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टीचर्स को तरस रहे यहां के सरकारी स्कूल, 11 हजार बच्चे हुए फेल

उदयपुर. आरबीएसई 10वीं बोर्ड के परिणाम में इस बार जिले के 31884 स्टूडेंट्स में से 20915 ही पास हो पाए, जबकि 10969 यानी 35 प्रतिशत बच्चे फेल हुए। वहीं पूरे राज्य में 2 लाख 53 हजार 433 छात्र फेल हुए हैं। उदयपुर जिले में पिछले 5 वर्षों में पहली बार 3 प्रतिशत रिजल्ट गिरा है। परीक्षा परिणाम में उदयपुर जिला राज्य के 33 जिलों में से 30वें स्थान पर रहा।
इसलिए टीचर ड्यूटी देना पसंद नहीं करते
मौजूदा शिक्षा अधिकारियों से लेकर पूर्व शिक्षा अधिकारियों का कहना है कि परिणाम गिरने का सबसे बड़ा कारण शिक्षकों की कमी और दूर-दराज के स्कूलों में शिक्षकों की रुचि नहीं होना है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में अन्य जिलों की तुलना भौगोलिक आधार पर उदयपुर जिले में पहाड़ी और दूर-दराज के स्कूलों में ज्यादातर टीचर ड्यूटी देना पसंद नहीं करते। झाड़ोल, लसाडिय़ा, कोटड़ा, गोगुंदा तथा खेरवाड़ा जैसे ब्लॉक मेंं हमेशा शिक्षकों के पद खाली रहते हैं। वर्तमान शिक्षा अधिकारी भी खुद ये मान रहे हैं ज्यादातर शिक्षक ऐसे इलाकों में नियुक्ति नहीं चाहते, अगर कोई नियुक्त दी जाती है तो वह ट्रांसफर कराने की जुगत में लग जाता है। इससे सबसे बड़ा नुकसान बच्चों को ही हो रहा है।
इस एरिया का रिजल्ट हमेशा कम होता है
पूर्व माध्यमिक शिक्षा उपनिदेशक रहे धर्मचंद नागौरी ने बताया कि कोटड़ा, झाड़ोल जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्र का परिणाम हमेशा कम जाता है। दूर-दराज के स्कूलों में गणित-विज्ञान जैसे विषयों के शिक्षक नहीं मिलते। मैंने सरकार को प्रस्ताव भेजा था कि दूर-दराज के स्कूलों में हर शिक्षक को सिर्फ 5 साल के लिए पोस्टिंग दी जाए तथा जो भी नया शिक्षक नियुक्त होता है तो उसे पहले वैसे स्कूलों में लगाया जाए। शहर में नियुक्त शिक्षक को ऐसे इलाकों में अनिवार्य रूप से लगाने संबंधी प्रस्ताव भेजा था।
पूर्व शिक्षा अधिकारी शरद पुरोहित ने कहा है कि ज्यादातर स्कूल इंटीरियर इलाकों में हैं, वहां शिक्षक जाना पसंद नहीं करते। अन्य जिलों की तुलना उदयपुर की भौगोलिक स्थिति अलग है यहां आदिवासी बहुल क्षेत्र है जहां ज्यादातर स्कूल इंटीरियर इलाके में हैं।

एडीईओ वीरेंद्र पंचोली ने कहा है कि आदिवासी बहुल क्षेत्र के ज्यादातर स्कूल दूरी पर हैं, ऐसी जगहों के स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं। जो जाते हैं तो वे ट्रांसफर लेकर वापस शहर के आसपास आने के प्रयास में रहते हैं। जिले में 40 प्रतिशत स्टाफ खाली है।
सहायक निदेशक मा.नरेश डांगी ने कहा है कि स्थानीय शिक्षकों की कमी होने से बच्चे दूसरी भाषा में नहीं समझ पाते। क्योंकि यहां ज्यादातर बाहरी जिलों के शिक्षक तैनात हैं। शिक्षकों के पद खाली हैं जिनमें खासकर आदिवासी बहुल क्षेत्रों के स्कूलों में खाली पद भरना चुनौती रही है।

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