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RPSC द्वारा चयनित वरिष्ठ अअध्यापकों की व्यथा , आह ! प्रभु तुम कहाँ हो ?

1⃣. 2008 में विज्ञापन निकाल कर तीन साल इंतजार कराया तब परीक्षा हुई ।
2⃣. परीक्षा भी हुई तो RPSC के इतिहास में हिन्दी का अब तक कठिन पेपर था ।

3⃣. टोंक, बांरा में नकल हुई तो परीक्षा रद्द कर इन जिलों दुबारा परीक्षा ली गई ।
4⃣. परिणाम आया तो सरकार ने छः महीने तो इनकी सुधि ही नहीं ली, छः माह बाद सुधि आई तब नियुक्ति दी ।
5⃣. पहला वेतन मिला तो मात्र 11100 रु, उसी में संतोष किया ।
6⃣. स्कूलों में पूरी व्यवस्था चौपट मिली, पूरी जिम्मेदारी इन्हीं पर आ गयी, धीरे धीरे व्यवस्था में सुधार किया ।
7⃣. इनके पहुंचने के बाद जो ग्रामीण शिक्षकों को गालियाँ देते थे इनकी मेहनत को देखकर उनकी सोच में परिवर्तन हुआ और "नये लड़के खूब मेहनत करते हैं " जैसे शब्दों से शिक्षकों का सम्मान करने लगे ।
8⃣.परिवीक्षा काल पूरा हुआ तो वेतन विसंगति से पाला पड़ा 16290 की जगह 14430 । 4000 रु प्रति माह नुकसान ।
9⃣ किसी संगठन का कोई सहयोग नहीं मिला फिर भी हर वर्ष रसीद के रुप में लगान जमा कराते रहे इस उम्मीद से कि ये संघ जरुरत पर काम आयेंगे ।
1⃣0⃣. नये जोश रात दिन एक किया सोचा नतीजा अच्छा होगा ।
1⃣1⃣. एक साल पहले ढोल पीट दिया कि सब डीपीसी हो गई अब RPSC वालों का नंबर है ।खुशी के मारे बल्लियों उछल पड़े । किताबें बांध कर आलमारी में रख दी ।
सोचा अब हम व्याख्याता बन रहे हैं ।
1⃣2⃣ तब शिथलन का पेच आया गया बड़े सौभाग्य से वह हल हुआ ।
1⃣3⃣ पद 3000 से ऊपर, गुणा भाग लगाकर मान लिया अपना तो हो जायेगा ।
1⃣4⃣ फिर आपदा आयी रिव्यू वाले शामिल कर लिए तो भयभीत हो गये ।
1⃣5⃣ पद घटते घटते आधे रह गये ।
डीपीसी भी हुई तो उतनी कि RPSC वालों का नंबर नहीं आ जाये ।
1⃣6⃣ तैयारी भी नहीं की तो RPSC परीक्षा से भी बाहर होने का खतरा है ।
1⃣7⃣अब पछताने व मन मारकर उसी स्कूल में पढ़ाने के अलावा कोई चारा नहीं है । इसके साथ ही तुक्का ये है कि रिव्यू डीपीसी आया व्यक्ति व्याख्याता बनकर तुम्हारे ही स्कूल में आने वाला है । इसे क्या कहोगे " जले पर नमक छिड़ना"
आह ! प्रभु तुम कहाँ हो ?
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