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प्रदेश की 4200 आंगनबाड़ियों में भेज दी गलतियों से भरी एक लाख किताबें

प्रदेशमेंयूनिसेफ से 35 लाख रुपए खर्च करवा कर महिला एवं बाल विकास विभाग ने 4200 आंगनबाडिय़ों में पढ़ने वाले एक लाख नन्हे-मुन्नों को ऐसी एक लाख किताबें भेज दी हैं, जिनमें त्रुटियों की भरमार है।
इतना ही नहीं, नौनिहालों को अक्षर ज्ञान भी ऐसी चीजों से करवाया जा रहा है, जिन्हें खुद कई शिक्षक भी नहीं समझते हैं। इन किताबों को पढ़ते हुए कई महीने हो गए हैं। विभाग के अधिकारियों ने बताया कि यह किताबें यूनिसेफ की यूनिट फॉर चिल्ड्रन के 35 लाख रुपए के फंड से पायलट प्रोजेक्ट के तहत ‘प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा हेतु गतिविधि पुस्तिका’ नाम से ये किताबें छपी हैं। वहीं राज्य सरकार की तीन वर्ष की उपलब्धियों के तहत 21 दिसंबर से शहर के गांधी ग्राउंड में लगी ‘स्वराज प्रदर्शनी’ में भी इसे उपलब्धियों के तौर पर बताया गया। हालांकि विभाग के अधिकारी अब बता रहे हैं कि यह किताबें तो प्रयोग के तौर पर छापी थीं। सही किताबें अब छापी जा रही हैं।

येहैं किताब के संपादक : बिंदुकरुणाकर, अतिरिक्त निदेशक आई समेकित बाल विकास सेवाएं और महेश शर्मा पूर्व सहाय सहायक निदेशक (आईईसी) महिला एवं बाल विकास विभाग राजस्थान।

उदयपुर | सरकारके तीन साल पूरे होने पर लगी प्रदर्शनी में उपलब्धियों के तौर पर इस पुस्तक को भी प्रदर्शित किया गया।

अब से ब्राह्मण और क्ष से क्षत्रिय

किताबजैसेबाबा आदम के जमाने की मानसिकता से तैयार की गई है। इसमें क्ष से क्षत्रिय पढ़ाया जा रहा है। यहां कुछ कार्यकर्ताओं से पूछा तो वे बोलीं : जैसे से ब्राह्मण, वैसे ही क्ष से क्षत्रिय होता है।

बच्चोंको संस्कार की भाषा और बुढ़िया : दावाकिया गया है कि पुस्तक बच्चों को संस्कारवान बनाएगी, लेकिन पुस्तक में दादी-नानी जैसी बुजुर्ग महिलाओं को बुढ़िया कहकर संबोधित करना सिखाया जा रहा है। बच्चों को कहानी ‘टप टपुआ’ से पढ़ाया जा रहा है कि एक झोपड़ी में एक बुढ़िया रहती थी। पानी बरसता तो उसी झोपड़ी में पानी टपकता था। बुढ़िया पानी टपकने से परेशान हो जाती थी।

^मेरा महिला एवं बाल विकास विभाग से अन्य विभाग में तबादला हो गया है। अब मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता। इसके जिम्मेदार अधिकारियों से बात करें। -महेशशर्मा, पूर्व सहायक निदेशक (आईईसी) मबाविवि, राजस्थान

^संपादकतो ऑफिस वाले लिख देते हैं। मेरा काम प्रूफरीडिंग का नहीं है। प्रूफरीडिंग तो किसी और ने की है। सही किताबें अब और छापी जा रही हैं। -बिंदुकरुणाकर, अतिरिक्त निदेशक आई समेकित बाल विकास सेवाएं

^विभाग ने यह एक लाख किताबें प्रयोग के तौर इतने ही बच्चों को पढ़ाने भेजी हैं, जो पायलट प्रोजेक्ट के तहत छपी थीं। इनकी छपाई में यूनिसेफ की यूनिट फॉर चिल्ड्रन के दिए 50 लाख में से 35 लाख रुपए खर्च हुए हैं। -उमेश्वरदेवड़ा, सहायक निदेशक (आईईसी) मबाविवि, राजस्थान

जो पन्ना खोलो, उसी पर गलतियों की भरमार

पेज1 पर बहुवचन वाक्यों में भी हैं की जगह है, है, सकें के स्थान पर सके, तुम्हीं की जगह 8 बार तुम्ही, बैठाएं की जगह बैठाये, कराएं की जगह कराये, चिड़ियों की जगह चिड़िया, आमों की जगह आमो, पेज 17 पर वस्तुओं की जगह दो बार वस्तुओ, 41 पर दो बार जानवरों की जगह जानवरो, 43 और 49 पर चित्रों की जगह चित्रो, पेज 12 से पेज 62 तक 41 बार पूछें की जगह पूछे लिखा है और पेज 64 पर फिर जानवरों की जगह जानवरो लिखा है।

कबूतरऔर उल्लू भी गलत लिखे हैं : पेज72 पर कबूतर को कबुतर और उल्लू को उल्लु लिखा है। वहीं पेज 5 पर बातचीत की जगह बातचित, पेज 7 और 8 पर बड़े अक्षरों में व्यंजन के स्थान पर व्यजंन, पेज 25 पर 3 बार त्योहार की जगह त्यौहार, पेज 28 पर मिठाइयां की जगह मिठाईयां लिखा है।

सरकार की स्वराज प्रदर्शनी में भी ‘प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा हेतु गतिविधि पुस्तिका’ की उपलब्धियों के तौर पर दे रहे हैं मिसाल

भास्कर कईआंगनबाड़ी केंद्रों पर पहुंचा, लेकिन कुंजरवाड़ा आंगनबाड़ी केंद्र पर अजीब दास्तां देखने-सुनने को मिली। यहां नौनिहाल अनस हुसैन ने मैडम से पूछा ये से ओखली क्या होती हैω मेडम बाेली : बेटा इससे चीजें कूटते हैं। इतने में पास बैठी बच्चे की मां तरन्नुम बोलीं : मेडम मैंने ताे ओखली देखी दवात। किताब में भी से ईख और से डमरू पढ़ाया जा रहा है। जोगीवाड़ा केंद्र पर बच्ची माही ने मैडम से पूछा : मैडम, ईख क्या होती है तो मैडम ने उसे जवाब दिया : ईख एक तरह की घास होती है। 

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