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निशक्त है प्रदेश की सरकार...! आठवीं बाद दिव्यांगों को पढ़ाने की नहीं है कोई व्यवस्था

सीकर. प्रदेश के दिव्यांगों का उच्च शिक्षा का सपना सरकारी दावों में उलझा हुआ है। प्रदेश के 85 फीसदी ब्लॉकों में कक्षा नवीं से बारहवीं तक दिव्यांगों को पढ़ाई कराने के लिए विषयों के विशेष शिक्षक नहीं है। वर्ष 2015 में पहली बार सरकार ने राजस्थान लोक सेवा आयोग के जरिए 211 द्वितीय श्रेणी शिक्षकों की भर्ती निकाली थी।
लेकिन दूसरी व तीसरी सूची के चयनितों को अब तक नियुक्ति नहीं मिलने की वजह से दिव्यांगों का सपना टूट रहा है। खास बात यह है कि प्रदेश में 26 जिलों में दिव्यांगों के लिए निजी स्कूल भी नहीं है। यही वजह है कि प्रदेश में कक्षा आठवीं के बाद ड्रॉप आऊट विद्यार्थियों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। पिछले दिनों आयोग प्रशासन ने इस दिशा में तैयारी शुरू की, लेकिन अभी तक दिव्यांगों को पढ़ाई का हक नहीं मिला है।
हर ब्लॉक में शिक्षक लगाने की योजना चार साल से अधूरी
पिछली सरकार के समय प्रदेश के सभी ब्लॉकों में दिव्यांगों की पढ़ाई के लिए रिसोर्स सेंटर बनाने के साथ सभी विषयों के शिक्षक लगाने की योजना बनी थी। लेकिन चार साल बाद भी भर्ती प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी है।
तीन श्रेणी के शिक्षकों का इंतजार
प्रदेश के तीन लाख से अधिक दिव्यांग विद्यार्थियों को मूक बधिर, मानसिक विमंदित व नेत्रहीन श्रेणी में सबसे ज्यादा शिक्षकों का इंतजार है। सरकार मजबूती से पहल करें तो विद्यार्थियों को वार्षिक परीक्षाओं से पहले विशेष शिक्षक मिल सकते हैं।
केस एक:आठवीं तक पढ़ाई छोडऩा मजबूरी
सीकर निवासी मूक बधिर राधिका ने आठवीं तक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। यहां नवीं की पढ़ाई के लिए कोई सुविधा नहीं होने की वजह से अब पढ़ाई छोड़ चुकी है। पिछले दिनों काफी प्रयास के बाद जयपुर के एक निजी सेंटर में वोकेशनल ट्रेनिंग में दाखिला मिला है।
केस दो: नेत्रहीनों को भी इंतजार
दांतारामगढ़ इलाके के मामराज व शाहिल नेत्रहीन है। उनका कहना है कि सीकर के दो स्कूलों में इस साल प्रवेश ले लिया। लेकिन कला संकाय की पढ़ाई के लिए शिक्षक नहीं होने की वजह से इस साल अजमेर के निजी स्कूल में फार्म भरा है। इस तरह के 20 से अधिक विद्यार्थियों को कही भी प्रवेश नहीं मिल पाया है।

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