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शिक्षक तो ये संगीत के लेकिन पढ़ा रहे बारहखडी

उदयपुर. संगीत इनका स्वाध्याय और आनंद का विषय था। जो कुछ मिला वो संगीत की ही देन था। संगीत ने नौकरी दी तो लगा कि इसी को प्रेरणा बनाकर जीवन के सुर साध लेंगे, लेकिन सरकारी नीतियों ने संगीतज्ञों से उनका प्रिय विषय ही छीन लिया। अपनी कला में महारात प्राप्त कई प्रतिभाओं को आज अन्य विषय पढ़ाने पड़ रहे हैं।

सरकार की ओर से  इनकी कला की कद्र सिर्फ इतनी है कि इन्हें राष्ट्रीय पर्वों की तैयारियों के लिए जरूर याद किया जाता है। यहां जिक्र वर्ष 2011 में राज्य सरकार की ओर से  अनुदानित संस्थाओं से शिक्षा विभाग में लगाए गए शिक्षकों का है। इसके तहत शहर की संगीत के क्षेत्र में  कार्य कर रही संस्थाओं के शिक्षकों को तृतीय श्रेणी शिक्षक नियुक्त किया गया था।
 इनको  जिले के दूर-दराज के क्षेत्रों में नियुक्त कर दिया गया। तब से लेकर अब तक ये बच्चों को  अन्य विषय पढ़ा रहे हैं। इसका इन्हें अनुभव नहीं है। एेसे में  इन शिक्षकों की  प्रतिभा का सही उपयोग नहीं हो पा रहा।
राष्ट्रीय आयोजनों में ले चुके हैं भाग
संगीत के क्षेत्र में कार्यरत उदयपुर की संस्थाओं की पहचान  राष्ट्रीय स्तर पर है। इनमें कार्य करते हुए ये शिक्षक  देश-विदेशों में भी कई बड़े आयोजनों में अपनी प्रतिभा दिखा चुके हैं। अब स्थिति यह है कि इनके पास रियाज करने तक का समय नहीं है।
प्रतिभाओं का हनन
अनुदानित संस्थाओं से शिक्षा विभाग में करीब दस शिक्षक लिए गए। इनमें परमेश्वर गंधर्व, नरेंद्रकुमार वर्मा, पंकज बनावत, अखिलेश शर्मा, कन्हैयालाल गंधर्व, कैलाश अठवाल, आेमप्रकाश टांक, रेणुका वर्मा, गौरीशंकर गंधर्व, ललित कुमार गंधर्व आदि है। सभी संगीत में महारात रखते हैं।
एमए के छात्रों  को पढ़ाते थे
इन शिक्षकों का कहना है कि संगीत में रुचि के चलते अनुदानित संस्थाओं को चुना। इन संस्थाओं का देश के कई महाविद्यालयों से करार है। एेसे में इन संस्थाओं में एमए तक के विद्यार्थियों को भी पढ़ाया। अब प्राइमरी के बच्चों को पढ़ाना पड़ रहा है।
गरज पर याद आती हैं प्रतिभाएं
इन शिक्षकों की याद विभाग को 26 जनवरी और 15 अगस्त पर ही आती है। हर वर्ष इन राष्ट्रीय पर्वों पर ये संभाग स्तरीय समारोह की तैयारियां करवाते हैं। कई शिक्षकों से  एसआईईआरटी ने  गत वर्ष कला वर्ग का पाठ्यक्रम तैयार करने में भी मदद ली गई।
सीनियर स्कूलों में है विषय
संगीत का विषय के केवल उच्च माध्यमिक विद्यालयों में ही है। प्राथमिक विद्यालयों में यह विषय ही नहीं है। इधर, उमावि में संगीत विषय होने के बावजूद इनके शिक्षकों की कमी है। इससे उलट संगीत शिक्षकों को प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त किया गया है।
सरकार करेगी निर्णय
 इन शिक्षकों को सरकार की योजना  स्वैच्छिक ग्रामीण सेवा के तहत लगाया गया था। जहां तक प्रतिभा दिखाने का सवाल है, तो ये अपने स्कूल के बच्चों को भी संगीत सिखा सकते हैं। अन्य स्कूलों में लगाने का निर्णय सरकार ही करेगी।
 विष्णु पानेरी, जिला शिक्षा अधिकारी, (प्रारंभिक)
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