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मास्टर साहब, आप हम बच्चों को रोता छोड़कर मत जाओ

वाराणसी/मोरादाबाद - यह केवल खबर भर नहीं है। बेहतर होता कि इस खबर को पत्रिका का रिपोर्टर न लिखकर देश के किसी सरकारी प्राथमिक विद्यालय में कक्षा 5 में पढने वाला छात्र लिखता, अगर वो लिखता तो शायद ज्यादा बेहतर लिखता। चूँकि छात्र नहीं है इसलिए यह कहानी हम आप तक पहुंचा रहे हैं।
यह कहानी गरीब उत्तर प्रदेश के दो प्राइमरी शिक्षकों की है,जिनमे से एक का नाम मुनीश कुमार और एक का अवनीश यादव है | एक ऐसे वक्त में जब प्राथमिक शिक्षा का स्तर न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश में बुरी स्थिति में हैं और शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बावजूद 60 लाख से ज्यादा बच्चे अपने स्कूल नहीं पहुँच पाते हैं,यह कहानी हर टीचर और देश प्रदेश के प्राथमिक शिक्षा से जुड़े हर व्यक्ति को पढनी चाहिए। हमें और आपको इस कहानी को पढने की जरुरत इसलिए भी है क्योंकि हम महंगे कान्वेंट स्कूलों में अपने बच्चों को भेजने वाले यह भूल जाते हैं कि जब तक छात्र और शिक्षक के बीच संवेदनाओं के सूत्र नहीं जुड़ जाते हर शिक्षा बेईमानी है। पहली कहानी -
गाजीपुर जिले के बभनोली निवासी अवनीश यादव की तैनाती बतौर प्राथमिक शिक्षक 2009 में देवरिया के गौरी बाजार के प्राथमिक विद्यालय पिपराधन्नी गांव में हुई थी। यहाँ न तो स्कूलों में छात्र जाते थे न ही शिक्षक जाते थे। गाँव वालों के लिए उनके बच्चे उनके कामकाज के हिस्सेदार थे ,जितने ज्यादा हाथ उतनी ज्यादा कमाई। जब अवनीश यहाँ आये तो ऐसा वक्त भी रहा कि कक्षा में केवल दो या तीन बच्चे ही उपस्थिति रहते थे ऐसी स्थिति देखकर उन्होंने इस गांव में घर घर जाकर सम्पर्क किया चूँकि गाँव में गरीब मजदूरों की सख्या काफी ज्यादा थी सो उन्हें काफी जोर मशक्कत करनी पड़ी। धीमे धीमे अवनीश की मेहनत रंग लाई मजदूरों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया।
अवनीश ने न सिर्फ गाँव के बच्चों को स्कूल तक ले आये बल्कि दिन रात उनके साथ मेहनत करके उन्हें इस योग्य बना दिया कि बड़े बड़े कान्वेंट के बच्चे इस प्राथमिक विद्यालय के बच्चों के सामने फेल हो जाए। क्या आप यकीं करेंगे कि यूपी के किसी प्राथमिक विद्यालय के बच्चे को अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के बारे में पता हो? उन्हें ओलम्पिक खेलों में भारत के प्रतिनिधित्व की जानकारी हो? लेकिन अवनीश के बच्चे अलग थे उन्हें सब पता था । क्या सुबह क्या शाम अवनीश ने बभनौली में शिक्षा के बल पर ग्रामीणों की तकदीर बदलने का जो अभियान शुरू किया वो लगातार आगे बढ़ता चला गया। अवनीश ने केवल 6 सालों में पूरे पिप्राघन्नी की तस्वीर बदल कर रख दी। नतीजा यह हुआ कि गांव के लोग अवनीश को अपने बेटे की तरह मानने लगे उन्होंने कई पुरस्कार पाये । उनका सरकारी स्कूल किसी बड़े कान्वेंट को फेल कर रहा था कि अचानक उनका तबादला हो गया। अवनीश का तबादला हुआ यूँ लगा जैसे बच्चों से उनका अभिभावक और गाँव से उसकी किस्मत दूर चली गई हो। दो दिनों पहले इधर अवनीश की विदाई हो रही थी उधर पूरा गाँव आंसुओं में डूबा था। स्कूल के बच्चे क्या रोये ,अवनीश भी खूब रोये ,मजदूर भी रोये,किसान भी रोये , क्या बूढ़े क्या जवान हर तरह केवल रुदन था। हर आदमी केवल यही कह रहा था शिक्षक हो तो ऐसा| वहीँ बच्चे कह रहे थे मास्टर साहब ,आप हमें छोड़कर मत जाओ ,हम बहुत रोयेंगे । खैर अवनीश यादव को जाना था वो चला गया ,गाँव वाले बताते हैं कि हम गाँव की सीमा तक उन्हें छोड़ने गए थे जब उन्होंने गाँव की पगडण्डी को छोड़ा वो बार बार मुड़कर पीछे देख रहे थे
दूसरी कहानी -यह कहानी मुनीश कुमार की है जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शाहाबाद इलाके के प्राथमिक विद्यालय के प्राथमिक विद्यालय परौता में सहायक अध्यापक के तौर पर तैनात थे |बाद में उन्हे रमपुरा गाँव के ही प्राथमिक विद्यलय में प्रधानध्यापक बना दिया गया |उन्होंने जी जान लगाकर स्कूल को जिले के सर्वश्रेष्ठ विद्यालय में तब्दील कर दिया अभी हाल में ही इनका भी स्थानान्तरण कर दिया गया ,जब मुनीश का स्थानान्तरण हुआ पूरा गाँव फूट फूट कर रोने लगा ,गाँव वालों का कहना था कि अब हम ऐसा शिक्षक दुबारा कैसे पायेंगे ?मुनीश को भी छोड़ने गाँव वाले दूर तक आये |उनके पढाये बच्चे और गाँव वाले उनके बारे में कहते हैं उन्होंने हमारे बच्चों को ही नहीं हमारी जिंदगी को बदल दिया था
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