अलवर.राज्य के सभी सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों में कला शिक्षा को
अनिवार्य घोषित किया गया है। इसके बावजूद इन स्कूलों में वर्षों से न तो
इसकी पढ़ाई हो रही है और न ही इनके शिक्षक लगाए गए हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 व 1982 की संशोधन नीति के तहत माध्यमिक स्तर
तक चित्रकला व संगीत विषय कला शिक्षा के रूप में सम्मलित कर अनिवार्य विषय
के रूप में देश भर के विद्यालयों में अध्ययन करवाया जाता है। बीते 25
सालों में प्रदेश में कक्षा 1 से 10 वीं तक के विद्यालयों में हर वर्ष
नामांकित विद्यार्थियों को कला शिक्षा चित्रकला व संगीत का अध्ययन ही नहीं
कराया जाता है। इनकी कोई परीक्षा होती है और न ही बच्चों के पास
पाठयपुस्तके हैं। स्कूलों में कला शिक्षक के पद तक सृजित नहीं है। ऐसे में
बिना परीक्षा के फर्जी लिस्ट तैयार करके फर्जी नम्बर या ग्रेड भेजकर
फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। सन् 1992 से माध्यमिक स्तर पर अनिवार्य कला
शिक्षा विषय के अध्ययन करने के लिए एक भी स्कूल में कला शिक्षकों का पद
सृजित नहीं है। इसकी आज तक भर्ती ही नहीं की गई है। कक्षा 11 व 12 मे कला
शिक्षा को अनिवार्य शिक्षा के रूप में माना गया है लेकिन इस विषय की पढ़ाई
तक नहीं हो रही है।
कई बार कर चुके आंदोलन
प्रदेश के कला शिक्षक इस मामले में बहुत बार आंदोलन कर चुके हैं जो जयपुर में विरोध प्रदर्शन करते रहे हैं, प्रदेश में कला शिक्षकों की भर्ती होने से हजारों युवाओं को रोजगार मिल सकता है।
गलत भेजी जानकारी
इस मामले में राज्य का शिक्षा विभाग भारत सरकार के आदेशों को भी नहीं
मान रहा है। इस मामले में पीएमओ ने शिक्षा विभाग से जानकारी मांगी तो वह
गलत भेज दी गई। माध्यमिक शिक्षा विभाग की ओर से आरटीआई में दी जानकारी में
बताया है कि सन् 1995 से ही कला शिक्षा संगीत व चित्रकला अनिवार्य विषय के
रूप में पढ़ाई जाती है। इसके तहत बहुत से कार्य कराए जाते हैं। इस बारे में
कला शिक्षा से जुड़े अनिल सैनी का कहना है कि प्रदेश में हजारों युवा
संगीत व चित्रकला के डिग्री लेने के बाद भी बेरोजगार हंै जिन्हें रोजगार
दिया जाना चाहिए।यही नहीं शिक्षा विभाग ने इस वर्ष की कक्षा 9 व 10 के लिए 3
लाख पुस्तकें प्रिंट करवाई लेकिन वे सब गोदामों में ही पड़ी हैं और खराब
हो गई।