सों में पहले भी हिंसक प्रदर्शनों में शामिल होने वाले स्टूडेंट्स/युवाओं के खिलाफ पुलिस द्वारा कार्रवाई होती रही है। इसके बाद उन्हें अपनी निर्दोषता साबित करने के लिए वर्षों तक अदालती कार्रवाई के चक्कर काटने पड़ते रहे हैं। इससे वे हैरान-परेशान तो होते ही हैं, उनका करियर भी संकट में पड़ जाता है। इतना ही नहीं, उनके परिवार के लोग भी बुरी तरह परेशान हो जाते हैं। परिवार आर्थिक रूप से टूटने भी लगता है। बेशक अपने जायज अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन करना हमारा संवैधानिक अधिकार है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इसका दुरुपयोग किया जाए और राजनीति व धर्म के नाम पर रोटियां सेंकने वालों की कठपुतली बन जाया जाए।ताजा प्रदर्शनों के हिंसक होने का कारण इनमें अराजक तत्वों के शामिल होने की बातें कही जा रही हैं, लेकिन आखिर यह किसकी चूक रही? ताजा प्रदर्शनों में पढ़े-लिखे युवाओं, कतिपय सेलिब्रिटीज और बुद्धिजीवियों का शामिल होना भी अचरज पैदा करता है। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सहित तमाम बुद्धिजीवियों और धार्मिक नेताओं द्वारा नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित एनआरसी के बारे में आश्वस्त किए जाने के बावजूद प्रदर्शनों में शामिल होना यही साबित करता है कि उच्च शिक्षा प्राप्त होने के बावजूद उन्होंने इस कानून के बारे में असलियत जानने की कोशिश नहीं की।
करियर से न करें खिलवाड़
बेशक कुछ राजनीतिक दलों व संगठनों से जुड़े लोग अपने को चर्चा में लाने, सुर्खियां बटौरने और अपने को कथित नेता के रूप में स्थापित करने के लिए ऐसे मुद्दों की तलाश में रहते हैं, जिसके जरिए युवाओं को बरगलाया-भड़काया जा सके। इससे उन लोगों के मंसूबे तो सफल हो जाते हैं, लेकिन इसका खामियाजा आखिरकार बेकसूर युवाओं को सिर्फ इसलिए भुगतना पड़ता है, क्योंकि वे बिना सोचे-समझे भीड़ का हिस्सा बन गए। लेकिन जरा सोचें, अगर एक बार आपका नाम सरकारी संपत्ति और सरकारी कर्मचारियों को नुकसान पहुंचाने वालों की सूची में शामिल हो गया और साक्ष्यों से यह प्रमाणित भी हो गया, तो इससे आपको और आपके परिवार को कितनी तकलीफ होगी। इसलिए आपको तात्कालिक भावावेश और अति उत्साह में आकर भीड़ का हिस्सा बनने से हरसंभव परहेज करना चाहिए, ताकि दूसरे लोगों की गलतियों का खामियाजा आपको न भुगतना पड़ जाए।
स्टूडेट्स और युवाओं के परिजन अगर इस तरह की किसी मुसीबत से दूर रहना चाहते हैं, तो उन्हें चाहिए कि वे उन्हें इस तरह से अनुशासित-संस्कारित करें, जिससे कि वे किसी भी अराजक गतिविधि से दूर रहते हुए अपना पूरा ध्यान अपने करियर को संवारने और उसे आकार देने में लगाएं।
इसके लिए अभिभावकों को उनकी गतिविधियों को जाननेसमझने पर भी ध्यान देना चाहिए। वह कहां जा रहा है, किससे मिल रहा है, उसके दोस्तों में किस तरह के लोग शामिल हैं, इस बारे में आपको जानकारी होनी चाहिए। हो सकता है कि आप अपनी संतान को बहुत सीधा और अनुशासित मानते हों, पर बाहर वह अपने किसी दोस्त या दोस्तों के बहकावे में आकर उत्साहित होकर किसी ऐसे कृत्य में शामिल हो गया हो, जिसके परिणाम की उसने कल्पना भी न की हो। लेकिन इस घटना का खुलासा होने और उसकी पहचान होने के बाद जब उसके खिलाफ कोई कार्रवाई होती है, तब आप सहसा इस पर विश्वास नहीं कर पाते। ऐसे में आप भले ही उसके निर्दोष होने का दावा करते फिरें, लेकिन अगर साक्ष्य उसके खिलाफ जाते हैं, तो उसके साथ-साथ इसकी पीड़ा को पूरे परिवार को भुगतना पड़ जाता है। आखिर ऐसी नौबत आए ही क्यों?
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर गुमराह होने वाले विद्यार्थियों, युवाओं को समझाने के लिए बड़ी संख्या में शिक्षाविद भी सामने आए हैं, जिन्होंने अपने बयानों और वाट्सएप संदेशों के जरिए युवाओं को शांत करने और अमन-चैन का माहौल बनाने की भरपूर कोशिश की है।
ऐसे में छात्रों के परिवारों के अलावा शिक्षण संस्थानों की भी यह जिम्मेदारी है कि वे अपने स्टूडेंट्स को अनुशासित रखें , उन्हें अनुशासित रहने का महत्व समझाएं तथा ये शिक्षण संस्थान उन्हें किसी राजनीतिक संगठन या पार्टी द्वारा इस्तेमाल न होने दें। इसके लिए उन्हें अपने परिसरों में समय-समय पर विभिन्न मुद्दों पर जागरूकता अभियान भी चलाते रहना चाहिए।
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