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कोर्ट ने नहीं माना बेटी और बहू में फर्क, कहा-बहू को दो महीने में दी जाए अनुकंपा नियुक्ति

नरेश आर्य. जोधपुर| पति 14-15 सालों से लापता। दो बच्चियों की जिम्मेदारी। घर चलाने वाली सास का भी निधन। इन हालातों में परिवार का भरण-पोषण मुश्किल हो गया। खुद को विधवा मानते हुए शिक्षा विभाग में अनुकंपा नौकरी के लिए आवेदन किया, लेकिन विभाग ने खारीज करते हुए कहा- अनुकंपा नौकरी की परिभाषा में पुत्रवधू का जिक्र नहीं है।
विभाग के जवाब से मायूस महिला ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई, जहां बेटी और बहू में फर्क नहीं मानते हुए रिट याचिका को स्वीकार कर दो महीने में नौकरी देने के आदेश दिए। सूंथला निवासी याचिकाकर्ता भगवती देवी की ओर से अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने रिट याचिका दायर कर कोर्ट को बताया कि उसकी सास सोहनी देवी सहायक कर्मचारी के पद पर शिक्षा विभाग नागौर के अधीन एक स्कूल में कार्यरत थी। 11 जनवरी 2014 को जब उसकी सास की मृत्यु हुई, तब वह डॉ. भीमराव अंबेडकर राजकीय बालिका आवासीय विद्यालय पावटा नागौर में प्रतिनियुक्ति पर थी। याचिकाकर्ता का पति और मृतका का बेटा रमेशचंद्र पिछले 14-15 साल से लापता है। याचिकाकर्ता के दो बेटियां है और इसमें से एक बेटी की शादी हो रखी है। सास की मृत्यु के समय याचिकाकर्ता के ससुर जीवित थे, लेकिन मृत्यु आठ-नौ महीने बाद उनकी भी मृत्यु हो गई। ऐसी स्थिति में वह अनुकंपा नियुक्ति की हकदार है। भगवती देवी ने राजस्थान मृत राज्य कर्मचारी के आश्रितों को अनुकंपात्मक नियुक्ति नियम 1996 के तहत अनुकंपा नौकरी के लिए आवेदन किया। ससुर ने भी एनओसी दे दी। आवेदन के साथ शपथ पत्र पेश किया कि पति लापता है तथा ससुराल में जीवन यापन कर रही है। एकमात्र सास उसकी सरकारी कर्मचारी थी, जिसकी मृत्यु होने पर परिवार का गुजारा चलाना मुश्किल हो गया। नियमानुसार पेंशन भी नहीं मिल सकती। इसलिए अनुकंपा नियुक्ति दें। 

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