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कोटा में आत्महत्याओं के बढ़े मामले, कोचिंग सेंटर्स पर नकेल कसने की मांग

बच्‍चों को डॉक्‍टर और इंजीनियर बनाने का सपना बेचने के लिए राजस्थान का कोटा जिला इन दिनों मशहूर हो रहा है. देश के ज्यादातर कोंचिंग सेंटर यहां फलफूल रहे हैं और इससे जुड़ा एक कड़वा सच यह भी सामने आ रहा है कि पिछले कई वर्षों में यहां पर एग्‍जाम की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स में आत्महत्या करने के मामले लगातार बढ़ रहा है.

नाबालिग कर रहे हैं सुसाइड
चिंता की बात ये हैं कि इनमें से काफी बच्चे नाबालिग हैं. हाल ही में नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स की 6 सदस्यों की टीम ने यहां चल रहे कोचिंग सेंटर्स का दौरा किया और इस दौरान बच्चों से बातचीत भी की. इसमें जो रिपोर्ट सामने आई, वह आंखे खोलने वाली थी. रिपोर्ट में यह बात साफ थी कि कैसे कोचिंग हब बिना किसी कानून और डर के एक माफिया की तरह काम कर रहे हैं और सपने के बदले बच्चों में मौत बांट रहे हैं.
इसी रिपोर्ट के आधार पर एनसीपीसीआर ने मानव संसाधन मंत्रालय को एक पत्र लिखकर देश में चल रहे तमाम कोचिंग सेंटर्स के लिए कड़े कानून बनाने की मांग भी की है.

बच्चों पर सपनों आैर अपेक्षाओं का बोझ
आप मानें ना मानें राजस्थान के छोटे से कोटा जिले में इस समय देशभर के लगभग डेढ़ लाख स्टूडेंट मेडिकल, इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं.
आपको ये जानकार हैरानी होगी की यहां कोचिंग क्लासेज 9वीं कक्षा के स्टूडेंट से शुरू हो जाती हैं. 9वीं से 12वीं तक 4 साल की कोचिंग हैं और 11वीं 12वीं के स्टूडेंट्स के लिए दो साल की कोचिंग का कोर्स है.
कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा हैं कि एडमिशन के सपने बच्चों को दिखाए जाते हैं उन्हें पूरा कराने के लिए ना तो यहां पर योग्य शिक्षक हैं, ना सुविधाएं हैं साफ लगता है बस बच्चों का इस्तेमाल पैसा कमाने के लिए हो रहा है.

बढ़ रहा है डिप्रेशन
इसी कारण बच्चो में तनाव हैं और वे डिप्रेशन में जा रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन सालों में यहां 14 से 19 साल के 38 बच्चों ने खुदकशी की है. 2013 में यहां पर 13 बच्‍चों ने अपनी जान दे दी, जिसमें 3 नाबालिग थे. वहीं 2015 में 17 बच्चों ने निराश होकर अपनी जिंदगी खत्म कर ली, जिसमें 5 नाबालिग थे.

कड़े कानून बनाने की मांग
कमीशन ने अपनी इस रिपोर्ट के आधार पर मानव संसाधन मंत्रालय से इन कोचिंग सेंटर पर नकेल कसने की मांग की है क्‍योंकि ये हालात कुछ सेंटर के नहीं बल्कि लगभग सभी के हैं, बस फर्क इतना है कि किसी में कम हैं किसी में ज्यादा बुरे हालात हैं.
कोचिंग देने के नाम पर बच्चों को डॉक्‍टर, इंजीनियर बनाने के लुभावने सपने दिखाने का ये मुद्दा बहुत गंभीर है इसमें कोचिंग सेंटर एक छात्र का भविष्य ही नहीं बल्कि उनकी जिंदगी भी दांव पर लगा रहे हैं.

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