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ग्रामीणों ने निजी जैसा बनाया सरकारी स्कूल

सीकर. गांव के सरकारी स्कूल के प्रति लोगों के लगाव और जज्बे की यह अनूठी बानगी है। जहां स्कूल को प्रदेश की सबसे बेहतर स्कूल बनाने के लिए गांव के बड़े-बूढें ही नहीं, खुद स्कूल का बच्चा-बच्चा ही भामाशाह बन गया है। भामाशाह भी एेसे, जो पैसा लगाकर स्कूल का कायाकल्प तो कर ही रहे है।
घर- घर संपर्क व वाहन सरीखी सुविधा मुहैया करवा स्कूल का नामांकन भी बेहतर कर रहे हैं। जी, हां हम बात कर रहे हैं लक्ष्मणगढ़ के घस्सु का बास की। जहां की राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल घस्सु माधोपुरा की बेहतरी का सपना पाले गांव का हर शख्स पिछले कई सालों से बड़ी शिद्दत से भामाशाह की भूमिका निभा रहा है।

ये हैं भामाशाहों की देन

घस्सु का बास स्कूल की नींव 1973 रखी गई। प्रारंभिक शिक्षा से शुरू हुई स्कूल में करीब पांच- छह कमरे थे। लेकिन, स्कूल क्रमोन्नति के साथ जब स्कूल में कमरों की जरुरत हुई, तो ग्रामीणों ने 20 गुना 25 फीट के 18 कमरें बना दिए। यही नहीं स्कूल में विज्ञान संकाय के लिए बॉयोलोजी, केमिस्ट्री व फिजिक्स की लैब, बिजली, ट्यूबवेल व पर्यावरण को बढ़ावा देने के लिए फव्वारे तक भामाशाहों के सहयोग से लगे हैं। स्कूल के करीब 400 बच्चों को लाने-ले जाने के लिए भामाशाहों ने चार वाहन भी लगा रखे हैं।

बच्चे करते हैं इच्छा से सहयोग

स्कूल में बनी विज्ञान की लैब के लिए ही सभी बच्चों ने अपनी इच्छा से मिलकर 20 हजार रुपए का आर्थिक सहयोग किया। राजस्थान पत्रिका के नींव वाटिका अभियान के तहत स्कूल में वाटिका विकास का काम भी बच्चों ने शुरू किया है।

हर घर और शिक्षक देते हैं सहयोग

स्कूल को गांव के हर घर और शिक्षक से आर्थिक सहयोग मिलता है। इसके लिए ग्रामीणों की बैठक स्कूल में होती है। जिसमें सालभर के जरूरी सामान की राशि तय की जाती हैं। इस सत्र में स्कूल के लिए छह लाख रुपए देने की घोषणा हुई है।
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