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पूरे राज्य में एक भी टीचर नहीं, कम्पलसरी है पेपर, बिना पढ़े भी बच्चे हो रहे पास!

प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में एक अनिवार्य विषय 14 वर्ष से पढ़ाया जा रहा है, परीक्षा ली जा रही है और विद्यार्थी पास भी हो रहे हैं। लेकिन उस विषय का प्रदेश में एक भी शिक्षक नहीं है। यह हाल कॉलेज शिक्षा यानी स्नातक के प्रथम वर्ष में पढ़ाए जा रहे पर्यावरण विज्ञान विषय का है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आधार पर यूजीसी ने वर्ष 2004-05 में देशभर में स्नातक प्रथम वर्ष में पर्यावरण विज्ञान विषय अनिवार्य कर दिया था।

यूजीसी की गाइडलाइन के बाद विश्वविद्यालयों व कॉलेजों ने बीए, बीएससी, बी.कॉम के प्रथम वर्ष में इस विषय को शामिल किया। शिक्षा विभाग ने विषय तो शामिल कर लिया लेकिन पढ़ाने के लिए शिक्षक नियुक्त करना ही भूल गए। प्रदेश में 250 से अधिक सरकारी कॉलेज कॉलेजों में शिक्षकों के 6300 पद हैं, लेकिन पर्यावरण विषय में कोई पद स्वीकृत नहीं है। कॉलेज आयुक्तालय ने कुछ वर्ष पूर्व एक आरटीआइ के जवाब में बताया था कि पर्यावरण विषय में कोई स्थाई व्याख्याता नहीं है, न ही पद स्वीकृत है। वर्ष 2004 के बाद इस विषय में कोई भर्ती भी नहीं की गई है।

1.5 लाख विद्यार्थी हर वर्ष दे रहे परीक्षा
प्रदेश में सरकारी कॉलेजों में चार लाख से अधिक विद्यार्थी अध्ययरत हैं। प्रथम वर्ष में करीब 1.5 विद्यार्थी हर साल पर्यावरण विज्ञान विषय की परीक्षा दे रहे हैं। विश्वविद्यालयों व स्वयंपाठी छात्र-छात्राओं को मिलकार करीब 8-10 लाख विद्यार्थी हर साल प्रथम वर्ष की परीक्षा में बैठ रहे हैं। पर्यावरण विज्ञान विषय में बिना शिक्षकों के परीक्षा की उत्तरपुस्तिकाएं कैसे जांची जा रही हैं, यह मामला उजागर हुआ। इस पर कई विश्वविद्यालयों ने इस पेपर को सब्जेक्टिव से ऑब्जेक्टिव ही कर दिया। अब राजस्थान विवि समेत अन्य कई विश्वविद्यालयों में पर्यावरण विषय की परीक्षा ऑब्जेक्टिव रुप में ही ली जा रही है। ओएमआर शीट पर पेपर लिया जाता है, जिसे शिक्षक के बजाए कम्प्यूटर ही जांच रहा है।

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